बूँदें तो आख़िर बूँदें होती है.
कभी बारिश बनकर, ज़मीं को हरा -भरा कर देती है ।
तो कभी आंसू बनकर आँखों को, सूखे बंज़र सी बना देती है । ।
बूँदें तो आख़िर बूँदें होती है ।
चाहे पानी बनकर, किसी की प्यास बुझा दे ।
चाहे आँखों से गिरकर, किसी की प्यास मिटा दे । ।
बूँदें तो आख़िर बूँदें होती है.
कितनी कमाल की है ये बूँदें ।
जिन्हें अपना समय और सिचवेशन, सब पता होती हैं ।
कभी सुबह की ओस बनकर, शीशे सी चमकती है ,
तो कभी पिघलती बर्फ की तरह, ख़ुद को ज़मीं में समेट लेती है । ।
बड़ी अजीब होती है ये बूँदें
कभी दर्द बनकर साँसें छीन लेती है, तो कभी सुकून देकर हमदर्द बन जाती है।
क्या अजीब खेल है इन बूंदों का का।
हो भी क्यों ना , बूँदें तो आखिर बूँदें होती हैं । ।
ये बूँदें हम सबकी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा होती हैं. ख़ुशी ज़ाहिर करने और दर्द को हल्का करने में ये बूंदें ही हमारी साथी होती हैं. मेरे साथ तो ऐसा होता है, क्या आप भी इन बूंदों से ख़ुद को जुड़ा हुआ सा महसूस करते हैं? मुझे कमेंट करके जरूर बताइये.| आपकी राय आपके सुझाव मेरा हौसला और बढ़ा देते हैं।
हँसते, मुस्कुराते, स्वस्थ रहिये। ज़िन्दगी यही है।
आप मुझसे इस आईडी पर संपर्क कर सकते हैं.
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© सुजाता देवराड़ी
बेहद खूबसूरती से बूँदों के स्वरूप को व्याख्यायित किया है आपने ।
सुन्दर सृजन ।
जी सर आभार आपका।
बहुत आभार मीना जी
बहुत सुंदर, सुकोमल और भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
शुक्रिया! आप हमेशा मेरे द्वारा लिखे गए लेखों को पढ़कर उनपर अपनी प्रतिक्रिया देकर मेरा हौसला बढ़ाते रहते हैं ।