उत्तराखंडी हस्तशिल्प कला को आगे बढ़ाने में प्रयासरत राजेन्द्र बडवाल से एक मुलाकात
कुछ दिनों पहले मैंने रिंगाल पर एक पोस्ट साझा की थी जिसमें मैंने रिंगाल के विषय में चर्चा की थी। रिंगाल क्या है? उसकी उपयोगिता क्या है? उसको कैसे इस्तेमाल किया जाता है? उसे रोजगार के रूप में कैसे बढ़ाया जा सकता है? इस सभी बिंदुओं को मैंने आप सबके समक्ष रखा था। मुझे खुशी है कि आज मैं जिस व्यक्ति से आपको मिलवाने जा रही हों वो रिंगाल को रोजगार की तरह अपनाकर इस क्षेत्र में सराहनीय और प्रेरक कार्य कर रहे हैं।
परिचय
राजेन्द्र बडवाल चमोली जिले के दशोली ब्लॉक के गाँव चांतोली-किरूली, बंड पट्टी (पीपलकोटी) के निवासी हैं। गाँव में पले बढ़े राजेन्द्र जी एक ऐसे व्यक्ति हैं जो संस्कृत विषय में स्नातकोत्तर (एम. ए. ) हैं और इन्होंने बीएड किया हुआ है। बावजूद इसके नौकरी के लिए शहर में दर दर भटकने के बजाय इन्होंने अपने आसपास प्रकृति द्वारा दिए गए संसाधनों का उपयोग कर, उसे अपने रोजगार का माध्यम बनाया जो कि अपने आप में काबिले तारीफ है। गाँव के लोगों के लिए एक प्रेरणा के रूप में उभर कर राजेन्द्र जी सामने आए। रिंगाल को एक बड़े मुकाम तक पहुँचाने की हर संभव प्रयास ये कर रहे हैं। रिंगाल को रोज़गार के रूप में युवाओं तक पहुँचाने का जिम्मा भी राजेन्द्र जी लेना चाहते हैं। इसके लिए वो अपने आसपास और बाकी लोगों को भी इस विषय में प्रोत्साहित करने की कोशिश में प्रयत्नरत हैं।
राजेन्द्र बडवाल जी से आप निम्न माध्यमों द्वारा सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:
फेसबुक
कॉल & वाट्सऐप : +91-8755049411
ईमेल: rajendrabadwal49@gmail.com
रिंगाल को रोजगार के रूप में अपनाने की उनकी ये जिद कैसे शुरू हुई? कैसे ये सफ़र आगे बढ़ा? कहाँ से उन्हें ये प्रेरणा मिली?आइये इन सारे सवालों के जवाब उन्हीं की जबानी जानने की कोशिश करते हैं।
प्र.राजेन्द्र जी सबसे पहले तो आप अपने बारे में कुछ बताइए। आप कहाँ के रहने वाले हैं? आप क्या करते हैं? आपकी शिक्षा-दीक्षा कहाँ तक हुई है?
उ. मेरा नाम राजेन्द्र बडवाल है। मेरे पिताजी का नाम दरमानी बडवाल और माँ का नाम श्रीमती दुर्गा देवी है। मेरी दो बहिनें विशेश्वरी, प्रीति और एक भाई नवीन बडवाल है। मेरे गाँव का नाम चांतोली-किरूली, बंड पट्टी (पीपलकोटी), दशोली ब्लाॅक, जनपद चमोली, उत्तराखंड है। मैं और मेरा परिवार अपने गांव में ही रहते हैं। मैं गांव में ही खेती, पशुपालन और रिंगाल के उत्पादों को बनाने का कार्य करता हूँ। मेरी शिक्षा यहीं चमोली में ही सम्पन्न हुई है और मैं हिंदी और संस्कृत विषय में स्नाकोत्तर उपाधि धारक हूँ जबकि बीएड की डिग्री भी मेरे पास है। जिसका फायदा मुझे आज मेरे व्यवसाय को आगे बढ़ाने में मिल रहा है।
प्र. राजेंद्र जी पाठकों ये बताइए कि रिंगाल आखिर है क्या? इसको उपयोग में क्यों लाया जाता है? कैसे इसका इस्तेमाल किया जाता है? क्या- क्या चीज़ें हम रिंगाल से बना सकते हैं?
उ. रिंगाल को बौना बांस (dwarf bamboo) के नाम से जाना जाता है। रिंगाल पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के अलावा भूस्खलन को रोकने में भी सहायक होता है। रिंगाल बांस की तरह ऊँचा और लम्बा और मोटा नहीं होता है। रिंगाल की ऊचाई 10-12 फीट तक होती है। रिंगाल की 12 प्रजाति होती है लेकिन हमारे क्षेत्र में आठ प्रकार का रिंगाल पाया जाता है। देव रिंगाल, थाम रिंगाल, मालिंगा रिंगाल, गोलू(गड़ेलू) रिंगाल, ग्यंवासू रिंगाल, सरुड़ू रिंगाल, भट्टपुत्रु रिंगाल, नलतरू रिंगाल। इन सब में सबसे उत्तम प्रजाति का रिंगाल देव रिंगाल होता है। रिंगाल उत्तराखण्ड के लोकजीवन का अभिन्न अंग है इसके बिना पहाड़ के लोक की परिकल्पना नहीं की जा सकती है। रिंगाल से दैनिक जीवन में काम आने वाले जरुरी उपकरण तो बनते ही हैं, इनसे कई तरह के आधुनिक साजो-सामान भी बनाये जा सकते हैं। रिंगाल से कलम, सामान लाने वाली और संजोकर रखने वाली विभिन्न तरह की टोकरियां, अनाज साफ़ करने वाला सूपा और रोटी रखने की छापरी, फूलदेई की टोकरी हो या फिर झाड़ू, खाना रखने की टोकरी और घर की छत बनाने के लिए भी रिंगाल का उपयोग किया जाता है।
प्र. राजेन्द्र जी इतनी पढ़ाई करने के बाद आपने टीचिंग लाईन में जाने के बजाय रिंगाल को अपना व्यवसाय बनाने की ठानी इसके पीछे क्या कोई खास वजह थी? या कुछ अलग करने की ज़िद थी आपकी ।
उ. रिंगाल का व्यवसाय बरसों से हमारी पहचान रहा है। रिंगाल के बेजोड़ हस्तशिल्पि हमारे अग्रज रहें हैं लेकिन वर्तमान में हम रिंगाल व्यवसाय से विमुख होते जा रहें हैं। उसका कारण ये है कि लोगों को शहर की दुनिया भाने लगी। रिंगाल को जानने का कोई प्रयास ही नहीं करना चाहता जबकि अगर रिंगाल को कार्य रूप में ले लिया जाए तो यह एक सुखद भविष्य हो सकता है। इसको अपना व्यवसाय बनाने के पीछे मेरा मकसद था कि रिंगाल को माडर्न लुक देकर अच्छी आमदनी की जा सकती है और ये व्यवसाय अपने घर में रहकर आसानी से किया जा सकता है। बरसात हो या फिर गर्मी या सर्दियाँ हर मौसम में इसका निर्माण किया जा सकता है। युवा पीढ़ी अपनी इस पुश्तैनी व्यवसाय को छोड रही थी इसलिए मेरी जिद थी कि इसको अपना व्यवसाय बनाऊंगा और इसे एक नये मुकाम पर पहुँचा कर युवाओं को भी इसमें शामिल करूँगा।
प्र. आज के दौर में जहाँ लोग अपने घर की शोभा बढ़ाने के लिए मॉर्डन फर्नीचर्स का इस्तेमाल करते हैं। वहीं आप रिंगाल से बनी वस्तुओं से सजावट की एक नई परिभाषा लिखने की कोशिश कर रहे हैं। इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे।
उ. जहाँ तक बात है मॉर्डन फर्नीचर्स की तो वो केवल दिखावे तक ही सीमित है जबकि रिंगाल के उत्पादों से घरों की शोभा वास्तविक रूप से बढ़ती है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में रिंगाल को उच्च दर्जा प्राप्त है। फूलों की टोकरी से लेकर रिंगाल की छंतोली (एक प्रकार का छाता, जो मुख्य रूप से नंदा देवी राज जात के समय ज्यादा इस्तेमाल होती है।) इसका उदाहरण है। वहीं रिंगाल का सबसे बड़ा फायदा ये है कि वो पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद अच्छा होता है। रिंगाल के उत्पाद बेहद हल्के होते हैं और अन्य वस्तुओं की तुलना में आकर्षक और सस्ते भी होते हैं। इन्हें आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है।
प्र. मेरी जानकारी के मुताबिक रिंगाल का काम आपके परिवार में पीढ़ियों से चलता आ रहा है। क्या यह सच है ? क्या ये पारिवारिक व्यवसाय है? या केवल आपकी स्वेच्छा ।
उ. नही ! हमारे परिवार का ये पारिवारिक व्यवसाय नहीं है। हमारे गांव में कई परिवारों का ये पुश्तैनी व्यवसाय है। इन लोगों की पीढियाँ दर पीढियाँ ये काम करते आ रही है लेकिन अफसोस है कि उन्हें वो मुकाम हासिल नहीं हो पाया जिसके वो हक़दार थे। मेरे परिवार में मेरे पिताजी ने भी गांव में ही इसको सीखा। मेरे पिताजी पिछले 45 सालों से रिंगाल का व्यवसाय कर रहें हैं जबकि मैंने अपने पिताजी से ही इसको सीखा और विगत 10 सालों से पिताजी के साथ मिलकर काम कर रहा हूँ। पिछले पांच सालों से मैंने रिंगाल के परम्परागत उत्पादों के साथ नया प्रयोग कर मार्डन लुक दिया और कई नये डिजाइन तैयार किये। हमनें रोजगार के लिए रिंगाल का व्यवसाय शुरू किया। इस व्यवसाय को भविष्य में एक सुनहरा अवसर बनाने की भी मेरी पूरी कोशिश है।
प्र. उत्तराखण्ड पहाड़ की इस पौराणिक सांस्कृतिक धरोहर को एक नए मुकाम तक पहुँचाने की प्रेरणा आपको कहाँ से मिली? ऐसी कौन सी चीज है जिसने आपको सबसे ज्यादा प्रभावित किया हो।
उ. हिमालयी महाकुंभ नंदा देवी राजजात यात्रा में रिंगाल की छंतोली बरबस ही लोगों को आकर्षित करती है। रिंगाल की छंतोली के बिना आप नंदा देवी राजजात यात्रा की परिकल्पना नहीं कर सकते हैं। हमारे गांव में नौ गांवों के आराध्य देवता बंड भूमियाल और गेदाणू देवता का पौराणिक मंदिर स्थापित है। बंड भूमियाल और गेदाणू देवता की रिंगाल की छंतोली नंदा देवी राजजात यात्रा में जाती हैं। इन्हीं छंतोली नें मुझे प्रेरणा दी और फूलदेई त्यौहार की रिंगाल की टोकरी नें मुझे अहसास कराया कि रिंगाल का संबंध प्रकृति और आमजन के साथ युगों -युगों से है। विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहने वाले पहाड़ से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि अपनी रुचि के अनुसार काम करना जितना आसान होता है उतना ही आसान किसी नई चीज को अपनाकर उसे अपने हिसाब से प्रदर्शित करना होता है। रिंगाल प्रकृति की एक देन है जिसे स्वीकार कर हमें उसको उपयोग करके अन्य लोगों तक भी पहुँचाना होगा।
प्र. मैंने सुना है आप रिंगाल से बनी वस्तुओं को प्रदर्शनी में भी लेकर जाते हैं। क्या आपकी प्रदर्शनी उत्तराखण्ड के आलावा बाहर किसी अन्य जगह भी लगती है? और प्रदर्शनी को लेकर लोगों की क्या प्रतिक्रिया होती है? क्या लोग इस विषय को जानने की उत्सुकता प्रकट करते हैं ?
उ. मुझे रिंगाल उत्पादों की डिमांड ज्यादतर वाट्सऐप, फेसबुक और फोन के माध्यम से मिलती है और उन्हें मैं अपने गाँव से बस या छोटी गाड़ी में भिजवा देता हूँ। जहाँ तक बात है प्रदर्शनी की तो, उत्तराखण्ड ही नहीं देश के कोने-कोने से रिंगाल के उत्पादों की प्रदशर्नी लगाने को कहा जाता हैं। मैने कई बार ये प्रदशर्नी भी लगाई हैं। इस दौरान हर किसी नें रिंगाल के उत्पादों की सराहना की और इन उत्पादों को खरीदकर भी ले गये। फिर मुझे एहसास हुआ कि लोग हर नई चीज को अपने से जोड़ने का प्रयत्न करते हैं बस उन लोगों तक उनके हिसाब से बनी चीज़े पहुँचनी चाहिए। जब -जब मुझसे कोई रिंगाल के विषय में चर्चा करता है या रिंगाल से बनी वस्तुओं के बारे में जानने की कोशिश करते हैं, तो मेरा यही प्रयास होता है कि मैं उन सबको बारीकी से हर वो चीज बताऊँ जिससे वो रिंगाल के प्रति जागरूक हो।
प्र. राजेन्द्र जी आप इस साल यानि 2020 मुंबई कौथिग में भी गए थे। क्या आपका जाना रिंगाल के प्रचार के लिए था? या आपको कौथिग असोसिएशन की तरफ से आमंत्रित किया गया था। वहाँ आपका अनुभव कैसा रहा?
उ. मैं मुंबई कौथिग में रिंगाल के प्रचार के लिए नहीं गया था बल्कि कौथिग फाउंडेशन ने उत्तराखंड की रिंगाल हस्तशिल्प कला से देश दुनिया को रूबरू करवाने के लिए मुझे मुबंई कौथिग में आमंत्रित किया था। मैं मुंबई कौथिग फ़ाउंडेशन खासतौर पर कौथिग के संयोजक केशर सिंह बिष्ट जी का आभारी रहूँगा कि उन्होंने इतने बड़े मंच पर मुझे रिंगाल की प्रदशर्नी लगाने के लिए आमंत्रित किया। मुंबई कौथिग में लोगों नें मेरे रिंगाल के उत्पादों की बहुत सराहना की। जब मैंने लोगों की नज़रों में रिंगाल से बनी वस्तुओं के प्रति आकर्षण देखा तो मन को एक अलग ही सुकून प्राप्त हुआ। शहरी लोगों का ये आकर्षण ही रिंगाल को घर घर पहुँचाने में कामयाब होगा और मुझे उम्मीद है कि ये हक़ीकत एक दिन सब स्वीकार करेंगे। जहाँ बात रही अनुभव की तो हर नई जगह का नया अनुभव होता है। नए लोगों से मिलकर कुछ नया करने की प्रेरणा मिलती है। मुंबई कौथिग में भी एक अलग अनुभव रहा , सम्मान का, अपने काम को आगे पहुँचाने की खुशी का और उनके मन में रिंगाल के प्रति जागरूकता का। मुझे खुशी है मैं वहाँ एक सवाल छोड़कर आया हूँ कि रिंगाल को लोग एक बड़े व्यवसाय के रूप में क्यों नहीं देख सकते। जब इनसे बनी वस्तुएँ आपको आकर्षित कर सकती है, आपके घर की शोभा बढ़ा सकती है, हमारे पर्यावरण को स्वच्छ बना सकती है, देश को प्लास्टिक मुक्त करा सकती है । सोचना बहुत जरूरी है तभी रिंगाल आगे बढ़ सकता है। सही मायने में ये मेरे जीवन का सबसे सुखद अनुभव रहा।
प्र. एक तरफ गाँव के लोग बेहतर शिक्षा, नए-नए कोर्स डॉक्टरी, इंजीनियरिंग और नौकरी के लिए शहरों की तरफ भाग रहे हैं। गाँव पलायित हो रहे हैं और दूसरी तरफ आप गाँव में रहकर ही रिंगाल को ऊँचाइयों तक पहुँचाने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं। इस मिशन में आप कहाँ तक कामयाब हो पाए हैं?
उ. जी हाँ ! सही कहा आपने आज कल लोग लोग 10-15 हजार की नौकरी के लिए अपने गाँव से पलायन कर रहे हैं जबकि यही लोग यदि अपना नजरिया बदले तो पहाड़ में रहकर भी बहुत कुछ किया जा सकता है। जरुरत है तो बस दृढ़ इच्छाशक्ति की। स्वरोजगार, कृषि बागवानी, सब्जी उत्पादन, दुग्ध उत्पादन, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, मौन पालन, बकरी पालन, मशरूम उत्पादन, फूल उत्पादन, ईको टूरिज्म, ट्रैकिंग सहित सैकड़ों क्षेत्र हैं जहाँ युवा मेहनत करके सालाना 5-6 लाख आसानी से कमा सकता है। मुश्किलें हर काम में आती है हर काम जब शुरू होता है तो छोटा ही होता है, उसे बड़ा बनाती है हमारा हौसला, हमारा उस काम के प्रति जुनून। अगर लक्ष्य सही हो तो मंजिल डगमगा कर भी फक्र से उठ खड़ी होती है। मैने भी अपने लिए जो लक्ष्य निर्धारित किया था उसमें काफी हद तक कामयाब हो पाया हूँ, मुश्किलें मुझे भी आई जब मैंने सीखना शुरू किया कभी लगता था कि, नहीं कर पाऊँगा मगर पिताजी ने जो हौंसला दिया वो आज तक हिम्मत बनके मेरा साथी बना हुआ है। कुछ अलग करने की चाह ही मुझे हर वक़्त प्रेरित करती है और आगे भी ये मिशन जारी रहेगा।
प्र. राजेन्द्र जी रिंगाल से बनी ऐसी कौन सी प्रमुख वस्तुएँ हैं जिन्होंने आपको सबसे ज्यादा प्रसिद्धि दिलाई।
उ. वैसे तो रिंगाल की हर चीज खूबसूरत होती है पर हर काम में कुछ विशेष जरूर होता है जो आपको कामयाबी तक पहुँचाने में आपकी मदद करता है। ऐसे ही रिंगाल की कुछ वस्तुएँ हैं जिन्होंने मुझे काफी प्रसिद्धि दिलाई है। रिंगाल की छंतोली, ढोल दमाऊ, हुडका, लैंप शेड, लालटेन, गैस, टोकरी, फूलदान, घौंसला, पेन होल्डर, फुलारी टोकरी, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोपी, स्ट्रैं सहित विभिन्न उत्पादों नें मुझे एक नई पहचान दिलाई।
प्र. राजेन्द्र जी आखरी में मैं आपसे ये जानना चाहती हूँ कि रिंगाल का भविष्य आप आने वाली पीढ़ियों में एक उच्च स्तरीय व्यवसाय के रूप में कहाँ तक देखते हैं।
उ. रिंगाल का भविष्य बेहद सुखद है। यदि युवा पीढ़ी इसमें रोजगार के अवसर ढूंडे तो इसमें बहुत कुछ किया जा सकता है। खासतौर पर ग्रामीणों की तकदीर बदल सकता है रिंगाल। रिंगाल से आप अपनी कला के जरिए खेल सकते हो। अपनी सोच को रिंगाल के माध्यम से इसकी वस्तुओं में उजागर कर सकते हैं। अगर मैं कहूँ कि क्रियेटीवीटि का एक सशक्त माध्यम रिंगाल बन सकता है तो गलत नहीं होगा। बस जरूरत है तो हुनर की, जज़्बे की। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि हमारी सरकार आगे आए, हमारी युवा पीढ़ी आगे आए। हमारी सरकार को भी रिंगाल के उत्पादों को प्रोत्साहित करना चाहिए और हस्तशिल्पयों की समस्याओं का निदान कर उन्हें बाजार उपलब्ध कराने को कोशिश करनी चाहिए। जिससे हम जैसे युवाओं का मनोबल बढ़े, लोगों के दिलों में रिंगाल के प्रति और जागरूकता बढ़े।
रिंगाल से बनाये गये कुछ उत्पाद:
राजेन्द्र बडवाल जी से यह बातचीत आपको कैसी लगी यह आप मुझे टिप्पणी के माध्यम से जरूर बताइयेगा।