क्या है ज़िंदगी
किसी के लिए ज़िंदगी दो दिन का मेला है।
किसी के लिए ज़िंदगी चार दिन की चाँदनी ।
किसी के लिए ये ज़िंदगी चंद लम्हों की की खुशी है।
लेकिन सच तोआखिर ये है ,
कि ज़िंदगी तीन पहर का खेल है ।
एक पहर बचपन की हट है
दूसरी जवानी की अलहड़ता
तीसरी बुढ़ापे में दोनों की जिद और मौत साँसों का अदभुद मेल है।