एक नई दोस्ती

A New Friendship

जरूरी नहीं कि प्यार सिर्फ दो लोगों के बीच हो। इश्क़ इश्क़ है किसी से भी हो सकता है। जैसे मुझे मुझसे और मुझसे जुड़ी उन तमाम चीजों से इश्क़ है जो मुझे पूरा करने में सहयोग देते हैं। वैसे भी मुझे लगता है कि हम दूसरे से तब ही इश्क कर पाते हैं जब हमें खुद से इश्क हो। और खुद से इश्क होना जरूरी भी है।

लेकिन कभी कभी इश्क़ जब तकलीफ देने लगे तो उस तकलीफ से निजाद पाने के लिए या तो खुद बदलना पड़ता है या जिससे इश्क हो उनको बदलना पड़ता है। यही कुछ किस्सा मेरे साथ भी भी हुआ है। जिस चीज से मुझे इश्क था वही मेरी तकलीफ का कारण बनने लगा और मुझे भी इस तकलीफ से निजाद पाने के लिए कुछ ऐसे ही बदलाव करने पड़े।

ठहरिए ठहरिए। क्या सोचने लगे?

इतने सीरीअस क्यों हो गये?

भई यहाँ मैं अपनी ज़िंदगी से जुड़ी किसी इंसान की नहीं बल्कि अपने बालों की बात कर रही हूँ।

इश्क ही तो था मुझे अपने बालों से। फिर होता भी क्यों न? जो भी उन्हें देखता वो कहता, “यार सुजाता, तेरे घुँघराले बाल कितने अच्छे हैं।”

यह सुनकर मैं इतराने से खुद को रोक न पाती।

सब सही चल रहा था मगर शादी के एक साल बाद जब बच्चा हुआ तो इन्हीं बालों ने बेतहाशा गिरना शुरू कर दिया। ऐसे लगा जैसे किसी बात की नाराजगी है इन्हें। इन्हें मनाने के लिए मैंने क्या कुछ न किया। जो बन पड़ता था मैं इनके लिए करती। वो कहते हैं कि जिससे प्यार होता है कभी कभी उसकी कमियाँ भी हम नज़रंदाज़ कर देते हैं। वही मैं भी करती गई लेकिन बालों ने अपना गिरना बंद नहीं किया। जब भी बालों को सहलाती, दुलार करती, निहारती तब- तब ये टूटकर कभी जमीन को अपना बिस्तर समझ लेते, कभी मेरी उँगलियों को अपनी कुर्सी और कंघी को अपना झूला। जब देखो जहाँ देखो बस टूटे बाल। ऐसा लगता जैसे मुझसे दूर जाने के लिए यह उतावले हुए जा रहे हों। कभी कभी ये देख इन पर गुस्सा भी आता था।

चलो ये भी बर्दाश्त कर देती। पर जितना मुझे इन बालों से प्यार है उतना मेरे छोटू श्वेतांश को भी है। वो इनको पाने की फिराक में हमेशा लगा रहता है। उसे भी लगता है कि शायद यह बाल मम्मी के सिर पर नहीं बल्कि उसकी नन्ही मुट्ठियों में होने चाहिए।


इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं अब इनको काट कर बिल्कुल छोटा कर दूँगी ताकि न मैं इन बालों पर उँगलियाँ फेरूँ, न आईने में देखकर इनपे प्यार लुटाऊँ।


बहुत बार सोचा अब जाऊँ, तब जाऊँ’ लेकिन इनके प्रति मोह खत्म ही नहीं हुआ। बहुत सोच विचार कर इसी शनिवार को शाम 6:25 पर मैं अपनी सहेली के साथ घर से बाल कटवाने निकल पड़ी।


हम एक सेलून के अंदर पहुँचे। देखा तो वहाँ उस वक्त बालों का मास्टर था ही नहीं क्योंकि गुडगांव सोहना की तरफ पिछले कुछ हफ्तों से दंगों ने आतंक फैलाया हुआ है और जहाँ ये दंगे हुए उसके आसपास के इलाकों में जो भी मुस्लिम लोग काम करने वाले थे वो काम पर नहीं आ रहे थे।


हम जिस सेलून का घर से सोचकर आए थे वहाँ का अपॉइन्टमेंट तो मिला नहीं ऊपर से दो तीन सेलून के चक्कर और लग गए।


इसी चक्कर में हमारे पैर एक लुक्स नाम के सेलून के पास रुके और हमने ये तय किया कि अगर यहाँ भी मास्टर न हुआ तो घर वापस चले जायेंगे।


हम दोनों अंदर गए वहाँ दो लड़कियाँ थी। मेरी दोस्त श्रुति ने उनसे पूछा कि “बाल कट हो जाएँगे क्या”?
“हो जाएँगे मैडम” एक लड़की ने जवाब दिया।
“कौन कटेगा बाल?” मैंने पूछा।
इससे पहले वो जवाब देती श्रुति ने पलटकर सवाल दाग दिया।
“लड़का नहीं है क्या आपके सेलोन में जो बाल काटते हैं? लड़के लोग अच्छी कटिंग करते हैं”
“क्यों नहीं है मैडम अभी बुलाती हूँ”। उसने फ़ोन घुमाया और हमें पानी पिलाकर बैठाया। 10 मिनट में लड़का आ गया और हो गई बालों की मरम्मत शुरू।
मैं बाल घर से धो कर गई थी ताकि समय न लगे क्योंकि घर पर बच्चा छोड़ा था विकास जी के पास तो जल्दी आना था।
पहले तो पूछा गया कि ‘कैसी कटिंग करानी है आपको?’ मैंने भी ज्यादा बात न बढ़ाकर नेट से एक तस्वीर निकाली और मास्टर जी को दिखाकर बोला “ऐसी”
“मैडम आप पर ये कटिंग अच्छी नहीं लगेगी”
“आप काटो भैया बाकी मैं देख लूँगी”।

मैंने उनको कटिंग की लंबाई बताई की कहाँ तक रखनी है तो वो बेचारा सुनकर हैरान हो गया और बोल पड़ा ” इतने छोटे? आप इतने अच्छे बाल क्यों काट रही हो मैडम?”
“भैया में बहुत परेशान हो गई हूँ ये बेतरतीब गिर रहें हैं तो मेरा रोज इन्हें गिरते देख तिल तिल तड़पने से तो अच्छा है मैं इन्हें कटवा लूँ।”
सब लोग हँसे और बालों पर कैंची चलनी शुरू हुई।
कुछ समय बाद सारा ताम झाम निपटा। मैंने खुद को निहरा और फिर पैसे का भुगतान किया। फिर हम लोग ऑटो से घर आ गए।
बच्चा भी मुझे देख खुश हुआ और मेरे बालों को देख अपने बालों पर हाथ फेरने लगा। जैसे पूछ रहा हो मम्मी बालों को ये क्या किया? अब मैं इन्हें कैसे खीचूँगा।

“पतिदेव कैसे लग रहे बाल” उत्सुकता के साथ मैंने उनसे पूछा।
“अच्छे लग रहे” मुस्कुराकर उन्होंने भी जवाब दिया।
इसके बाद मैं भी अपने काम में लग गई।

रात को मैंने सोचा बालों में कुछ तो कमी है जैसी कटिंग मैं चाह रही थी वैसी नहीं हुई थी। वहाँ इसलिए नहीं कहा क्योंकि मास्टर जी ने वैसे ही इतनी देर कर दी थी ऊपर से बाल काटने से पहले बोल दिया था कि अच्छे नहीं लगेंगे।

मुझे थोड़ा बहुत कटिंग आती है। इसलिए मैंने सुबह कैंची उठाई और बाल काटने शुरू कर दिए और जैसे मुझे चाहिए थे वैसे ही कट कर दिए।


फिर मिला मुझे सुकून! और तारीफ पड़ोसियों से की कटिंग अच्छी हुई है। उनसे मैंने कहा कि घर आकर मैंने बालों को थोड़ा और सँवारा है।


दिन भर घर के सारे काम निपटाने के बाद शाम को जब फोन में तस्वीर लेने बैठी तो अच्छा लग रहा था खुद का ये नया रूप देखकर।


तो मन ही मन खयाल आया कि थोड़ा इन बालों की सुन लूँ और इनसे अपनी भी बात कहूँ।

“क्या तुम्हारी उँगलियाँ मुझमें इतनी उलझने लग गई थी कि अब तुम मुझे प्यार से सहलाना तो छोड़ो प्यार से निहारती भी नहीं हो? मुझसे परेशान हो गईं थी क्या या मेरे टूटने से तुम भी टूट जाती थी अंदर से। तुम मेरे एक ही रूप से परेशान तो नहीं हो गई थी जो मुझमें बदलाव कर लिया तुमने। या तुम खुद को मेरे जरिए एक नया रूप दे रही हो क्योंकि मैंने तुम्हें जो उलझन और बार बार टूट कर परेशानी में डाल दिया था।”, जैसे मेरे बाल मुझसे बोले।

“क्या तुम भी! कुछ भी कहते हो! सब फिजूल की बातें हैं।”, मैंने उन्हें जवाब दिया।

“हाँ- हाँ मुझे पता है कि जैसे तुम्हारा रूप मेरी खूबसूरती का जरिया है वैसे ही मैं भी तुम्हारी खूबसूरती का हिस्सा हूँ।”, वह बोले।

“जब जानते हो तो क्यों इतने सवाल करते हो? मुझे भी दुःख हुआ जब तुम्हे बदलने के लिए तुम पर कैंची चलानी पड़ी, तुम्हें ड्रायर के गरम तपन से गुजरना पड़ा पर तुम्हें सुंदर बनाने के लिए ये जरूरी था। तभी तो लोग कहेंगे कि सुजाता के बाल हर रूप में सुंदर लगते हैं।”, मैंने उन्हें समझाया।

“ओह, अच्छा तो ये बात है! चलो अब ये कोशिश हमारी भी रहेगी कि अब आपको उलझकर, टूटकर या दो मुँहे के रूप में अपनी शाखाएँ न फैलाकर तुमको परेशान नहीं करेंगे। तुमने हमपर इतनी मेहनत की उसके लिए शुक्रिया। हमारी दोस्ती यूँ ही बरकरार रहे और हम दोनों आपस में एक दूसरे का खयाल कर एक दूसरे की सुन्दरता में हमेशा बराबरी के भागीदार रहें।”

“मैं तुम्हारे पुराने रूप को अपनी तस्वीरों में देखकर खुश होती हूँ और तुमको इस रूप में आईने में देखकर चहक उठती हूँ। happy friendship day my lovely hair।”, मैं बोली।

“और अब श्वेतांश भी हमें नहीं खींच पाएगा!”, बालों ने हँसकर कहा।

मैं मुस्कराई।

लगा जैसे बालों को भी मेरी बात समझ आई हो। छोटी सी बातचीत के बाद फिर से नई कटिंग से बदले मेरे बालों के साथ मेरी दोस्ती हुई और हमने एक दूसरे के इस रूप को जश्न की तरह मनाया।

2 Responses

  1. बढ़िया रही ये दोस्ती।

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