आग की लपेटों में जलती प्रकृति और उसकी गोद में तड़पते बेज़ुबान जीव
क्या हालत हो गई है हमारे जंगलों की । उत्तराखंड में जगल बुरी तरह से जल कर राख हो रहे हैं। चारों तरफ आग देखकर ऑस्ट्रेलिया में हुए हादसे की दर्दनाक यादें मन को झकझोड़ रही है। जगलों की ऐसी दुर्दशा देखकर मन पसीज सा जाता है। ये बात समझ से परे है कि जंगलों में आग लगने से किसका क्या फायदा है? और हर साल जंगलों में आग लगती जा रही है फिर भी सरकार कोई निर्णय क्यों नहीं ले रही है। दिन प्रतिदिन प्रकृति आग की लपेटों में जल रही है बेजुबान जानवर अपने प्राणों की आहुति दे रहे हैं अफसोस की बात है कि मुँह में जबान होते भी लोग कुछ नहीं कर रहे हैं। एक होता है की गलती से लगी आग और एक होता है जानबूझकर लगाई गई आग! इंसान इतना स्वार्थी हो चुका है कि अपने घर में पाले गए जानवरों की भूख मिटाने के लिए किसी और की बसी बसाई जीवन में आग लगा रहा है। घास और लकड़ी की पूर्ति के लिए सूखे जंगलों को बेरहमी से जलाए जा रहे हैं। हद तो तब हो जाती है कि न्यूज चैनल वाले आग की लपेटों की खबर तो प्रसारित कर रहे है मगर मात्र अपने चैनल के प्रचार के लिए ताकि जनता को लगे कि मीडिया सतर्क है… मगर ना मीडिया सतर्क ना सरकार। अंधेपन की हद पार तो वो लोग कर रहे जिनके आसपास के गाँव के जंगल इतनी बेदर्दी से जल रहे हैं मगर उनकी आँखों में दया नाम की एक परत तक नहीं उमड़ रही है। ऐसे लोगों की आँखें होने से तो अच्छा है की वो अंधे ही हो जाए। रही बात वनविभाग की तो कहाँ चले गए वो जंगल की रक्षा के लिए तैनात किये गए कर्मचारी जो महीने की तनख्वा इसी बात की लेते हैं। अपने घर का भरण पोषण करते वक़्त उनका दिल सीने से बाहर क्यों नहीं आ जाता है जब वो अपनी ड्यूटी का एक हिस्सा भी ईमानदारी से नहीं निभा पाते हैं।
सरकार का तो क्या कहना लड़कियों के कपड़ों और बच्चों की बढ़ोतरी पर चर्चा ऐसे करते हैं जैसे दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण काम यही होगा। कम से कम अब तो जाग जाओ कोई निर्देश तो जारी करो कि जंगलों की आग पर जल्दी से जल्दी रोकथाम लगाई जाए। पिछले एक हफ्तों से श्रीनगर के ऊपरी गाँवों के जंगलों में आग फैलती जा रही है लेकिन वहाँ की सरकार की आँखों में शायद चोट लगी है पट्टी बंधी है इसलिए दिखाई नहीं दे रहा है। भाषण तो ये नेता लोग ऐसे देते हैं जैसे मानों हर काम समय पर करते जनता को खुश करते होंगे मगर ये हालत देखकर खामोशी इन्होंने अपनी जुबान पर रख ली है।
ये हाल केवल यहाँ के जंगलों की नहीं है आसपास के सारे जंगल बेदर्दी से जल रहे हैं। यही बात जब कॉल पर मैंने अपने घर चमोली में बताई तो माँ की जुबान पर भी जंगलों को जलाने वालों के लिए गाली ही निकल रही थी। बता रही थी कि वहाँ पर किसी की गौसाला जलते जलते बची है। पूरे गाँव वालों ने एकत्र होकर उनकी गौसाला बचाई है। मुझे तो ये सोचकर हैरानी हो रही है कि इतनी भयावय घटना होते होते रह गई फिर भी वहाँ ग्राम प्रधान ने वन विभाग को सूचित क्यों नहीं किया ? दुख होता है ये सब देखकर और सुनकर ।
आज एक पहाड़ को देखकर तो मेरा दिल सीने से बहार आ गया क्या डरावनी तस्वीर थी वो ! पर अफसोस कि वो दूसरी घाटी का पहाड़ था मेरे घर से केवल मैं उस पहाड़ को जलते देख अफसोश कर सकती थी। मैं आपको बात दूँ कि वहीं आसपास के जंगल जाने पिछले 2 हफ्तों से लगभग जल भूनकर राख हो चुके हैं मगर तब भी वहाँ के लोगों ने ना वन विभाग को सूचित किया ना ही आग बुझाने का रत्तीभर भी प्रयास किया । हर पहाड़ कोयले की खान की तरह जल रहे हैं और उस कोयले की खान में जाने कितने मासूम जानवरों की जाने जा रही होंगी। हद हो गई हर चीज की। आज की एक तस्वीर आपसे साझा कर रही हूँ। अगर आपके आसपास भी ऐसी हालत हुई है तो कृपया कोई उपाय जरूर करें। वहाँ के वन अधिकारियों को सूचित करें अगर आप आग भुजहने में अपना सहयोग दे सकते हैं तो जरूर एक कोशिश करके देखिए। आपको किसी की जान बचाकर अच्छा लगेगा। जिन पहाड़ों पर अपनी खूबसूरत तस्वीरें लेकर आप अपने मिगतरों से साझा करते हैं उन पहाड़ों को बचाने का एक ये अवसर अपने हाथ से जाने मत दीजिए।
मेरी सरकार से विनम्र निवेदन है की कृपया जाग जाइए वरना बेजुबान जानवरों की हत्या का पूरा श्रेय आपको दिया जाएगा। आपको जनता ने इसलिए चुना है ताकी आप वहाँ और उस राज्य के सभी मुश्किल हालातों में उनके साथ रहे और वहाँ पर आई हर विपदा को दूर करने के लिए हर संभव प्रयास करें ।