अकेले ही ठीक है।
वैसे इंसान अकेले ही ठीक है।
क्योंकि साथी के साथ कई क़िस्म के ताने, और अंजानी उम्मीदें भी मिलती है।
कुछ न कहो तो तुम मुझपे, हक़ ही नहीं समझते।
हक़ जताओ तो, कितना रोक टोक करते हो।
फिक्र करो तो कहते हैं , कुछ ज्यादा ही पोजेसिव हो रहे।
न करो तो ताने, तुमसे एक रिश्ता नहीं संभला जाता।
प्यार मन से करो तो, तन किसी और के लिए बचाया है?
थोड़ा इश्क़िया क्या हुए, तुम्हें उसके अलावा कुछ दिखता नहीं क्या?
रिश्ते को नाम दो, तो चार दिन बाद बंधन समझने लगते हैं।
परिवार में किसी को बुरा न लग जाये, डर डर के जीने लगते हैं।
न डर रहेगा, न सुकून भागेगा।
न प्यार होगा, न फिक्र होगी।
न फिक्र होगी, न दुख होगा।
न बैर बढ़ेगा, न तकरार होगी।
न बैर बढ़ेगा, न तकरार होगी।
न आज़ादी की इच्छा, न ये चिंता कि,किसी को बुरा न लग जाये।
वैसे इंसान अकेले ही ठीक है।
हँसते, मुस्कुराते, स्वस्थ रहिये। ज़िन्दगी यही है।
आप मुझसे इस आईडी पर संपर्क कर सकते हैं.
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© सुजाता देवराड़ी