इज़हार-ए-मोहब्बत
इन गालों पे मेरे,तेरी हथेली के छाप छपे हैं।
इज़हार-ए-मोहब्बत, जब से तेरा दीदार किये हैं।
सबकी नज़रों से तुझे बचाने के, तमाम जतन कर लिए।
पर पलकें मेरी ही चोरी से, तेरी उँगलियाँ गिने हैं।
धुल के चेहरा कई बार, आईने से पूछा मैंने।
सच बता दे कि, चेहरे पे निशान कुछ धुंधले हुए हैं।
जवाब में सच, दर्पण ने कुछ यूँ बयाँ किया ।
तन से सूरत भले मिट जाए, मन की आग कैसे थमे है।
सुलगने दे चिंगारी, सोच के वक़्त जाया न कर।
इत्र की ख़ुश्बू का मिलन, तेरी साँसों में महके है।
ये कोई फूलों का रंग नहीं , जो बरसात में छूट जाये।
ये इबादत है सूफ़ी इश्क़ की, न टूटे है, ना छुपाये छिपे है।