अल्फ़ाज़ों को निकलने दो
अल्फ़ाज़ों को निकालने दो, दिल के आशियाने से।
उन की न उम्र तय करो, न अपने रूप में ढालो।।
आज़ाद परिंदे सा , उड़ने दो उन्हें।
उन्हें भी पनपने दो, हर हालात से लड़ने दो।।
कभी गिरेंगे, तभी संभलेंगे।
शब्दों की भीड़ में जाने दो।।
अल्फ़ाज़ों को निकालने दो,
उन की न उम्र तय करो, न अपने रूप में ढालो।।
भिड़ेंगे लड़ेंगे तभी तो ख़ुद, अपना रास्ता तय करंगे।
मत बाँधो रिश्तों की जंजीरों से।।
मत उलझाओ ,जज़्बातों के लहज़े से।
दर- दर भटकने दो, कुछ दिन।।
एहमियत अपनों की, उन्हें भी समझनी है।
मुस्कुराने दो कुछ दिन, नई दुनिया से मिलने दो।।
अल्फ़ाज़ों को निकालने दो,
उन की न उम्र तय करो, न अपने रूप में ढालो।।
अल्फ़ाज़ों को निकालने दो,
उन की न उम्र तय करो, न अपने रूप में ढालो।।
ना समझ हैं वो, बड़ा होने दो।
सिमटकर कुछ दिन, फिर फैलने दो।।
रूप बदलने दो, तो चेहरे पहचानने जाएंगे।
रुक -रुक न क़दमों को चलने दो।।
अल्फ़ाज़ों को निकालने दो,
उन की न उम्र तय करो, न अपने रूप में ढालो।।
वो उड़ना चाहते हैं , तो हवा सा उड़ने दो उन्हें ।
बरसना चाहते हैं, तो बूदों सा बरसने दो उन्हें ।।
वो मांझी खुद है, पतंग भी उनकी।
ठिठुरती है ठंड से, दहलीज़ भी उनकी।।
ज़ुबाँ की हक़ीक़त से वाकिफ़ होने दो, हर नज़राने से।
उनकी न उम्र तय करो, न अपने रूप में ढालो।