वसंत पंचमी, नाग पंचमी
सरस्वती मंत्र –सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा।
हर वर्ष की तरह वसंत पंचमी आज पूरे भारत में बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है। इस त्योहार को मनाने की परंपरा हर जगह की अलग -अलग है। इसलिए इसको लेकर मान्यताएं भी अलग -अलग है। मगर एक सत्य ऐसा है जो हर व्यक्ति मानता है। और वो है कि इस दिन वाग्देवी माँ सरस्वती का जन्मदिवस है। इसलिए इस पर्व की मान्यता और भी अधिक बढ़ जाती है। मुझे ज्यादा तो इस पर्व के विषय में जानकारी नहीं है। लेकिन, जो बचपन से लेकर आज तक मुझे मेरी माँ, नानी और मेरे बाकी अपनों ने बताया है। मैं वही सब आपसे साझा (शेयर) कर रही हूँ। और शेयर करने का एक कारण ये भी है कि, आज हमारी परम्पराएं अपनी वास्तविकता खोती जा रही है। हमारे पूर्वजों के द्वारा निभाए गए नियमों में भी आधुनिकता अपनी जगह लेती जा रहा है। नई पीढ़ी के हम जैसे के युवाओं को अपनी रीति रिवाजों के प्रति कोई दिलचस्पी (रुचि) ही नहीं रह गई। वो इसलिए भी क्योंकि, उनको जब कोई जानकारी ही नहीं होगी तो कैसे उनके मन में रुचि जागृत (पैदा) होगी। लेकिन इस लेख का मकसद किसी को भी ज्ञान बांटना कतई (बिल्कुल) नहीं है। बल्कि ये लेख लिखने का कारण बस इतना सा है कि, मैं खुद एक पहाड़ी लड़की हूँ। और चमोली जिले के सूना गाँव में मेरा निवास स्थान है। मुझे अपने पहाड़ी रीति रिवाजों से कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है। जानने की लालसा पैदा होती है कि, कैसे हमारे पूर्वजों ने इन त्योहारों और परंपराओं को निभाया है। किन -किन विचारधारों से इन त्योहारों का संबंध है। इन त्योहारों की खासियत क्या है। गाँव की कौन-कौन सी वस्तुएं इन त्योहारों से अपना रिश्ता वर्षों से कायम किये हुए हैं। यही सब आप सबको भी बताना चाहती हूँ।
वसंत पंचमी के दिन एक प्रार्थना गाई जाती है। इसी प्रार्थना को हम अपने स्कूल के दिनों में गाया करते थे। आपने भी गाया होगा। वो प्रार्थना इस प्रकार है।
सरस्वती प्रार्थना
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥
शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्॥2॥
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माना जाता है कि, वसंत पंचमी के दिन जो इस प्रार्थना का गायन कर माँ देवी सरस्वती को प्रसन्न करता है। देवी माँ सरस्वती की उसपर असीम कृपा होती है। इस दिन विद्या कि देवी सरस्वती कि पूजा अर्चना की जाती है। देवी माँ सरस्वती के जन्म को लेकर भी एक कथा है।
कथा-
उपनिषदों में वर्णित कथाओं के अनुसार सृष्टि के प्रारम्भिक काल में भगवान शिव की आज्ञा से सृष्टि रचियाता (संसार की रचना करने वाले) भगवान श्री ब्रम्हा ने जीवों और मनुष्य योनि की रचना की थी लेकिन अपनी ही की गई रचना से वे स्वयं संतुष्ट नहीं थे। क्योंकि मनुष्यों और जीवों की उत्पति तो हो गई थी। मगर चारों तरफ मौन ही मौन छाया था। क्योंकि किसी में भी आवाज़ नहीं थी। लोग आपस में बात नहीं कर सकते थे। इसी समस्या के निवारण के लिए ब्रम्हा जी ने अपने कमण्डल से जल को अपने हाथों में लेकर संकल्प मन से जल को छिड़ककर भगवान श्री विष्णु कि स्तुति आरम्भ की। ब्रम्हा जी द्वारा भगवान विष्णु का आव्हान से विष्णु प्रकट हुए और ब्रम्हा की समस्या जानकार विष्णुजी ने माँ दुर्गा का आव्हान किया। माँ दुर्गा से विष्णु और ब्रम्हा जी ने इस समस्या के निवारण का निवेदन किया। उसी पल माँ दुर्गा के शरीर से स्वेत रंग का एक अदभुद तेज उत्पन्न हुआ। जिसने एक चतुर्भुजी सुंदर दिव्य नारी का रूप लिया। जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा थी। और अन्य दो हाथों में पुस्तक एवं माला थी। आदिशक्ति माँ दुर्गा के शरीर से उत्पन्न इस तेजमई देवी ने वीणा का मधुर नाद किया। उनके इस नाद से सभी देव प्रसन्न होकर प्रफुल्लित हो उठे। साथ ही इस नाद से संसार के समस्त जीव- जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई। नदियों में कोलाहल पैदा हो गया। हवा में सरसराहट होने लगी। प्रत्येक मनुष्य अपनी आवाज से ही प्रसन्नचित हो उठे। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार करने वाली उस देवी को वाणी कि अधिष्ठात्री देवी सरस्वती कहा । लेकिन बात यहाँ खत्म नहीं होती। ब्रम्हा जी के आव्हान पर माँ सरस्वती का जन्म हुआ जरूर है। पर आदिशक्ति माँ दुर्गा के तेज से उत्पन्न इस दिव्य शक्ति को माँ दुर्गा ने श्री ब्रम्हा जी की पत्नी के रूप में भी समर्पित किया। और कहा “ कि हे सृष्टि के रचियाता ब्रम्हा देव जिस तरह श्री विष्णु की शक्ति देवी लक्ष्मी हैं, भगवान शंकर की शक्ति देवी पार्वती हैं उसी तरह देवी सरस्वती को आज से आपकी शक्ति यानि आपकी पत्नी के रूप में पूरा संसार जानेगा।” इतना कहकर माँ दुर्गा वहाँ से अंतर्ध्यान हो गई। देवी सरस्वती को ब्रम्हा जी ने वागेश्वरी, भगवती,शारदा, वीणावादनी,वाग्देवी, सुर साम्राज्ञी, संगीत कि देवी आदि नामों से संसार में विख्यात किया। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्राणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। माँ कहती थी कि, भगवत कथा पुराणों में ये भी वर्णित है कि, भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें ये वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन उनकी भी पूजा आराधना की जाएगी। और उसी दिन से हिन्दू धर्म में इस दिन विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा होती है।
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इसके आलवा हिन्दू परंपरा के अनुसार वर्ष भर में पड़ने वाली छह ऋतुओं (वसंत,ग्रीष्म, वर्षा,शरद,हेमंत और शिशिर) में वसंत को सभी ऋतुओं का राजा माना जाता है। और इस त्योहार का आगमन वसंत ऋतु में ही हुआ था। जिसमें पंच परमेश्वर देवों की आराधना की जाती है। इसलिए इसे वसंत पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इसे ऋतु परिवर्तन का दिन भी माना जाता है। मान्यता ये भी है कि, इस ऋतु में नाग देवता भी अपने घरों से बाहर निकल जाते हैं। इसलिए इसे नाग पंचमी के नाम से भी पुकारा जाता है। इस दिन नाग देवों को भी पूजा जाता है। कहते हैं कि, वसंत नाग पंचमी के दिन अंधेरे में ही स्नान करने के बाद अपने मस्तक पर तिलक लगा देना चाहिए । ऐसा करने से सांप नहीं दिखाई देते हैं। इस दिन पीले वस्त्र धारण किये जाते हैं। वो इसलिए क्योंकि, वसंत ऋतु में पीली सरसों खिलकर पूरे प्रकृति को सोंदर्यमय बना देती है। पेड़ पौधों कि पत्तियां भी अपना रंग बदल कर पीली हो जाती हैं। फूलों पर भी बहार खिल जाती है। अगर आपने कभी इस बात पर ध्यान ना दिया हो तो, इस बार जरूर देना।
हमारे यहाँ वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती कि पूजा अर्चना तो होती ही है। साथ में पूरी पकवान के साथ भगवान को भोग भी लगाया जाता है। जौ कि पत्तियों को तिलक लगाकर उसकी पूजा कर फिर गाय के गोबर के साथ घर के दरवाजों पर लगाया जाता है। गंगा में स्नान कर माँ गंगा कि आरधना कर सूर्य भगवान को जल अर्पण किया जाता है। तथा दान पुण्य किया जाता है। इसी दिन छोटे कन्याओं के नाक कान छिदाये जाते हैं। और घरों में शुभ कार्य किये जाते हैं। माना जाता है कि, इस दिन शादी करना बहुत शुभ होता है।
हमारे उत्तराखंड में एक जगह कुमाऊँ बागेश्वर है। जहां इस दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। लोगों की भीड़ इस मेले में हर जगह से उमड़ती है। और यहाँ गंगा स्नान करना अति शुभ और पवित्र माना जाता है। लोग अपने मन के बैर इस गंगा में स्नान करके दूर करते हैं। और मेले का आनंद लेकर अपने अपने घरों को जातें हैं।
ये सच है कि, हर किसी की अपने रिवाज होती है। त्यौहारों को मनाने के अपने तौर तरीके होते हैं। और ये भी सत्य है कि, हर उत्सव के पीछे एक रहस्य होता है। जिसमें बहुत जानकारियाँ छिपी होती हैं। हमारे शास्त्रों का ज्ञान छिपा होता है। अपनी संस्कृति की झलक होती है। तो आप भी अपने रीति रिवाजों , अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाएं, पारंपरिक त्यौहारों की परंपरा को आगे बढ़ाएं, अपने बच्चों को इन सबका ज्ञान दें, जानकारी दे। ताकि, आने वाले समय में भी हिन्दू संस्कृति की महत्ता कायम रहे। हमारी नई पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति की ओर अग्रसर ना होकर अपनी संस्कृति को बढ़ावा दे। उसको सम्मान दें। इस छोटे से लेख के जरिए मैंने वसंत पंचमी को मनाने की एक कहानी आपसे साझा की । उम्मीद है आपको पसंद आई होगी।
इस लेख में केवल मैंने मेरी जानकारी को साझा की है। जो मुझे कभी मेरे बड़ों ने बताई थी। हाँ बस श्लोकों को मैंने अपने पंडित से पूछा है। क्योंकि वो माघ के महीने पंचमी को घर में खिचड़ी खाने आये थे। और प्रार्थना मुझे याद थी। क्योंकि स्कूल में गाते थे। मैं शहर में अकेले रहने के बाद भी अपने हर त्यौहार को पूरी शिद्दत के साथ मनाती हूँ। हालांकि शहर में गाँव कि तरह त्यौहार नहीं मना पाती हूँ। पर जो पकवान गाँव में बनते हैं सभी को बनाती हूँ। इस बार की वसंत पंचमी मैंने अपने माँ और भाई के साथ अपने गाँव थराली सूना मैं मनाई। बहुत अच्छा इसलिए भी लगा । क्योंकि मैंने गाँव में पूरे 6-7 साल के बाद वसंत पंचमी मनाया।
आपका ये त्यौहार कैसा रहा, आपने किसके साथ ये त्यौहार मनाया, आपके यहाँ इस त्यौहार को लेकर क्या मान्यताएं हैं, पंचमी के दिन आपके यहाँ किन- किन पकवानों का भोग लगाया जाता है। मुझे कमेन्ट करके जरूर बताएं।
समाप्त
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© सुजाता देवराड़ी