गाँव की यादें

गाँव की यादें
गाँव की यादें बुलाये मुझे, घर आजा, घर आजा पुकारे मुझे |
वो बचपन का खेला, वो मिटटी का ठेला |
खेतों मैं जाकर, वो छुपना छिपाना ||
वो तितली पकड़कर, उछलना मचलना |
वो कपडे की गुडिया सुलाए मुझे ||
घर आजा, घर आजा बुलाये मुझे |



घर से मैं निकला हूँ, पैसे कमाने |
दर- दर भटकता, मैं दाना जुटाने ||
मेहनत की रोजी मुझे मिल गई जब |
बापू की बातें मेरी सच हुई अब ||
मगर मुझको भाये ना, अब भी कोई घर |
वो कंचे की खन- खन,  बुलाये मुझे ||
घर आजा, घर आजा बुलाये मुझे |

मेरे दिन का सूरज, ढलता है जब भी |
भूखी रहूँ मैं, ना जाऊं कहीं भी ||
वो चिड़ियों की चूं- चूं, पेड़ों की सर- सर |
मुझे याद आती है, माई की गोदी ||
मेरी रात होती है, जब भी कहीं पर |


बांधे मुझे वो, ममता का आँचल ||
वो धारे का पानी, खिली पीली सरसों |
वो बापू की ऊँगली, बुलाये मुझे ||
घर आजा, घर आजा पुकारे मुझे |
गाँव की यादें बुलाये मुझे

नोट- ये कविता उत्तरांचल पत्रिका के फरवरी अंक में प्रकाशित हुई है।

हँसते, मुस्कुराते, स्वस्थ रहिये। ज़िन्दगी यही है।  

आप मुझसे इस आईडी पर संपर्क कर सकते हैं.
sujatadevrari198@gmail.com
© सुजाता देवराड़ी

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