गुलाबी धूप | हिन्दी कविता

Gulabi Dhoop
Image by Myriams-Fotos from Pixabay

ठिठुरती ठंड में तेरा गुलाबी धूप सा मुझे छूकर
मेरे कानों में धीमें से मुझे पुचकारना
और कहना कि मुझे प्यार की बेल सा तुमसे लिपटना है।

सिमटती रात में तेरे दहकते लबों का मुझे नाजुक कर
इशारों में बहकते हुए ये जाताना और करीब आकार ये कहना कि
मेरी उँगलियों को तेरे चेहरे पर भटकना है।

खामोश लम्हें में भी धड़कनें तूफान सी तेज होकर जो शोर मचाने लगी
और तेरा मेरे सीने के फर्श पर गिरकर, मचलते जज़्बात सा डोलना
फिर बारिश की बूँद बनके खुद कोई राग छेड़कर
बैचनी को तोड़ते हुए ये कहना कि
आज तुमने मुझे खुद में बर्फ़ सा पिघलाना है ।

वो गुनगुनी सुबह जब अपने अर्श पर होगी
तेरा हाथ मेरे हाथ में होगा
माथे पर गिरी ओस की बूँद का मोती
इस रात के पूरा होने का साक्षी होगा।

बनावटी सर्द हवा का बहाना कर
तेरा फिर मुझसे रूबरू होकर
मेरे बालों में हाथ फेरकर मुझे बहलाना
और कहना कि
ताउम्र तुम्हें मेरे नज़दीक होकर
मेरी साँसों इस आहट को सुनना है।

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हमारे दरमियाँ पनपे प्यार के इस एहसास को
हर लम्हाँ महसूस करना है।

© सुजाता देवराड़ी

1 Response

  1. बहुत भावुक, सुकोमल प्रेमाभिव्यक्ति ।

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