सफर हारुल ‘मेरी प्यारी छुमा’ के बनने का

हारुल प्यारी छुमा - पोस्टर
हारुल प्यारी छुमा - पोस्टर

नमस्कार दोस्तों अगर आप मुझे जानते हैं या मेरे लेखन को पढ़ते आए हैं तो आप यह बात भी जानते होंगे कि मैं लेखन के साथ-साथ गायन भी करती हूँ। जहाँ हिंदी और गढ़वाली गीत मैं लिख लेती हूँ वहीं जब गाने की बारी आती है तो मैं गढ़वाली और हिंदी से इतर अन्य अन्य पहाड़ी भाषाओं में गाने की मेरी कोशिश रहती है। अपनी इसी कोशिश और रुचि के चलते मैंने जौनसारी भाषा में अब तक दो गीत गाए हैं पर वह दूसरे चैनलों के लिये थे। एक हारुल को गाने का अनुभव तो अपने आप में एक रोचक कहानी थी जिसे मैंने पहले आपके साथ एक अलग अनुभव की खुशी नामक लेख में साझा किया था। आप यह लेख यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं। इसके बाद मेरा एक गीत गोरख्या मामा भी आया जिसे लोगों द्वारा काफी सराहा गया। ऐसे में अब मैं जौनसारी भाषा का एक गीत अपने चैनल के लिये भी गाना चाहती थी।

जौनसारी भाषा पर क्योंकि मेरी पकड़ नहीं है तो इस गीत के लिये मुझे एक लेखक की जरूरत थी। वह लेखक मुझे प्रवीन बनाली (Praveen Banali) के रूप में मिले। प्रवीन बनाली (Praveen Banali) युवा लोक गायक और लेखक हैं जिन्होंने जौनसारी गीतों में अपना अलग पहचान बनाई है। उनके काफी गीत आ चुके हैं और उनके गीत बिंदिये ने लोगों पर अपनी एक अलग छाप छोड़ी थी। ऐसे में मैं इस कॉलेबोरेशन को लेकर उत्साहित थी।

अब चूँकि प्यारी छुमा यू एन मी क्रीऐशनस (U ‘N Me Creations) से रिलीज हो चुका है और दर्शकों द्वारा इसे काफी प्यार और आशीर्वाद मिल रहा है तो मैंने सोच क्यों न इसके बनने के रोचक सफर को भी आपसे साझा किया जाए।

चूँकि हारुल जौनसार इलाके का लोकगीत है तो मुझे लगता है कई लोगों को इसके विषय में ज्यादा जानकारी नहीं होगी इसलिए कुछ साझा करने से पहले यहाँ मैं हारुल के विषय में आपको बताना चाहूँगी। हारुल जौनसार में गाया जाने वाला एक गीत होता है, जिसे किन्हीं विशेष मौकों पर गाया जाता है। उदाहरण के लिये – किसी त्यौहार पर, मेलों के आयोजनों पर या फिर किसी विशेष पारिवारिक या सामाजिक पर्व पर। ये जौनसार बावर में गाया जाने वाला एक ऐसा गीत है जिसे एकल और दो लोगों के जोड़े से लेकर एक बड़े समूह में गाया जा सकता है। इसके नृत्य कि शैली भी बिल्कुल वही है कि इस गीत पर जोड़े से लेकर समूह तक नृत्य कर सकता है। हारुल के ऊपर मैंने एक विस्तृत लेख जौनसार का लोकगीत हारुल भी लिखा था जिसे पढ़कर आप विस्तृत रूप में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

अब चूँकि चैनल से हमने हारूल को रिलीज करने का फैसला कर लिया था तो इसे रिकार्ड करने की बारी थी। गीत को रिकार्ड देहरादून से लगभग चालीस किलोमीटर दूर विकास नगर में किया जाना था। ऐसा इसलिए भी जरूरी था क्योंकि वह इलाका जौनसार के नजदीक है और इस कारण जौनसारी भाषा की पकड़ वाले अच्छे रिकार्डिस्ट उधर मौजूद हैं। इस गीत को रिकार्ड करने के लिये हमने प्रभु पँवार (Prabhu Panwar) जी के स्टूडियो का चुनाव किया। प्रभु पँवार जी के स्टूडियो में पहले मैं गोरख्या मामा गा चुकी थी तो इसलिए इस गीत पर भी उनके साथ ही काम करना चाहती थी। उन्हीं के द्वारा इसका संगीत करवाना चाहती थी। अब उधर गीत रिकार्ड करने का फैसला तो कर दिया लेकिन बारिश के चलते यह गीत रिकार्ड करने का प्रोग्राम टलता रहा। चूँकि जगह दूर है तो तेज बारिश के चलते वहाँ जाने का प्रोग्राम कैन्सल होता रहा और इस कारण गीत को रिकार्ड करने में एक हफ्ते से ऊपर का वक्त लग गया। पहले तो हम चाहते थे कि बारिश रुके और फिर हम विकास नगर जाएँ लेकिन जब बारिश के रुकने के कोई आसार नहीं दिखे तो प्रवीन और मैंने ऐसे ही जाने का फैसला कर दिया। 27 जुलाई की सुबह हम लोग विकास नगर के लिये निकले थे बारिश हो ही रही थी। पहले हम लोग बाइक या स्कूटी से जाने की सोच रहे थे पर जब बारिश नहीं रुकी तो कार से जाने का ही फैसला कर लिया। प्रवीण अपनी कार लेकर आए थे और उसी में हम विकास नगर गए और स्टूडियो में गीत को रिकार्ड कर आए। गीत के रिकार्ड होने के एक हफ्ते बाद हमें इसकी एक डमी मिल गयी जिसके ऊपर हम वीडियो बना सकते थे।

प्यारी छुमा के रिकॉर्डिंग के दौरान प्रभु पँवार के स्टूडियो में
प्यारी छुमा हारुल की रिकॉर्डिंग के दौरान
प्यारी छुमा हारुल की रिकॉर्डिंग के दौरान

सब कुछ तैयार था लेकिन बारिश के चलते वीडियो शूट करना भी टल रहा था। गाने की रिकॉर्डिंग तो स्टूडियो के अंदर करनी होती तो बारिश में हो सकती है लेकिन शूटिंग में काफी दिक्कत आ ही जाती है। एक तो आपको ढंग के लोकेशन नहीं मिलते क्योंकि कोहरा रहता है। फिर महंगे उपकरणों के खराब होने का डर भी रहता है। ऐसे में हमे ऐसा दिन निर्धारित करना था जो शूटिंग के लिहाज से ठीक हो। काफी इंतजार के बाद 31 जुलाई को ऐसा दिन आया और हम लोग शूटिंग के लिये तैयार होकर घर से तय किये गए स्थान की ओर निकले। हम इस गीत को मालदेवता के ऊपर बसे एक गाँव पर शूट करने वाले थे पर शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। हम लोगों का जैसे ही रायपुर तक पहुँचना ही था की मेघों ने अपनी पोटली से बारिश की ऐसी बौछार करनी शुरू कर दी कि हम लोग गाड़ी में बैठकर चाय पीते पीते इंतजार करने के सिवा कुछ और न कर सके। बारिश के रुकने का काफी इंतजार हमने किया लेकिन जब उसने थमने का नाम न लिया तो हमने आगे जाने के बजाय घर लौटने में ही अपनी भलाई समझी।

दो दिन तक हमनें बारिश के रुकने का इंतजार किया लेकिन मौसम बदलने का नाम ही नहीं ले रहा था। एक शूट काफी लोगों के सहयोग के चलते होता है तो कई बार आपको उनके समय का भी ख्याल रखना होता है। हर आर्टिस्ट के अपने कुछ पहले के कमीटमेंट्स होते हैं इसलिए वह ज्यादा समय आपको नहीं दे सकता है। ऐसा ही मेरे और प्रवीन के साथ था। प्रवीन को भी कहीं बाहर जाना था तो ज्यादा इंतजार हम नहीं कर सकते थे। ऐसे में दो अगस्त को हमने एक बार फिर से शूट करने की कोशिश करने की ठानी। अगर दो को शूट हो जाता तो ठीक था वरना शूट दो तीन महीने तक लटक सकता था क्योंकि प्रवीन बाहर जा रहा था। 2 अगस्त की सुबह मैं ये दुआ कर रही थी कि बारिश न हो लेकिन जब उठी तो ऐसा लगा कि दुआ कबूल नहीं होने वाली है। आसमान में बादल छाए हुए थे और बारिश होने के पूरे आसार दिख रहे थे। उन बादलों के छटने का इंतजार करते करते बारह बज गए थे। वहीं प्रवीन भी सुरेन्द्र बिष्ट (Surendra Bisht) जो कि इस वीडियो के डीओपी थे के यहाँ पहुँच चुका था। अब और इस शूट को टाला नहीं जा सकता था। ऐसे मैंने भगवान का नाम लिया और शूट कन्टिन्यू के लिये निकलने का निर्णय लिया। हम लोगों ने आपस में यह निर्धारित किया कि इस बार हम पहले की निर्धारित लोकेशन के बजाय कोई नजदीक का स्थान इस शूट के लिये चुनेगे।

अब मैं हमारे डी. ओ. पी. सुरेन्द्र बिष्ट (Surendra Bisht) और डायरेक्टर कांता प्रसाद (Kanta Prasad) एक गाड़ी से लोकेशन तक पहुँचने वाले थे। वहीं प्रवीन अपने दोस्तों के साथ अपनी गाड़ी से उधर आने वाले था। हम जब निकले थे तो तब भी आसमान में बादल छाए हुए थे। हम लोग अपने शूट के लिए निकल पड़े। इस बार हम लोग माल देवता की नदी पर यह शूट करने वाले थे। लोकेशन बड़ी प्यारी थी। चारों तरफ हरे भरे पेड़ थे। सड़क से होकर नदी की तरफ हमें जाना था। नदी के दूसरी तरफ हरे भरे पहाड़ दिखाई दे रहे थे और पहड़ों की तलहटी में बसे गाँव के घर भी हम देख पा रहे थे। हमारी गाड़ी चूँकि जल्दी पहुँच गयी थी तो हमने चाय पीते पीते उधर प्रवीन के आने का इंतजार किया। कुछ समय बाद ही प्रवीन की गाड़ी उधर आयी और हम लोग शूट के लिये तैयार हो गए। हमने इस गाने को दो जगह पर शूट किया। एक तो हमने नदी के किनारे शूट किया। इसके बाद गीत में एक जगह खेतों का जिक्र था तो जाते हुए हमने एक ऐसी जगह देख ली थी जहाँ खेत थे। हम लोग नदी से शूट खत्म कर जब लौट रहे थे तो उस जगह पर रुके और हमने गीत के दूसरे भाग को शूट किया। यह भी एक बहुत प्यारी लोकेशन थी। हरे भरे खेत इधर थे और गाँव के घर इधर थे। शहर की चिलपौ से दूर एक अलग सुखद अहसास इधर हो रहा था।

लगभग तीन घंटे की कड़ी की मेहनत हमने इन दो स्थानों पर की और गीतों के अलग अलग भागों को शूट करने में हम कामयाब हो गए। चूँकि हम बारह बजे के करीब घर से निकले थे तो कहीं पर यह डर भी था कि कहीं शूट के बीच में अँधेरा न हो जाए लेकिन खुशकिस्मती से हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ।

शूट में बीजी होने के चलते मैं ज्यादा फोटो तो नहीं ले पाई लेकिन आपको वीडियो के कुछ स्टिलस दिखा तो सकती हूँ जिससे आपको उन जगहों की खूबसूरती का आइडिया तो हो ही जाएगा।

प्यारी छुमा शूट के कुछ पल
हरे भरे खेत, गाँव के घर और यह कल कल करती नदी आपको सम्मोहित कर देते हैं
हरे भरे पहाड़ तो हैं ही लेकिन कई बार शूट के लिये पत्थरों पर भी चढ़ जाना पड़ता है, डायरेक्टर साहब का आदेश मानना ही पड़ता है
शूट का एक और पल
हरे भरे खेत और हम

शूट खत्म होने के बाद टीम के साथ कुछ फ़ोटोज़।

मैं, कांता प्रसाद, प्रवीण और उनके दोस्त
सुरेन्द्र जी, मैं, प्रवीण और उनके दोस्त

शूट तो डमी ऑडियो से खत्म हो गयी थी लेकिन अभी मुख्य ऑडियो पर काम होना था। गीत का ऑडियो प्रभु पँवार जी तैयार कर चुके थे लेकिन उन्हे फिर किसी व्यक्तिगत कारण से घर जाना पड़ा तो जो ऑडियो हमें तीन दिन पहले मिलना था वह तीन दिन बाद मिला। कई बार गीत आने के बाद जब हम उसे चेक करते हैं तो कई जगह गाते हुए गलती हो जाती है और उसे दोबारा से रिकार्ड करना होता है। जब गीत मिलने में देर हो रही थी तो मुझे एक डर यह भी था कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो गयी हो और हमें दोबारा से गीत के कुछ अंश रिकार्ड न करने पड़े। अगर ऐसा होता तो हमें फिर विकास नगर जाना पड़ता और गीत कुछ और दिनों के लिये या हफ्तों के लिये लटक सकता था। पर खुशकिस्मती थी कि ऐसा नहीं हुआ। कुछ बदलाव तो करने थे लेकिन म्यूजिक डायरेक्टर प्रभु पँवार को ही करने थे। वह लौटकर आए तो उन्होंने तेजी से अपना काम निपटाया और गीत शूट होने के एक हफ्ते बाद हमने उसे रिलीज कर दिया।

तो यह थी हारुल प्यारी छुमा के बनने की एक कहानी। इसे मैंने संक्षिप्त रखने की कोशिश की है। उम्मीद है आपको यह संस्मरण पसंद आया होगा। हारूल के बारे में इतनी बातें तो हो चुकी हैं तो अगर आप उसे सुनना चाहें तो नीचे दिये लिंक पर जाकर सुन सकते हैं। चूँकि हारुल जौनसारी भाषा में है तो अच्छा रहेगा कि मैं आपको इसका अर्थ भी थोड़ा बहुत बता दूँ ताकि अगर आपको जौनसारी भाषा समझ न आती हो तो भी आप इस गीत में निहित अर्थ को समझ सकें।

यह गीत एक प्रेमी जोड़े पर आधारित है। गीत में प्रेमी अपनी प्रेमिका को अपने गाँव और गाँव के रीति रिवाजों के विषय में बता रहा है।

जैसे कभी हम लोग डांडा (पहाड़ों) पर जाते हैं और अपने दोस्तों को बुलाते हैं कि आप लोग भी आओ और डांडा में साथ घूमते हुए नाचते खेलते हैं। वैसे ही लड़का अपनी प्रेमिका को बुलावा दे रहा है। वो कह रहा है कि जब गाँव में रोपड़े लगतें है और अनाज की रोपाई होती है तब खेतों में पानी लगाया जाता है। उसी दौरान गा-गा कर इस कार्य का आनंद लिया जाता है। गाजे बाजों के साथ रोपड़ किया जाता है।

इस गीत में एक गाँव पोखरी को इंगित किया है और बताया गया है कि जो हमारा पोखरी का गाँव है वहाँ बहुत ही सुंदर मेला होता है। हमारे गाँव में जब नाग देवता की डोली आती है तो सारे गाँव के लोग नाचते खेलते और गाते है।

मुख्य तौर पर इस गीत में बताया गया है कि जौनपुर जौनसार की रीति रिवाज बहुत सुंदर हैं और ढोल के साथ यहाँ हर तौहारों को मनाया जाता है।

उम्मीद है इस भावार्थ से आपको गीत को समझने और उसका आनंद लेने में थोड़ी बहुत मदद मिलेगी।

हारुल प्यारी छुमा

उम्मीद है यह छोटा सा संस्मरण आपको पसंद आया होगा।

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