शादी के बाद नई ज़िंदगी कैसी लगी?
हेल्लो दोस्तो! बहुत समय बाद गुठलियाँ में वापस लिखना शुरू किया है। बहुत समय इसलिए भी कि छोटे बच्चे के साथ वक़्त का पता ही नहीं चलता। हाल तो ऐसा हो गया है कि न करियर को आगे बढ़ा पा रही हूँ और न ही दोस्तों से बात हो पाती है। वो तो भला हो व्हाट्सएप का जो बच्चे को सुलाते समय कम समय में चैट द्वारा हाल- चाल पूछ लिया जाता है।
आज लिखना इसलिए हो पाया कि कुछ पुरानी यादों ने ज़ेहन में दस्तक दी थी। कल की ही बात है बहुत दिनों बाद व्हाट्सअप पर एक दोस्त से बात हुई। मिले हुए तो जाने कितने साल हो गए। उससे दोस्ती कैसे हुई ये एक लंबी कहानी है। ये चर्चा कभी ओर सही।
अभी हाल-फिलहाल में उसकी शादी हुई है। एक जौनसार की लड़की हमारे गढ़वाल की बहू बनी है। जब भी उससे फ़ोन पर बात होती या चैट होती तो मैं हमेशा पूछती “अरे ये तो बता शादी कब कर रही तू?”
जवाब आता “जल्दी ही, अगले साल” इसी तरह का कुछ। हालाँकि उसके बुलाने पर भी नहीं जा पायी। पहला कारण ये था कि शादी बहुत दूर थी ‘जौनसार’ और दूसरा ये कि बच्चा छोटा था। एक बच्चे के साथ किसी समारोह में जाओ तो इतने बैग्स होते हैं कि आधा घर ले जाना पड़ता है। खैर!
उसके बाद उससे बात नहीं हो पाई। अभी कल की ही बात है दिन का समय था। लगभग कुछ एक या दो बजे का। श्वेतांश को सुलाते-सुलाते एक हाथ से थपकी और दूसरे से व्हाट्सएप के स्टेटस स्क्रॉल करने लगी। तभी उष्मिला, मेरी दोस्त, का स्टेटस देख लिया। उसने अपने पति के साथ फोटो लगाई थी।
फ़ोटो पर चैट करके मैंने पूछ लिया “यारा कैसा लग रहा नई लाइफ में!”
उसने अपना तो कुछ जवाब नहीं दिया पर से सवाल दाग दिया। “आपको कैसा लगा था जब आपकी शादी हुई थी?”
उसका जवाब सुन पहले तो मैं हँसी, फिर मैंने जवाब में लिखा “मिक्स फीलिंग्स थी यार, कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। नई रीति नए रिवाज, नई सोच के लोग। सबसे बड़ी बात भाषा का अंतर। वो लोग आपस में अपनी भाषा बोलते तो कुछ पल्ले ही नहीं पड़ता। ऐसा लगता कहीं मेरे बारे में तो बात नहीं कर रहे। घर की याद अलग से। सुबह जल्दी उठने की चिंता कि कहेंगे कि देर से उठी।
हा हा हा बहुत मजेदार होता है वो वक़्त पर सोच के बिल्कुल परे।
उसको तो मैंने इतना ही जवाब दिया पर 3 साल पहले जब मेरी शादी हुई थी तो वो एहसास ऐसे दिलोदिमाग में उतर आया मानो अभी कुछ वक्त पहले ही शादी हुई हो।
इस एहसास को बिना लिखे रह नहीं पाई। कभी कभी लिख देने से आपकी दिमागी हलचल खत्म हो जाती है। चाहे वो याद हो, नया एहसास हो या कोई और बात। फिर ये तो मेरे जज़्बात थे।
मुझे याद है अभी भी वो दिन जब मैं 2 जुलाई 2020 को ससुराल गई। इतना लंबा सफर! लगभग 7-8 घंटे लगे थे हमें मेरे मायके से ससुराल पहुँचने में। मेरी हालात खराब हो गई थी सफर में। वो तो भला हो मेरी बहनों का कि मुझे लहंगे में नहीं साड़ी में जाने की राय दी।
चमोली की लड़की पहुँची पौड़ी गढ़वाल। साँस लेने के बजाय हुई स्वागत पूजा। फिर तुरंत सास भेंट। फिर तुरंत मेहमानों से मिलना। दो दिन सोई नहीं थी ऐसा लग रहा था कि कब बोलें ये लोग कि जाओ तुम हाथ मुँह धो लो।
अगले दो दिन बाद मेरी पहली रसोई थी। मुझे हलवा बनाना था। ऐसा नहीं था कि पहले नहीं बनाया था। 14-15 साल से अकेले थी तो खाना ठीक ठाक बना ही लेती थी। पर ससुराल में किचेन ऐसा लग रहा था जैसे किसी राजा महाराजा का भोग बनाना हो। बनाते बनाते डर कि अच्छा बने न बने।
ये शायद हर लड़की के साथ होता होगा। ससुराल के एक महीने की ज़िंदगी आपको बहुत कुछ सिखाती है।
वो लोग आपने तो होते हैं मगर आप उनसे घुले मिले नहीं होते हैं इसलिए वो पराये से लगते हैं। उनकी पसंद न पसंद आपको पता नहीं होती है इसलिए कुछ उनकी पसंद का बना भी नहीं सकते।
सबसे बड़ी बात आप अपना घर, अपने माँ बाबा, अपने भाई बहन और दोस्तों के साथ अपनी आजादी भी छोड़ कर एक नए घर में जाते हो।
मुश्किल होता है यार उस दौरान। सब रह- रह कर याद आते हैं।
आपकी नई जिंदगी केवल परिवार के साथ ही नहीं बल्कि आपके पति के साथ भी शुरू होती है। बाकियों का तो मुझे नहीं पता पर मुझे उनके साथ भी घुलने मिलने में भी एक हफ्ता लग गया।
घर से फ़ोन आता तो मैं रो जाया करती। घर जाने को उतावली होती पर जा नहीं सकती। मैं तो शादी के बाद 9 दिन में अपने घर गई द्वार बाट यानी पग फेरे के लिए।
हाहाहा अब सोचती हूँ उस बारे में तो हँसी और रोना दोनों भाव चेहरे पर उभर आते हैं। आज उष्मिला ने सवाल पर सवाल पूछ कर सारी यादों को ताजा कर दिया।
“याद आता है वो पल जो उस दौरान बिताया।”