बरसात ने जोड़ी नई याद
बहुत दिनों से गर्मी अपने उफ़ान पर थी कि अचानक बादलों ने बिना कोई शोर किये इस सूनी धरती को भिगोकर तर कर दिया। इन बारिश की बूँदों में वो तड़प थी कि अपने हर रूप को इसने बरसने दिया। चमकीली सी ये बूँदें अपने साथ बहुत सा शृंगार लिए अपनी प्रेमिका यानी इस धरती को सजा रही थीं।
ये प्रेम देख कर बेचारे भूख और पेट दोनों ने एक साथ आवाज लगाई, “मालकिन! कॉफी और पकौड़े बना दोगी क्या? बाहर प्रेम में धरती और अंबर सावन का उत्सव मना रहे हैं। क्या चाय पकौड़ों के साथ हम भी इस उत्सव का हिस्सा बन सकते हैं?”
मैं जब तक जवाब देती इतने में मन ने कहा, “पति से भी पूछ लो”
मैंने पूछा क्योंकि मैं जान गई थी कि उनका भी मन है।
जवाब एक लंबी मुस्कान के साथ आया “बना दो!”
मैं भी वह मुस्कान देख कर खुशी से किचन की तरफ बढ़ गई।
फिर क्या था झट से कढ़ाई निकाली, बेसन घोला, आलू प्याज भी बिना झंझट किये फटाफट कटने को तैयार हो गए। कढ़ाई में तेल तहलका मचाने लगा कि “बहुत भूख है मालकिन जल्दी- जल्दी बैटर डालो ताकि पहले मैं तो बरसात का मजा ले लूँ, फिर आपको संतुष्ट करूँगा”
जब सब राजी तो बेचारा आलस भी अकेला क्या ही करता वो भी दुम दबाकर भागा और सब तैयार हो गया।
अब आलम ये हुआ कि पेट भी तर, धरती भी तर, पति भी खुश और सबसे अच्छी बात शरीर को भी गर्मी से निजात मिल गई।
कभी- कभी सब कुछ कितना अच्छा- अच्छा होता है ना?
बहुत सुंदर…
जी धन्यवाद…