नया अनुभव- युवा सोच और नये विचारों के साथ अनिरुद्ध काला से हुई रु-बरु

नया अनुभव- युवा सोच और नये विचारों के साथ अनिरुद्ध काला से हुई रु-बरु
नया अनुभव- युवा सोच और नये विचारों के साथ अनिरुद्ध काला से हुई रु-बरु

हमारी ज़िंदगी में अलग-अलग अनुभवों का होना हमें परिपक्वता की ओर बढ़ाते जाना होता है। भिन्न-भिन्न लोगों की भिन्न-भिन्न सोच से वाकिफ़ होना और उस सोच से हमें और आपको क्या ग्रहण करना है यही अनुभवी और परिपक्व होना कहलाता है। अब आप भी सोच रहे होंगे कि आज मैं ये ज्ञान की पोटली लेकर क्यों बैठ गई।

दरअसल बात ये है कि आजकल मैंने एक नए अनुभव की तरफ अपने कदम बढ़ाने का प्रयास किया है। एक ऐसे व्यक्ति या ये कहूँ कि लीडर के साथ काम करने का निर्णय किया है जो अपनी ज़िंदगी मैं अपनी मेहनत और कई संघर्षों से दो-चार होकर आज इस मुकाम तक पहुँचे हैं कि अपनी ज़िंदगी की सबसे संघर्षमई पारी खेलने के लिए वो मैदान में उतरे हैं। जी हाँ वो राजनीति के पायदान पर अब खुद को परखने के लिए उतरे हैं। यहाँ तक पहुँचने में उन्हें एक युवा होने के नाते जिन-जिन परेशानियों का सामना करना पड़ा, राजनीति की बिगड़ती पीड़ा से जब वो रूबरू हुए तो अपने जैसे कई युवाओं को इस पीड़ा से उबारने के लिए आज वो खुद राजनीति के मैदान में लड़ने के लिए उतर पड़े हैं।

अब ज्यादा पहेलियाँ न बुझाते हुए मैं बता देती हूँ कि वो कोई बड़ी हस्ती या बड़ा चेहरा नहीं है बल्कि हमारी और आपकी तरह एक आम नागरिक हैं। वो कोई और नहीं अनिरुद्ध काला हैं जो सुमाड़ी गाँव पौड़ी गढ़वाल से बिलोंग करते हैं और बहुत सालों से देहरादून कैंट में रहते हैं। ये एक शिक्षित, समझदार और बिजनेस की समझ रखने वाले व्यक्ति ही नहीं बल्कि राजनीति के दाँव पेंच भी अच्छ तरह समझते हैं। इसलिए अपनी नई सोच को नई पीढ़ी तक पहुँचाने और उनके साथ चलने के लिए वो उत्साहित हैं।

ये सब शब्द यूँ ही नहीं उनके लिए निकले हैं मैं स्वयं उनके साथ एक महीने से कार्य कर रही हूँ उनके साथ उठ-बैठ रही हूँ। उनके साथ जितनी भी मुलाकातें अब तक हुई हैं ये उसका ही नतीजा है कि मैं उनके बारे मैं लिख पा रही हूँ। एक लेखिका होने के नाते मैं हमेशा से ये सोचती हूँ कि अगर किसी व्यक्ति के विषय में आपको कुछ सत्य या अच्छा बुरा लिखना है तो उससे एक बार मुलाकात कर लीजिए, उसे कुछ दिन समझ लीजिए, परख लीजिए ताकि आप अपने लेख के माध्यम से उस व्यक्ति को सही से समाज तक पहुँचा सको।


जरुरी नहीं कि आप किसी हस्ती या जाना पहचाना कोई चेहरे को ही अपनी कलम का विषय बनाओ, किसी सामाजिक मुद्दे को ही लेखनी का हिस्सा बनाओ। कभी-कभी जो चीज़ आपको अच्छी लगे उसे लिख देना चाहिए, बयाँ कर देना चाहिए ताकि आपके माध्यम से वो ख़ास चीज़ बाकी लोगों तक भी पहुँच सके।

अनिरुद्ध काला के बारे में मैं ये कहूँगी कि इतनी कम उम्र में इतना अनुभव उनके पास है कि अगर इन्हें एक मौका दिया जाए तो आपके पास काफी समय होगा इन्हें और क़रीब से जानने का, इन्हें परखने का, इनके कार्यों के प्रति अपनी राय देने का और इन्हे समाज कल्याण के लिए एक स्तम्भ के रूप में स्थापित करने का। मेरा मानना ये कि अगर आम जनता से ही बिना सालों के राजनीतिक अनुभव को लिए कोई आम युवा नागरिक ही राजनीति के हर पायदान पर खड़ा हो जाए तो आधी परेशानियों का अंत तो अपने आप हो जाता है। जरुरी नहीं कि 50 के बाद ही व्यक्ति अपने आपको साबित करने का इन्तजार करता रहे। अगर किसी का भी हुनर आपको ललकार रहा है तो ललकार स्वीकार कीजिये, उम्मीद कीजिये भरोसा कीजिये तभी तो चुनाव सही व्यक्ति का कर पाओगे। अगर सही लगे तो मौक़ा दोबारा दो वरना पावर तो हम सबके हाथ में ही है…।

इनके साथ जब उठना-बैठना हुआ इनको जानने का अवसर जब मिला तो उत्तराखंड बनने के इतिहास से भी मैं परिचित हुई, ऐसा नहीं है कि परिचित नहीं थी, पर गहराई से समझ पाई, सच्चाई जान पाई। इनकी भाषा में मुझे सकारात्मकता झलकती प्रतीत हुई, बड़ों के प्रति आदर दिखाई दिया है, इनके साथ जो काम कर रहे हैं उनके प्रति इनका दोस्ती का रिश्ता दिखाई देता है। ये सब कुछ देखने समझने के बाद ही मैं इनके विषय में कुछ लिख पाई।

इनके माध्यम से उत्तराखंड बनने के संघर्ष के विषय में जो भी जानकारी मुझे प्राप्त हुई, और इनका जज्बा देखकर, युवाओं के प्रति अपनापन और उनकी स्थिति का इनके मन पर किस की तरह छवि बनी है, किस तरह ये उसे सुलझाने का प्रयत्न कर रहे हैं इस बारे में भी उनके विचारों के मैं रु-बरु हुई हूँ। ख़ुशी हुई जानकार कि कोई युवा इस बार न केवल युवाओं को समझेगा बल्कि सभी आयु-वर्ग को समझकर उनकी मुश्किलों को हाल करने की योजनाओं की कोशिश के लिए मैदान में उतर रहे हैं। अनिरुद्ध काला केवल कुर्सी पर ही बैठकर राज कर के इरादे से राजनीति में नहीं उतर रहे हैं, बल्कि जनता के साथ बैठकर, उन्हें सुनकर, समझकर राजनीति के दायरे में रहकर समाज को बदलने की योजना बना रहे हैं।

इन्हीं ख्यालों ने मुझे निम्न लाइनें लिखने के लिए प्रेरित किया है:

हम खड़े हैं आपके साथ चलने के लिए,
हम लड़े थे आपके साथ मिलने के लिए।

हम डटे हैं ताकि बेहतर हो उत्तराखंड हमारा
हम मिटे भी थे, आपको हक दिलाने के लिए।

आज नई सोच है आज नया आगाज़ है
आओ हाथ बढ़ाओ, आओ साथ निभाओ
हम चले हैं नई राह पर, आपके सपनों के लिए

हम खड़े हैं आपके साथ चलने के लिए,
हम लड़े थे आपके साथ मिलने के लिए।

पूरी कविता निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

ललकार- एक नए दौर की

© सुजाता देवराड़ी

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