पंदेरा धार पंदेरा
पंदेरा धार पंदेरा
बहता जाए जल धार पंदेरा
तू चंचल, शांत, गुस्सेल कभी
तू ही प्यास बुझाए धार पंदेरा
हे धार कहाँ उद्गम कहाँ अंत तेरा
दिखता कण कण में अंश तेरा
धरती की गोद में इठलाती है
पर्वत झरना झील तू ही है धार पंदेरा
कभी पतली धार बनकर तुम
गंगा में मिल जाती हो
कल कल बहती बहती तुम
हिम पर्वत सी जम जाती हो।
तू शीतल है कई रंग तेरे
कभी श्याम श्वेत कभी कभी काँच सी हो।
नाम तेरे कई जग ने रखे
जग जग में बहे जल धार पंदेरा
पंदेरा धार पंदेरा
बहता जाए जल धार पंदेरा
© सुजाता देवराड़ी