शोध(Research)
शोध क्यों जरुरी है? |
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आजकल हर कोई किसी न किसी विषय पर शोध करता ही रहता है। लेकिन कभी-कभी बिना सोचे समझे, बिना जाने पहचाने शोध करना खुद पर भारी पड़ जाता है। इसलिए शोध की आवश्यकता को जानने से पहले ये जानना जरुरी हो जाता है कि, शोध है क्या ?
शोध अंगे्रजी शब्द ‘रिसर्च’ का प्रयाय है जिसका अर्थ पुनः खोज बिल्कुल भी नहीं है। अपितु गहन खोज है। अर्थात किसी विषय के बारे में गहन अध्ययन और उस पर सोच विचार कर कदम उठाना ही रिसर्च है।
रैडमैन और मोरी ने अपनी पुस्तक ‘द रोमांस ऑफ़ रिसर्च’ में शोध का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, नवीन ज्ञान की पा्रप्ति के व्यवस्थ्ति प्रयत्न को हम शोध कहते हैं।
‘ज्ञान की किसी भी शाखा में नवीन तथ्यों की खोज के लिए, सावधानी पूर्वक किये गये अन्वेषण या जांच पड़ताल को शोध की संज्ञा दी जाती है’
ये नहीं कि दो दिन की चीजें समेटकर उसके विषय में जानकारी देने को हम शोध का नाम देने लगे। शोध अपने अन्दर ही कई ऐसे खोज छिपाए होता है, जिन्हें उजागर करना ही शोध का असल मकसद होता है। शोध के विषय में मेरा खुद का विचार यह है कि, किसी पुरानी वस्तु या शाखा पर व्यक्ति विशेष के द्वारा किया गया शोध ही नये आविष्कारों को जन्म देता है। और वही नयें आविष्कार कुछ सालों या सदियों के बाद किसी और व्यक्ति वैज्ञानिक के लिए शोध बन जाता है।
शोध और आविष्कार दोनों एक प्रकिया है। जो एक दूसरे से ठीक वैसे ही जुड़े है, जैसे शरीर और आत्मा। जैसे आत्मा के बिना शरीर अधूरा होता है, और शरीर के बिना आत्मा वैसे ही बिना शोध के बिना आविष्कार नहीं हो सकता है। और आविष्कार ना हो तो, दुनिया में शोध की प्रकिया ही समाप्त हो जायेगी। हर शोधकर्ता को यह बात जान लेनी अति महत्वपूर्ण है, जैसे एक नॉर्मल यानी (आम व्यक्ति) के लिए खाना आवश्यक होता है, वैसे ही एक शोधकर्ता के लिए उसकी खोजबीन में तत्परता और संयम की आवश्यकता होती है।
हमारा मन सवालों से घिरा होता है, हम दिन में न जाने कितनी दफा कितनों से कितने सवाल कर जाते हैं, हमें खुद भी नहीं पता होता है। लेकिन अगर वैज्ञानिकों की मानें तो, व्यक्ति के दिमाग़ में जितने सवाल होंगे, वो उनके जवाब को ढूँढने के लिए उतना ही उत्सुक रहेगा। लेकिन बिना सवाल के किसी उत्तर का निष्कर्ष करना बेवकूफी के अलावा और कुछ नहीं है।
शोध करने के लिए सबसे पहले हमारे ज़हन में एक सवाल या समस्या का होना अति आवश्यक है। ताकि हम उस सवाल का जवाब और समस्या का हल ढूँढने के लिए शोध की तरफ अग्रसर हो सकें। जैसे हमारे हाथ या पैर में जब चोट लगती है, तभी हम उस पर दवाई लगाने के लिए डाॅक्टर के पास जाते हैं क्योंकि हमारा दर्द हमें डाॅक्टर के पास लेकर जाता है। ताकि हमें उस दर्द से निजात मिल सके। हमारे मन में शोध के प्रति जागृत हुई जिज्ञासा ही हमें उस मार्ग की ओर खींचती है। जिससे ना केवल आपके ज्ञान का विस्तार होता है, अपितु आपके द्वारा कई ओर लोगों को भी ज्ञान की नई प्राप्ति होती है। इसके साथ ही शोध के नयें नयें शैक्षिक अनुसंधानों का भी उद्भव होता है।
विवेकपूर्ण विश्लेषण और अघ्ययन के परिणामस्वरुप किया गया निर्णय ही ,एक सफल शोध की पूर्ती करता है।
जिसके लिए हमें सबसे पहले एक विचार या आइडिया की जरुरत होती है। जिसको सही सोच के साथ विकसित (डेवलप) करना पड़ता है। फिर उसी विकसित (डेवलप) किये गये विचार (आइडिया) को फंड यानी पैसों की आवश्यकता होती है, और फंड की पूर्ती होने के बाद, उस विचार (आइडिया) को किर्यान्वित (एग्जीक्यूट) करने की योजना बनाई जाती है । फिर उस योजना(प्लान) को रिकाॅर्ड किया जाता है और आगेे प्रोसेस किया जाता है। पा्रेसेस करने के बाद उसे प्रकाशित (पब्लिश) किया जाता है और फिर रीड किया जाता है। तब जाकर एक आईडिया शोध करने के लिए तैयार होता है।
देखा जाये तो शोध आज के समय की सबसे महत्वपूर्ण जरुरतों में से एक है। इसकी आवश्यकता इसलिए भी है, क्योंकि आज की नई पीढ़ी कई ऐसे पुराने तथ्यों , विषयों, संस्कृति, रीति रिवाज, संस्कार से अनभिज्ञ है जिसे जानना उसके लिए महत्वपूर्ण है। यह आज की जरूरत है कि वो उन्हैं जानकर समझकर उन पर अपने नऐ विचारों का परिक्षण कर सके ताकि एक नवीन प्रणाली का जन्म हो सके । हमारा शोध करने का मकसद केवल ये जानना नहीं होना चाहिए कि, प्राचीन संस्कृति केसी थी बल्कि ये जानना भी महत्वपूर्ण होना चाहिए कि, बीते दशक के जिस विषय में शोध किया जा रहा है उसमें ऐसा क्या खास था कि, उसे उस देश की संस्कृति में शामिल किया गया और अगर तकनीकी शोध है तो, तब के समय के उपकरणों और उनकी सोच को उस वस्तु या विषय में केैसे इस्तेमाल किया गया है? यह भी शोध का एक बहुत ही जरूरी हिस्सा है। शोध करने के पीछे एक और सवाल हमेशा अपने पास होना जरुरी है और वो सवाल ये है, कि उस शोध को उजागर करने का हमारा उद्देश्य क्या होना चाहिए ताकि आज की युवा पीढ़ी उस शोध को उतनी ही शिद्द्त से स्वीकार कर सके।
शोध एक प्रकिया है जो कई चरणों से होकर गुजरती है। जैसे-
- अनुसंधान समस्या का निर्माण
- समस्या से सम्बन्धित साहित्य का व्यापक सर्वेक्षण
- परिकल्पना (हाईपोथीसिस) का निर्माण
- शोध की रुपरेखा या प्रारुप
- आँकड़ों एवं तथ्यों का संकलन
- परिकल्पना की जाँच
- सामान्यीकरण एवं व्याख्या
- शोध प्रतिवेदन (रिसर्च रिर्पोट) तैयार करना
शोध की भारतीय परंपरा, जगत के अंतिम सत्य की ओर लेकर जाती है। अंतिम सत्य की ओर जाते ही तथ्य गौण होने लगते हैं, और निष्कर्ष प्रमुख । तथ्य उसे समकालीन से जोड़ते हैं, और निष्कर्ष देश काल की सीमा को तोड़ते हुए, समाज के अनुभव विवेक में जुड़ते जाते हैं। ये सच है कि, शोध करने से उस वस्तु या विषय के साथ कुछ अनुचित होना भी स्वाभाविक है। कई जाति धर्म और समुदायों को ठेस भी पहुँचती है। वो इसलिए क्योंकि प्रक्रिया में अन्तर आ जाता है,सोच में अंतर आ जाता है,भावनाओें का अंतर आ जाता है। अब क्योंकि दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं है,जो भावनाओं से ना जुड़ी हो तो कोशिश हमेशा यह होनी चाहिए कि, हमारे द्वारा किया गया शोध सबकी सोच को सााथ लेकर किया जाय। ताकि समाज का हर नागरिक उससे कुछ सीख कर उसमें अपनी भावनाओं को एक खास स्थान देकर उसे अपनाने में अपना योगदान दे।
दुनिया में हर दिन कई तरह के शोध होते हैं। कुछ उजागर होते हैं और कुछ बस बंद फाईलों में पडे़ रह जाते हैं। हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि ऐसी चीजें जो या तो दुनिया से लुप्त होती जा रही है या उन्हें किसी और गलत तरीके से समाज के सामने पेश किया जा रहा है से जुड़े तथ्यों को प्रकट कर हम उसे उसके असली स्वरुप में उजागर करें।
हमे इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि जिस सवाल को लेकर हमने शोध किया था उस सवाल अपने शोध में छोड़ जाना हमारे शोध का ना पूरा होना है। क्योंकि अगर वही सवाल किसी और शोधकर्ता को आपके शोध में नज़र आया तो, फिर उसी शोध को दोबारा कर वो खुद को आपसे उपर रखने की पूरी कोशिश करेगा। तो इस बात का हमें विशेष ध्यान देना चाहिए कि जिस सवाल को लेकर हमने शोध शुरू किया उसका उत्तर हम अपने शोध के माध्यम से लोगों के सम्मुख रख सकें।
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© सुजाता देवराड़ी