साक्षात्कार -भारत की पहली अलोपेशियन मॉडल (केतकी जानी )

मॉडलिंग के दौरान


“गर भर ले आग़ोश में जूनून को अपने, तो सफ़र मुश्किल का तय कर सकता है।  

                   हवा धूल उड़ाने का शौक़ रखती है तो,  मेहनत भी पसीने को अमृत बना सकता है”।।
ये सच है कि ज़िन्दगी हमेशा एक जैसी नहीं रहती है। और ना ही वक़्त एक सा रहता है। अगर ज़िन्दगी के हर पड़ाव का डटकर सामना करना है, तो ये पंक्तियाँ हमेशा अपने दिल-ओ-दिमाग़  में भर देनी चाहिए।हम लोग हर छोटी- छोटी परेशानियों से तंग आकर जाने क्या-क्या ऊलजलूल (अजीब) हरकतें करते हैं। कभी बेवजह किसी पर गुस्सा कर देना, कभी अपने आप को लोगों से दूर कर देना या कभी आसपास की चीज़ों को नुक्सान पहुँचना। और भी न जाने क्या क्या?  लेकिन फिर आप कई बार ऐसी कहानियों से रूबरू होते हैं जो आपको एक नई दिशा देती हैं। कुछ सीख देती हैं। और ऐसी ही एक कहानी ने मुझे इस पोस्ट को लिखने के लिए प्रेरित किया है।

खूबसूरती किसी देह की मोहताज नहीं होती है। यह सुनने में तो अच्छा लगता है लेकिन असलियत क्या है इस बात से हम भली भाँती परिचित हैं। हम जानते हैं कि ज्यादातर लोगों के लिए यह बस यह कहने की बात है।हर लड़की की खूबसूरती में उसके बालों का अहम् क़िरदार होता है। उसके सर के बाल ही उसको एक नया श्रृंगार देते हैं। लेकिन सोचो ! अगर आपके सर पर बाल ही न हो तो आप क्या करोगे?  और अगर ये पता हो कि, लाख कोशिशों के बाद भी अगर वो बाल वापस ना आ सके तो,  तो एक लड़की ही क्या, हर इंसान जीते जी शर्म और घुटन से मर जायेगा। कुछ आप खुद को देखकर तड़पोगे, और कुछ आपको दुनिया की निगाहें और उनके तीखे शब्द मार देंगे।  

बालों की ऐसी ही एक बिमारी है अलोपेशिया। क्या आपको इसके विषय में पता है? ज्यादा संभावना है कि आपको भी इस शब्द और इस बीमारी के विषय में ज्यादा जानकारी नहीं होगी। क्यों है, न? तो सबसे पहले तो मैं आपको ये बता दूँ कि, अलोपेशिया है क्या ?

अलोपेसिया अरीटा (अंग्रेज़ी: Alopecia areata), जिसको स्पॉट बाल्डनेस (सर के कुछ हिस्सों में बालों का नहीं होना) एक ऑटोइम्यून रोग हैंI जिसमे सर के कुछ या संपूर्ण हिस्से से बाल झड़ जाते हैं।

कम उम्र में जिसे ये होता है उसे कभी अपने मन का जीवन साथी नहीं मिल पाता है। काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। शादी शुदा लोगों की ज़िन्दगी में एक भूचाल सा आ जाता है।  रिश्तों में दूरियाँ आ जाती हैं। शर्म के दरवाजे खोलकर एक लम्बी लकीर खींच देते हैं। जहाँ उन्हें प्यार की जरुरत होती हैं, वहाँ उन्हें अकेलापन मिलता है।  दिमाग़ी हालत दिन ब दिन खराब होकर, इंसान खुद को चार दीवारी में क़ैद कर लेता है। न चाहते हुए भी उन्हें विग, टोपी और तरह  तरह की ऐसी चीज़ें इस्तेमाल करनी पड़ती हैं। आत्मविश्वास में कमी आ जाती है। और लोगों की निगाहें सवाल करती सी महसूस होती हैं? वह ख़ुद भी ख़ुद से यही सवाल करते हैं कि आखिर यह सब क्यों?

पर कुछ लोग होते हैं जो इस क्यों से आगे बढ़ जाते हैं। वह यह सब महसूस तो करते हैं लेकिन फिर उनसे ऊपर उठ जाते हैं। ऐसी ही एक व्यक्तित्व हैं केतकी जानी ।

केतकी जानी ने इन सारे सवालों को दरकिनार कर, हर दर्द को मुँह तोड़ जवाब देकर, हर ताने को सुनने और सहने के बाद भी हिम्मत की असली परिभाषा को साबित किया है। ज़िन्दगी और वक़्त से लड़कर हिम्मत की जो मिसाल “केतकी जानी” ने दिखाई है उसको शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है।

जी हाँ,  केतकी जानी  भारत की पहली महिला अलोपेशिया मॉडल है। केतकी जी वह व्यक्तित्व हैं जिन्होंने  ज़िन्दगी और खूबसूरती के मायने ही बदल दिए हैं।  जब मुझे केतकी जानी  के विषय में पता चला तो मैं भी खुद हैरान हो गई थी।  मैंने उनको फेसबुक पर ढूँढा(सर्च किया) और उनसे बात की, तो मुझे उन्होंने खुद अपनी कहानी बताई।  उनकी बातें सुनकर मुझे लगा कि उनकी कहानी इतनी प्रेरणादायक है कि यह तो सबको पता होनी चाहिए।

हमारे आस-पास ऐसे बहुत से लोग हैं  जिन्होंने असल ज़िन्दगी में जंग लड़ी है।  कड़ी मुश्किलों में भी हार नहीं मानी है और उनका जमकर सामना किया है। उनकी कहानियाँ हमे प्रेरित कर सकती हैं और यही कारण है कि हमे उनकी कहानियों का प्रचार -प्रसार करना चाहिए ताकि और भी लोग उनके संघर्ष से वाकिफ हों और अपनी मुश्किल हालातों में इन कहानियों से संबल लें।

केतकी  भी इन्ही पेररक लोगों में से एक हैं। यही कारण है कि  आप सब तक ये बात पहुँचाने के लिए मैंने  केतकी  से बात की। उनसे कुछ सवाल-जवाब किये।

मुझे उम्मीद है जिस तरह उनकी कहानी ने मुझे प्रेरित किया उसी तरह वह आपको भी प्रेरणा देंगी।

बातों की एक मुलाक़ात केतकी जानी के साथ।  

  प्रश्न- केतकी जी सबसे पहले तो आप अपने बारे में कुछ बताइए।। आप कहाँ की रहने वाली हो ? क्या करती हैं? 
केतकी-  हैलो,  मैं केतकी जानी। पिछले बीस सालों से मैं अपने परिवार के साथ पुणे में रहती हूँ।  मैं पुणे महाराष्ट्र  राज्य के बाल भारती पाठ्य पुस्तक कार्यालय में गुजराती भाषा के टेक्स्ट बुक की स्पेशियल ऑफिसर हूँ।  
 
प्रश्न- अच्छा ये बताइए कि आपको अलोपेशिया कब हुआ ? क्या आप इस बीमारी के बारे में पहले जानती थी ? या इसके कुछ लक्षण जो आपको अलोपेशिया होने से पहले हुए हों।
 
केतकी- 2010 में पहली बार जब मैं अपने कार्यालय (ऑफिस)  में बैठकर कुछ काम कर रही थी।  और तभी मैंने अपने हाथ को अपने बालों में फिराया तो, एक जगह पीछे की तरफ मुझे खाली-खाली सा महसूस हुआ।   (स्किन टाइप ) तो मैंने तुरंत अपनी कलीग से पूछा कि, जरा  देखो तो ये क्या हुआ है? तो उसने मुझे  बताया कि,  उस जगह पे बाल नहीं हैं।  मैं  घबरा कर तुरंत डॉक्टर के पास गई और उनसे पूछा। तो उन्होंने मुझे बताया कि, ये अलोपेशिया है। उस दिन मुझे पहली दफ़ा पता चला की ये कि इसे अलोपेशिया कहते हैं। पर हाँ,  इसके होने के पहले कभी भी किसी भी प्रकार का कोई लक्षण शरीर में नहीं पनपता है।  ये बस शुरू होता है और ख़त्म कभी नहीं होता।  
अलोपेशिया होने से पहले
 
 
अलोपेशिया होने से पहले
प्रश्न- मैं जानती हूँ कि, किसी भी लड़की या यूँ कहूँ कि किसी भी इंसान के लिए उसके बाल उसकी खूबसूरती का एक अहम हिस्सा होते हैं। लेकिन अगर वही चीज आपसे दूर हो जाए तो इंसान टूट जाता है। आपके साथ जब ये हादसा हुआ। तो आपने इसके लिए क्या और कहाँ से इलाज (ट्रीटमेंट) लिया?
केतकी-  जिस दिन से मुझे पता चला या पहली बार जब मुझे वो बिंदु जैसा सिर पर खालीपन सा लगा था उस दिन से लेकर अगले पाँच साल तक, यानि  2010 से लेकर 2015 तक लगातार 5 साल, मैंने  कुछ न कुछ इलाज किया है।  जिन-जिन  लोगों ने जैसी-जैसी दवाइयाँ बताई, मैंने हर चीज़ का इस्तेमाल किया।  आयुर्वैदिक, होम्योपैथिक, एलोपैथिक, यूनानी में ऐसी कुछ दवा बची ही नहीं जिसे मैं यह कह सकूँ कि, मैंने  यह  चीज़ नहीं खाई या यह तेल, जैल, या लोशन नहीं लगाया।   फिर मुझे बहुत बाद में पता चला, जब मैं हर चीज़ से हार मान चुकी थी, उम्मीद छोड़ चुकी थी, तब पता चला कि इसकी कोई दवाई ही  नहीं होती है।  डॉक्टर लोग बस इधर से उधर भगाते रहे, मुझपर दवाइयां टैस्ट करते रहे। मैंने हर शहर छान मारा,  गुजरात भी गई थी।  मतलब हम हर जगह जाने को तैयार रहते थे।  कोई बोलता यहाँ जाओ, कोई कहता वहाँ जाओ।  और भागा दौड़ी में 6 से 8  महीनों अन्दर अलोपेशिया मेरे शरीर में फ़ैल चुका था। और वो एक  बिंदु मेरे पूरे सर को खा गया था।  हाथ पैर हर जगह से मेरे बाल निकल चुके थे। और हर दवाइयाँ, हर इलाज करने के बाद भी  हाथ कुछ भी न लगा।  सब कुछ रेत की तरह  फिसल गया। 
प्रश्न- इतना इलाज करने के बाद भी आपको कोई रिजल्ट नहीं मिला, तो कैसे खुद को इस दर्द से बाहर निकाला?
केतकी- अलोपेशिया होने का मतलब ही है मानसिक तौर पर बीमार होना, मानसिक तौर पर खोखला होना।  जिस तरह मलेरिया होता है तो हमें कैसे  ठण्ड लगती है।   वैसे ही जैसे -जैसे अलोपेशिया होता है, आप मानसिक तौर पर टूटने लगते हो।  पूरी तरह से डिप्रेशन में चले जाते हो। मेरे चाहने ना चाहने से क्या, जब भी मैं बाथरूम में जाती थी, बाल धोती थी, तो आजु -बाजू बाल ऐसे बिखरे पड़े होते थे, मानो साँप लेटे हो।  और मुझे हर दिन डसने के लिए पानी में इधर- उधर मंडरा रहे हों।  उस टाइम का रोना, उस टाइम की वेदना, वो डिप्रेशन शब्दों में बयां करना मुश्किल है।  बहुत डर लगता है। लोगों से भी, पानी से  भी, यहाँ तक कि,आईने से भी।  बहुत समय तक तो ऐसा लगा कि, नहाना ही नहीं है।  पर हर दिन बाथरूम में जाना पड़ता था।  क्योंकि हर दिन के रोने का जो कोटा होता था, उसे पूरा करना होता था।  
प्रश्न- मेरी जानकारी के मुताबिक आप इस बीमारी के कारण कई सालों तक अवसाद(डिप्रेशन) में रही, यहाँ तक कि, आपने खुदखुशी करने तक का मन बना लिया था । इस बात में कितनी सच्चाई है?
केतकी-  हाँ ये सच है कि, अलोपेशिया होने के बाद 5 साल तक मैं डिप्रेशन (अवसाद) में रही । क्योंकि लोगों का डर, ख़ुद से डर । हर सुबह यही डर होता था कि लोगों को क्या मुँह दिखाऊँगी, उनसे कैसे बात करूंगी। जबकि मैंने कोई ऐसा काम नहीं किया था। पर वक़्त ने मेरे लिए हर जवाब बंद कर दिए थे। क्योंकि इतना इलाज करने के बाद भी कोई रिजल्ट नहीं मिला, वो तो एक समस्या थी ही, लेकिन दूसरा प्रॉब्लेम था, सोसाइटी के साथ अडजस्टमेंट कैसे करूँ? समझ नहीं आ रहा था। क्योंकि क्या हो रहा था कि, दिन ब दिन मैं खुद को स्वीकार नहीं कर पा रही थी। और दूसरी तरफ आस पड़ोस और मेरे साथ जुड़े सभी लोग मुझे स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। हर एक के आँखों में कई तरह के सवाल होते थे। उनकी नजरें मुझे हर बार नजर अंदाज कर देती, एक तरह की हीन भावना उनके दिल- ओ- दिमाग के जरिए उनके लहज़े में उनकी आँखों में साफ- साफ झलक रही थी। आस-पास सब लोग मुझे ऐसे नफरत और नकारात्मक तरीके से देखते थे मानो मैं कोई अलग दुनियाँ की  प्राणी हूँ। ये लोग कभी मुझे जानते ही न हो । मैं ना उनको फेस कर पा रही थी, न अपने आपको आईने में देख पा रही थी। इन दोनों ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि, मैं एक बार खुदखुशी करने पहुँच गई। वो बात अलग है कि, वहाँ मुझे एहसास हुआ कि, मैं अपनी ज़िंदगी क्यों खत्म करूँ। लोग मुझे स्वीकार करे न करें । पहले मैं खुद को तो स्वीकार कर लूँ। और फिर मैंने नये तरीके से जीने का मन बनाया और मैंने  डिप्रेशन से धीरे धीरे ख़ुद को  बाहर निकाला । 
 
प्रश्न- आपके परिवार के अलावा कोई और है? जिसने इस दर्द से आपको बाहर निकालने में आपकी मदद कि हो?
 
केतकी-  इस डिप्रेशन से बाहर निकलने असली  वजह मेरे  दो बच्चे और मेरे दोनों डॉग्स (कुत्ते) हैं।  जिन्होंने मुझे इस अकेलेपन से कई हद तक राहत दिलाई है. 

बच्चों का सपोर्ट (सहारा)
और जाहिर सी बात है।  मुझे इस दर्द से बाहर निकालने के लिए परिवार तो था ही,  साथ में एक और इंसान है जिन्होंने मुझे इस डिप्रेशन से बाहर निकालने में मेरी बहुत मदद की। वो हैं  प्रफुल शाह जी।  उन्होंने मुझे समझाया, कि, इस बिमारी से बाहर निकलने के लिए मौत जरुरी नहीं। आपकी हिम्मत जरुरी है। ताकि जो लोग आज तक इस समस्या से भागते रहे, आप उनके लिए नई प्रेणा स्रोत बनो। उनकी  हिम्म्मत बनो। उनकी बातों  ने मुझे हर समय एक सकारात्मक दिशा दिखाई है। तो उनको मैं जितना भी धन्यवाद् करूँ कम है।  
प्रश्न-  कितना मुश्किल रहा होगा आपके लिए, जब आपने खुद को इस हालत में स्वीकार करने हिम्मत दिखाई।
केतकी-  जी हाँ बहुत मुश्किल है।  भारत में अलोपेशिया के साथ जीना नामुमकिन है।  भारत के बहार जो  अलोपेशीयन हैं, उनको सिर्फ अपने आप से लड़ना होता है।  केवल अपने आप को इस डर से उबारना होता है। लेकिन भारत में ये जंग दोगुनी हो जाती है।  क्योंकि आप अपने आप से तो लड़ते ही हो,  साथ आपको समाज से भी लड़ना होता है।  उनको भी सफाई देनी होती है। उनकी भी दलीलें सुननी पड़ती है। ताने सुनने पड़ते हैं।   तो वो इंसान समाज से लड़े या ख़ुद से लड़े, ये तय कर पाना मुश्किल है।  क्योंकि दो तरफा जंग आपको या तो जीत दिलाती है या मौत।  
 

सौ बार इस दर्द से मरने के बाद आपने खुद को एक नया जनम दिया है। और साबित कर दिया कि, दुनियाँ में ऐसी कोई बीमारी या कोई चीज नहीं है जो आपको खुद से प्यार करने के लिए रोके । और एक मिसाल कायम की। कई लोगों के लिए आप एक इंसपिरेशन बनीं । कई लड़कियों के लिए आप हिम्मत बनी।  आप जैसे हो वेसे ही बहुत खूबसूरत हो, इस जज़्बे को आपने अपनी पहचान बनाई। इसके लिए आपको सेल्यूट है।
 
केतकी-  आप सही कह रही हैं कि, सौ बार इस दर्द से मरने के बाद मैंने ख़ुद को नया जनम दिया है।  पर डार्लिंग सौ बार नहीं हज़ारों, लाखों, करोड़ों दफ़ा मरी हूँ मैं इस दर्द से।इन पाँच सालों की हर सुबह हर शाम, जितने भी लोगों से मैं मिली, उन सबके सामने रोई हूँ मैं। जब-जब मैंने उनकी आँखों  में सवाल देखे। दया के नाम पर हीनता देखी, उतनी बार मरी हूँ मैं। कइयों ने शब्दों से मारा, कइयों ने नज़रों से। और जितनी  बची थी, उतना मैंने खुद को देख- देख कर मारा। ना जाने कितनी बार खुद कोसते हुए, ख़ुद की अव्हेलना करने के बाद तिल- तिल मरके, फिर तिनके सी ज़िन्दा हुई हूँ मैं।  

प्रश्न- आपके सर पर ये टैटू बहुत खूबसूरत लगता है? ऐसा लगता है, किसी ने एक कैनवास पर बेहद खूबसूरत पेंटिंग की हो।  इसके पीछे क्या कहानी है?
टैटू
केतकी-  केतकी जी मेरी इस बात पर हँसती हैं और फिर कहती हैं। आपको पता है ? जब मेरे सर पर बाल थे, तब  मुझे सब लोग डिम्पल कपाडिया बुलाते थे। कहते थे, केतकी के बाल बिलकुल डिम्पल के जैसे हैं।  मेरी गायनिक भी मुझे डिम्पल कहके बुलाती थी। और रहा सवाल टैटू का। तो मुझे पहले से ही टैटू का बड़ा शौक़ था। और इच्छा थी कि, एक बार अपने शरीर पर टैटू जरूर बनाउंगी। और वो टैटू ऐसी जगह पर होना चाहिए जहां पर किसी का भी न हो। और जब मेरा डिप्रेशन का दौर ख़त्म हुआ, तो मैं बहार जाने लगी। तभी  एक दिन मैंने खुद को शीशे में देखा। और कहा ! अरे टैटू बनाने की मस्त वाली जगह मिल गई है।

इतना ख़ूबसूरत कैनवास भगवान ने इतने दर्द के बाद दिया है।क्यों ना इस पर कोई पेंटिंग बनाई जाये। अब तो सर पर ही टैटू बनाना है, मैंने ये तय कर लिया। और मैं टैटू बनाने वाले के पास गई तो वो डर गया. और उसने मना कर दिया। और कहा, कि सर पर टैटू करना बहुत रिस्की और दर्दनाक है। नहीं-नहीं, मैं ये नहीं कर सकता हूँ।  लेकिन फिर मैंने उसे कहा, मुझे कोई परेशानी नहीं होगी, आप बनाओ।  तो वो मान गया।  और बन गया एक सुन्दर सा कैनवास।   जिसने मुझे एक नई ख़ूबसूरती का एहसास कराया।   प्रश्न- मैंने सुना है, आप मॉडलिंग करती हैं । और आपने कई पुरस्कार (अवॉर्ड) अपने नाम किये हैं? इस बारे में कुछ बताइए। 

केतकी- जी हाँ ये सच है कि मैं  रैम्प मॉडल हूँ।  2015 में जब मैंने खुदखुशी का ख़याल बच्चों को याद करके अपने दिमाग से हटा दिया था, तब मैंने ख़ुद से ये तय किया कि मुझे कुछ ऐसा करना चाहिए  जिससे की मैं बिंदास होकर लोगों के सामने जाऊँ।  जिन लोगों ने मुझे अलोपेशिया होने बाद ये कहा था कि, अब तो तुम्हारी ज़िन्दगी ख़त्म हो गई।  बिना बाल के तुम कैसे रह सकती हो?  क्योंकि  सुंदरता तो ख़त्म हो चुकी है।  तो मुझे उन लोगों को जवाब देना था  कि, बिना बाल के भी लोग सुन्दर दिख सकते हैं। आगे बढ़ सकते हैं। उनकी भी एक पहचान हो सकती है। इसलिए मैंने मॉडलिंग का रास्ता चुना। शुरू -शुरू में मुझे डर भी लगा। लेकिन फिर हिम्मत दिखाई और आज मैं गर्व से कह सकती हूँ कि, मैंने अपनी ज़िन्दगी खुद सँवारी है।
मॉडलिंग
पुरस्कार लेते हुए
आज मैं मन से सुन्दर हुई हूँ, दिमाग़ से सुन्दर हुई हूँ।  जो किसी को नज़र आये न आये  उससे अब फर्क नहीं पड़ता।  क्योंकि तन की सुंदरता अब मेरे लिए बिल्कुल मायने नहीं रखती है।   और इसी वजह से मुझे “भारत की पहली अलोपेशियन सर्वाइवर वेरियस ब्यूटी मॉडल का टाइटल मिला”  और  “भारत प्रेणा अवॉर्ड” , “इंस्पिरेशनल महिला 2019” और भी कई सारे अवॉर्डों से मुझे सम्मानित किया गया। जिसकी वजह से आज मैं इस मुक़ाम पर हूँ की, अब कोई मुझसे नज़रें नहीं चुरा सकता है।
 
ख़ूबसूरती देह की मोहताज नहीं होती है
 
प्रश्न- मैंने आपकी भेजी हुई कुछ फोटोज देखी। जिसमें आपके बाल छोटे- छोटे थे. शायद एलोपेशिया के बाद कुछ इलाज करने के कारन वो बाल उग आये थे. और फिर से आप कुछ टाइम बाद इसी खूबसूरत कैनवास के साथ मॉडलिंग करती नज़र आयी… इसके पीछे क्या वजह रही ?
 
स्टेरॉयड के बाद की तस्वीर
केतकी-  हाँ जी मैंने एक बार किसी के कहने पर बालों के लिए स्टेरॉयड लेना शुरू किया। यह एक तरह का रासायनिक पदार्थ होता है, जिसका कैमिकल इस्तेमाल कर उसे शरीर के अंदर इंजेक्शन और दवाइयों के रूप में दिया जाता है। उससे मेरे कुछ बाल तो आये लेकिन, मेरा वजन बहुत ज्यादा बढ़ गया। मैं 50 किलो से सीधे 80 और 90 तक पहुँच गई। डॉक्टर्स ने कहा था कि, अगर आपने ये दवाइयाँ बंद की तो आपके बाल वापस से चले जायेंगे। मगर मेरे बच्चों ने मुझे वो दवाइयाँ लेने से मना किया। और कहा कि, मम्मी अगर आपने ये स्टेरॉयड चालू रखा तो आपकी किडनी पर बुरा असर पड़ जायेगा। इसलिए मैंने डर के मारे वो दवाइयाँ छोड़ दी। और बाल फिर से चले गए। और फिर से वही सफर शुरू किया और पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
 
प्रश्न- दुनियाँ में कई लोग  हैं जो इस बीमारी से खुद को संभाल नहीं पाते हैं? और लोगों के तानों और हीन भावना कि नज़रों से बचने के लिए खुदखुशी कर लेते हैं । उनके लिए आप क्या संदेश देना चाहती हैं।?
केतकी- पहली बात तो मैं ये कहना चाहूँगी कि, ख़ूबसूरती का गंजेपन से कोई लेना देना नहीं है।  उसे अपनी ज़िन्दगी की कमजोरी बनाकर बर्बाद मत करो। जो भी अलोपेशिया से जूझ रहे हैं उनका ख़ुद पर भरोसा होना बहुत जरुरी है।  खुदखुशी करके अलोपेशिया ख़त्म नहीं हो जायेगा। और जब तक इससे भागोगे, तब तक दुनिया इसे समझ नहीं पायेगी,ना स्वीकार कर पायेगी और ना ही तुम्हें स्वीकार करने देगी। इसलिए इस दर्द इस जंग से निकलने का एक ही रास्ता है।सोच को बदलो। अपने आप से प्यार करो, अपने आप से लड़ो। क्योंकि यही लड़ाई आपको जीत दिलाएगी।  जब तक मेरे सिर पर बाल थे, तब तक मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि, मैं कभी मॉडलिंग भी कर सकती हूँ।  स्टेज पर जाने से ही मुझे घबराहट होने लगती थी। 
 
ख़त्म किया स्टेज पर डर
 
 
 पर आज मैंने वो डर भी ख़त्म किया।  शारिरिक सुंदरता से कहीं ज्यादा मानसिक सुंदरता आपको दुनियाँ में एक नई पहचान दिला सकती है।  आपको अपनी पहचान बनाने के लिये विग, टोपी या किसी भी और चीज़ का सहारा लेने की जरुरत नहीं है।   ज़िन्दगी में कुछ भी परेशानी हो।  उससे भागना मत।   क्योंकि बहुत मिन्नतों के बाद ये ज़िन्दगी मिलती है। इसे यूँ ज़ाया मत कीजिये।
 
बहुत -बहुत शुक्रिया केतकी जी। जो आपने हमारे पाठकों को, दुनिया को ज़िन्दगी जीने का एक नया मक़सद बताया।  अपनी आप बीती हम सबके साथ बांटी, अपने संघर्ष को सबके सामने उजागर करने की हिम्मत दिखाई।  वाकई आपने सुंदरता के मायने बदल दिए।
 
 
नई सोच की नई मिसाल केतकी जानी
 
मुझे उम्मीद है अब कोई लड़की खुद को अकेला नहीं समझेगी। अब कोई इंसान अलोपेशिया से डर कर ख़ुदकुशी नहीं करेगा। दुनिया को समझना होगा कि, अलोपेशिया कोई संक्रमित बीमारी नहीं है।  इसलिए एक दूसरे का साथ बनिए।  ताकि शरीर की बीमारी से जल्दी दिमागी बिमारी ठीक हो जाये।
 
आप भी हिम्मत करके अलोपेशिया को हराकर एक नई उड़ान भरिये और देखिये ये आसमान कितना सुन्दर दिखता है। 
अलोपेशिया के विषय में आप लोग क्या समझते हैं, कितने लोग इस बीमारी को जानते हैं। क्या आपके आसपास कोई है, जो अलोपेशिया के मानसिक दौर से गुज़र रहा हो? 

केतकी जानी के संघर्ष को लेकर आपके क्या विचार हैं? मुझे जरूर बताइयेगा।   
 
हँसते, मुस्कुराते, स्वस्थ रहिये। ज़िन्दगी यही है।  

आप मुझसे इस आईडी पर संपर्क कर सकते हैं.
sujatadevrari198@gmail.com


© सुजाता देवराड़ी

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