दिखा स्वर्ग का टुकड़ा, यूँ ही चलते चलते

स्वर्ग का एक टुकड़ा दिखा यूँ ही चलते चलते
स्वर्ग का एक टुकड़ा दिखा यूँ ही चलते चलते

टिमटिमाते बिजली के ये सितारे, मानो धरा को सजाने निकले हैं। एक तरफ डूबता सूरज अपनी लालिमा बिछाये है, तो दूजी तरफ बादलों ने अपनी काली घनी जुल्फें खोल दी हैं। कौन कहता है कि स्वर्ग कहीं और जाकर दिखता है? कभी बेवजह यूँ ही बाहर टहलने निकलो तो सही तब पता चलता है कि धरती अम्बर के मिलन में रात कैसे परियों सी नाचती है।


हवाएँ कैसे सुरीला राग छेड़ती है, बारिश की बूँदे अपने ताल पर धिन तिन कर बरसती है। इस सन्नाटे की ख़ामोशी भी उस वक़्त बड़ी ख़ूबसूरत सी लगने लगती है। उस जगह को छूने के लिए मन बावरा सा हो उठता है। तन मन ऐसे दृश्य को देख अति प्रफुल्लित हो उठता है।

आप भी सोच रहे होंगे कि मैं ये सब क्यों कहने लगी। दरअसल, बात बस इतनी सी थी कि कल जब मैं चमोली से देहरादून आ रही थी तो रास्ता खराब होने के कारण जो हमारा मुख्य रास्ता (जो देवप्रयाग होते हुए देहरादून के लिए जाता है) था वो बरसात में बुरी तरह से टूट गया है, जिसकी वजह से वो रास्ता बंद कर दिया गया है। चूँकि रास्ता बंद है तो चमोली से आने वाली सभी गाड़ियों को श्रीनगर से टिहरी वाले रास्ते से होकर गुजरना पड़ रहा है। हमारी गाड़ी भी टिहरी होते हुए आयी थी।

टिहरी पहुँचने में हमें काफी वक़्त लग गया था क्योंकि रास्तों में टूट फूट के कारण हमें लगभग डेढ़ या पौने दो घंटे का जाम मिला। इस वजह से टिहरी पहुँचते-पहुँचते अँधेरा सबको धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में लेने लगा था। हल्की बरसात की बूँदे भी थोड़ा डराने लगी थी क्योंकि देहरादून पहुँचने में अभी काफी वक़्त था। बारिश अगर तेज़ हो जाती तो हमारा जाना और मुश्किल हो जाता। हम लोग चलते रहे और नरेंद्र नगर पहुँचने पर अचानक भाई की नज़र सामने पर दिखाई दे रहे दृश्य पर पड़ी। क्योंकि भाई ही गाड़ी ड्राइव कर रहा था तो वो ज्यादा देर इधर उधर देख नहीं सकता था तो उसने हमें कहा कि देखो सामने स्वर्ग दिख रहा। हमने सोचा मज़ाक कर रहा पर जब मैंने, भाभी और कांता दी तीनों ने अपनी नज़र सामने दौड़ाई तो हमारी आँखें चौंधिया गई थी।

हमारे मुख से एक साथ निकल पड़ा “ओ तेरी, आहा क्या जगह है!”

नरेंद्रनगर से दिखता देहरादून
नरेंद्रनगर से दिखता देहरादून

वाकई बहुत अद्भुद दृश्य था। मन एकदम ख़ुश हो गया था। बहुत समय के बाद सूरज की लालिमा और बादलों की कालिमा एक साथ दिखाई दी थी। मैंने गाड़ी से इस नज़ारे की तस्वीर लेनी चाही पर सड़क पर गड्ढों और गोद में दीदी की बेटी के सोने की वजह से तस्वीर ले न सकी। मैंने भाई को गाड़ी रोकने के लिए कहा पर उसने देर होने का कारण बता गाड़ी नहीं रोकी। थोड़ी देर बाद वो नज़ारा पीछे छूट गया। गाड़ी चलती रही अचानक एक मोड़ ऐसा आया कि वो नज़ारा फिर आँखों के सामने आ गया। भाई ने भी जाने क्या सोचकर गाड़ी रोक दी। मैंने झट से गाड़ी से उतरकर सड़क के किनारे पर जाकर एक तस्वीर ली और बारिश की बूंदों से ख़ुद को बचाकर वापस जल्दी से गाड़ी में बैठ गई। वो तस्वीर नरेंद्र नगर से दिखाई देते देहरादून की थी जिस पर बिजली की टिमटिमाती रौशनी पड़ रही थी। ख़ूबसूरती कुछ यूँ बढ़ी कि, डूबता हुआ सूरज अपनी लालिमा बिखेरे था और बरसात की वजह से बादलों की काली घनेरी खुली ज़ुल्फ़ें भी अपने पूरे शबाब पर थी। हाल कुछ ऐसा था कि स्वर्ग की कोई परी धरती पर उतर कर ख़ुद इस तस्वीर में समाकर सब देखने वालों को अपने जादू से मन्त्रमुग्ध कर रही हो। मन तो नहीं मान रहा था कि उस जगह को छोड़कर आगे बढ़ूँ पर वक़्त की दरकार थी।

वहाँ से आगे बढ़ने के बाद ज़ेहन में खयाल उसी तस्वीर का था। रास्ते भर सोच रही थी कि अगर वहीं कुछ देर और ठहरती तो कहीं मुझे इस जगह से इश्क़ न हो जाता। ये भी तय था कि इस जगह अगर एक रात भी मैं रुकती और नज़ारा यही होता तो एक कहानी का पूरा होना स्वाभाविक था।

ख़ैर ……

कहते हैं ना सुकून के चाहे कुछ पल ही सही जब भी मिले ज़ेहन में उतार लेना चाहिए। ख़यालों में इन पलों की एक ख़ूबसूरत तस्वीर बना लेनी चाहिए।

मैंने भी यही किया। उम्मीद है यह तस्वीर आपको पसंद आई होगी।

– सुजाता देवराड़ी

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