प्रकृति की गोद में बसा है नाग देव मंदिर

Naag dev

नाग देव मंदिर पौड़ी के कुछ खूबसूरत धर्म स्थलों में से एक माना जाता है। यहाँ नागों के देव नागराज की स्थापना हुई है साथ ही यहाँ शिव लिंग को भी स्थापित किया गया है। नाग देव मंदिर की इस छोटी सी यात्रा का विवरण, जो मैंने इस मंदिर में चलते वक़्त जाना, देखा, महसूस किया वो आपसे साझा करूँगी। इस मंदिर के विषय में मुझे ज्यादा जानकारी तो नहीं है पर मेरे इस चार घंटे के सफ़र की कुछ यादें और अनोखी तस्वीरों को मैं आपसे साझा करना चाहती हूँ। अब आप सोच रहे होंगे की जानकारी क्यों नहीं है? तो जानकारी ना होने का सबसे पहला कारण ये है कि मैं यहाँ पहली बार गई और दूसरा ये कि मेरी शादी को अभी एक महीना ही हुआ है तो मैं पौड़ी जिले से अभी तक पूरी तरह से वाकिफ़ भी नहीं हुई हूँ। हाँ ! यहाँ जाने के बाद मैं ये जरूर कहूँगी कि प्रकृति की गोद में बसा ये मंदिर अपनी शालीनता लिए शांति का एक प्रतीक स्तम्भ है। नाग देव मंदिर का ये सफ़र प्रकृति के अद्भुद मनोरम दृश्यों से भरपूर है। यहाँ ना तो थकान का अनुभव होता है ना किसी सुनसान जंगल के होने का डर। कोई पथिक अगर इस सफ़र पर अकेला भी चल पड़े तो इन नज़ारों में खोकर वो खुद को मंत्रमुग्ध होने से रोक नहीं पाएगा।

कैसे बना नागदेव मंदिर जाने का प्लान ?

हमारे हिन्दू धर्म के अनुसार घर में जब किसी की शादी होती है तो नया जोड़ा मंदिरों के दर्शन करने के लिए जाते हैं। परिवार वाले भी नए जोड़े को भगवान के दर्शनों के लिए जाने में ज्यादा तवज्जो देते हैं। हालांकि अब ये प्रथा अपना रूप बदलने लगी। नया शादीशुदा जोड़ा घूमने के लिए अपने पसंदीदा जगहों पर जाने लगे। हमारा भी कुछ ऐसा ही विचार था पर कोरोना के चलते शादी कुछ ऐसे हालातों में हुई कि घर से बाहर निकलना बेहद मुश्किल हो गया है। इसी कोरोना के चलते हम भी कहीं घूमने जा नहीं पाए। शहरों के मुकाबले कोरोना पहाड़ी क्षेत्रों में अपना कहर बढ़ाने में ज्यादा कामयाब नहीं हुआ सो छोटी मोटी जगहों पर लॉक डाउन के बाद आना जाना थोड़ा बहाल कर दिया गया। इस राहत का फायदा हमने लिया और नागदेव मंदिर जाने का प्लान बना लिया। नागदेव मंदिर जाने का विचार काफी समय से हम लोग कर रहे थे लेकिन कुछ ना कुछ ऐसे हालात पनप जाते कि हम लोग जा नहीं पाते थे। उसके बाद से मेरे पति विकास जब भी नागदेव जाने का जिक्र करते तो मेरी ननद रुचि तपाक से हँस पड़ती और कहती “ रहने दो तुम लोग तो जब देखो बस बोलते ही रहते हो ऐसे में तो चले गए हम नागदेव”। शनिवार को आखिर वो दिन आ ही गया जब हमने मन पक्का कर लिया कि अब तो चाहे जो हो नागदेव जाकर ही रहेंगे। शनिवार की सुबह अपना सारा काम धाम पूरा करके दिन के खाने के वक़्त मेरी सास ने विकास से पूछा “ विक्की तुम लोग जा रहे हो क्या नागदेव” तो विकास ने कहा “ हाँ मम्मी जी”। तीन बजे लगभग खाना खाने के बाद सास ने कहा “ जाओ थोड़ा एक घंटा आराम कर लो फिर समय पर जाकर अंधेरे से पहले घर लौट आना”। आराम करने के बाद चार बजे हम लोग तैयार होने लगे तो मैंने सोचा रुचि को भी बोल देती हूँ लेकिन जब मैं नीचे कमरे में गई तो रुचि सो चुकी थी। मैं रुचि को देख जोर जोर से हँसने लगी। मुझे देख मम्मी जी भी हँसने लगी और हँसते हँसते कहने लगी “ जाओ तुम दोनों चले जाओ ये नहीं आएगी अब”। रुचि हमारे साथ इससे पहले भी क्यूँकालेश्वर मंदिर आई थी और इस बार भी रुचि का नागदेव मंदिर आने का बड़ा मन था पर नींद के घेरे ने उसे रोक लिया।

क्यूँकालेश्वर मंदिर के विषय में भी मैंने एक पोस्ट लिखी है। आप उसे इसी ब्लॉग पर निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं।

ज़िंदगी के नए सफ़र की पहली घुमक्कड़ी (क्यूँकालेशवर मंदिर)

मम्मी के कहने पर मैंने भी उसे नींद से नहीं उठाया और मैं ऊपर अपने कमरे में तैयार होने आ गई। कुछ देर बाद हम लोग मंदिर के लिए निकलने लगे। घर से निकलने से पहले मम्मी जी हमें रास्ता समझाने लगी क्योंकि विकास भी आजतक नागदेव मंदिर नहीं गए थे तो उनको रास्ते का पूरी तरह से ज्ञान नहीं था। रुचि को रास्ता पता था मगर वो सो चुकी थी तो मम्मी ने कहा की हम लोग गूगल लोकेशन के जरिए नागदेव मंदिर तक पहुँच सकते हैं। ये सुनकर हम दोनों हँसते हुए लगभग पाँच बजने से पहले पहले घर से निकल गए।

घर से बाज़ार तक का रास्ता और वहाँ से ऊपर नीलकंठ मंदिर (जो कि महादेव का एक और मंदिर है। यहाँ सावन के महीने हर सोमवार को लोग शिवलिंग में जल चढ़ाने आते हैं।) से होते हुए हम लोग आगे बढ़े। इसी बीच मैंने विकास को पूछा “ क्या आपने गूगल लोकेशन ऑन किया है?” तो उन्होंने हाँ में जवाब दिया और हम लोग आगे बढ़े। सफ़र की ओर बढ़ते बढ़ते मुझे प्यास का एहसास हुआ । मैंने विकास पानी की बोतल खरीद लाने के लिए कहा। सामने एक दुकान से विकास पानी लेकर आए । वहीं दुकान में मौजूद व्यक्ति से हमने नागदेव जाने का रास्ते के विषय में जानकारी ली। उन्होंने हमें रास्ता बताया और हम लोग उनके बताये रास्ते पर बढ़ चले।

अब बाजार का रास्ता खत्म हो गया था और उसकी जगह शुरू हो गया था प्रकृति के नज़ारों से लबरेज जंगल, हिमालय की चोटियों और आस पास के गाँवों की खूबसूरत तस्वीरों से सजा एक नया रास्ता जिस पर चलकर एक सुकून का अनुभव हो रहा था। कभी सड़क का मोड़, कभी बांज और चीड़ के पत्तों से सजी सड़क, कभी बारिश के गीलेपन से रास्तों में बिछी सिंवाल आहा! क्या नज़ारे थे। ऐसा लग रहा था मानों प्रकृति अपनी खूबसूरती के चरम पर हो। जब वादियाँ अपने अपने पूरे शबाब में हो तो मन इनको कैमरे में कैद करने को ललचा ही जाता है और वही लालच हमारे मन में भी पैदा हुआ। विकास और मुझे दोनों को तस्वीरें लेने का शौक है । दोनों को लिखने का भी शौक है इसी के चलते जब भी कहीं घूमने जाने का मौका मिलता है तो वहाँ की कुछ तस्वीरों को हम साथ में जरूर लेकर आते हैं। हमारा घूमना साथ में अभी अभी शुरू हुआ है लेकिन ये शौक दोनों ने अलग अलग रहते हुए भी पूरा किया है।


नागदेव मंदिर के सफ़र की फ़ोटोज़ का सिलसिला दोनों का बदस्तूर (बिना रुके ) जारी था इसके साथ ही विकास की कहानियों के किस्से भी चलते जा रहे थे।चलते चलते सड़क अपने पैर पसारकर सीधी होती है और पेड़ पौधों की पत्तियाँ उस सड़क पर ऐसे बिछी होती है मानो अपने बिस्तर पर आराम कर रही हो। एक जगह पर सड़क साफ दिखी तो मैंने विकास को कहकर अपनी तस्वीरें भी खिंचवा ली। थोड़ी देर बाद विकास ने कहा की अब थोड़ा फोटो खींचना बंद करते हैं और फटाफट चलकर पहले नागदेव के मुख्य द्वार तक पहुँचते हैं। अब दोनों बातें करते हुए आखिर नागदेव के मुख्य द्वार पर पहुँच ही गए।


नाग देव मंदिर की दूरी हमारे घर से बाज़ार और वहाँ से मंदिर तक की दूरी दोनों मिलाकर लगभग चार किलोमीटर थी। नागदेव का मंदिर उसके मुख्य द्वार से भी आगे एक किलोमीटर और था। हम दोनों ने अपने अपने फोन पर द्वार की फोटो ली और आगे बढ़ते रहे। रास्ता जंगल के बीचों बीच था। बरसात का मौसम है तो ज़मीन का गीला होना स्वाभाविक था। चलते चलते रास्ते में कई लोग मिले कुछ अपने पार्टनर के साथ थे, कुछ अपने दोस्तों के साथ ग्रुप में आए थे।

पौड़ी क्योंकि एक कस्बा (टाउन) है । यहाँ कपल्स को साथ में समय बिताने के लिए कोई ऐसी जगह नहीं मिल पाती है जहाँ वो एक दूसरे के साथ एकांत में कुछ प्यार के पल बिता सकें। इसलिए वो लोग ऐसी सुनसान जगह आकार ही एक दूसरे से मिल पाते हैं और अपना एक सुखद समय व्यतीत कर अपनी ज़िंदगी में उसे एक सुनहरे याद के रूप में सँजोते हैं।

विषय से ना भटकते हुए सीधे बात करती हूँ अपने सफ़र की। हम लोग अपने सफ़र पर बढ़ते रहे और पहुँच गए अपने गंतव्य स्थल पर। मंदिर पहुँचने के बाद मैंने पहले नाग देव की पूजा की और फिर शिवलिंग को जल अर्पित कर उसकी परिक्रमा की। कुछ देर बाद मैंने देखा वहाँ कुछ कुत्ते भागकर आए और मंदिर के आसपास जो भी खाने का सामान था उसे खाकर मंदिर में ही टहलने लगे। हमारे साहबज़ादे विकास अपनी फोटोज को लेने में ही मग्न थे। पूजा पाठ होने के बाद हम लोग घर के लिए निकल गए ।

सड़क पर पहुँचने के बाद विकास ने कहा कि अभी टाइम है तो हनुमान मंदिर होकर चलते हैं। हनुमान मंदिर नागदेव के मुख्यद्वार से लगभग आधा किलोमीटर दूर था। हम लोग चलने लगे और चलते वक़्त हमने सड़क पर कुछ महिलाओं को अपनी सहेलियों के साथ टहलते देखा। बीच में कहीं सड़क का काम भी चल रहा था तो सड़क पर मिट्टी मिट्टी हुई थी और बारिश की वजह से वो मिट्टी गीली थी। इस कारण रास्ते में फिसलने का डर भी बना था। हमने संभलते संभलते इसे पार किया और अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते रहे।

सड़क के किनारे ही हनुमान मंदिर का गेट था। इस गेट से ही मंदिर के लिए सीढ़ियाँ नीचे की ओर जाती थी। हम सीढ़ियाँ उतर कर मंदिर के प्रांगण की तरफ बढ़ चले । हम दोनों हनुमान मंदिर पहुँचे तो देखा की मंदिर का मुख्य दरवाजा बंद है। मैंने दरवाजे के बाहर से ही दर्शन किये और मंदिर प्रांगण में कुछ तस्वीरें ली। हनुमान मंदिर के प्रांगण से सामने का दृश्य बहुत रमणीय दिखाई देता है।

जिन सीढ़ियों से हम मंदिर के लिए नीचे उतरे थे वही सीढ़ियाँ और नीचे जाते हुए एक सँकरे रास्ते पर खत्म होती थी। क्योंकि अब अंधेरा होने वाला था और हमें घर की तरफ बढ़ना था तो हम इसी रास्ते से नीचे उतरने की सोच रहे थे। पर मन में फिर भी एक तरह का संशय था कि क्या यह रास्ता नीचे सड़क की तरफ जाता होगा ? हम यही सोच रहे थे कि तभी हमें उधर से एक लड़का और एक लड़की ऊपर की तरफ आते दिखाई दिए। हमने उन दोनों से रास्ते के विषय में पूछा तो उन्होंने हमें बताया कि यह रास्ता सही है । इसलिए हमने निर्णय किया कि हम लोग इसी रास्ते से घर के लिए जाएँगे और हम उस रास्ते पर चल पड़े।

इस रास्ते पर चलने का बाद हमने यह जाना कि, रास्ता संकरा जरूर था पर खूबसूरत था। किनारे हरी भरी झाड़ियों, बाँज, बुरांस और चीड़ के घने पेड़ों से सजे हुए थे। रास्ते के दोनों तरफ पत्थर की दीवार बनी थी लेकिन कहीं कहीं पर ये दीवार एक तरफा थी। रास्ते पर पीरूल (चीड़ के पत्ते) गिरने से काफी फिसलन थी जिसकि वजह से हमें संभल संभल कर चलना पड़ रहा था। एक जगह पर तो हमें पत्थर के ढेर के ऊपर से चढ़कर जाना पड़ा। मैं जैसे तैसे उस जगह को पार कर गई मगर विकास पीछे तस्वीर लेने में व्यस्त थे । जब वो उतरने लगे तो मैंने विकास को भी संभल कर चलने के लिए कहा क्योंकि उन्होंने सेंडल पहनी हुई थी जिसके कारण उनको चलने में थोड़ा दिक्कत हो रही थी। आगे बढ़ते हुए हमें एक जगह पर एक खंडर घर दिखाई दिया। मैं उस घर की तस्वीर लेना चाहती थी पर रास्ते के ऊबड़ खाबड़ होने की वजह से ले नहीं पाई। मैंने नीचे उतरकर तस्वीर लेनी चाही पर जैसे ही थोड़ा नीचे उतरी और खंडर की तरफ बढ़ी तो उसके बगल में मुझे एक और पुराना घर दिखाई दिया। उस घर में कोई रहता था मगर वो शायद से आराम कर रहे होंगे इसलिए बाहर कोई दिखाई नहीं दिया। उनको मेरी आहट से कोई परेशानी न हो इस वजह से विकास ने मुझे उस खंडर की तस्वीर लेने से मना कर दिया। हम दोनों आगे बढ़ते रहे। रास्ते में हमें एक पार्क दिखाई दिया। उस पार्क में तरह तरह के फूल खिले थे जिसने मेरे मन को अपनी तरफ खींच लिया। मैंने पार्क में जाने की उत्सुकता दिखाई लेकिन विकास ने ये कहकर मना कर दिया कि वो किसी की निजी संपती है तो जाना सही नहीं है। मुझे थोड़ा बुरा लगा और विकास पर गुस्सा भी आया, पर कुछ कर भी नहीं सकती थी इसलिए विकास की तरफ टेढ़ा मेड़ा मुँह बनाकर आगे चल दी।

विकास चिढ़ाने में माहिर है। वो चिढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। रास्ते में एक पेड़ टूटा हुआ था ये बात उनको पता थी क्योंकि वो मुझसे आगे थे। मुझे चिढ़ाते हुए उन्होंने कहा इस पर चढ़ जाओ । मुझे लगा कि वो पेड़ झुका हुआ है लेकिन जैसे मैं पेड़ के पास आई तो देखा पेड़ जड़ से अलग होकर एक पत्थर के सहारे अटका हुआ था। मैंने कहा की बस यही करना है आपने, बीवी को गिराने का काम। ये सुनकर वो हँसने लगे और उनको देख मैं भी हँसने लगी। सफर जारी रहा और हम लोग चलते रहे।

कुछ दूरी तय करने के बाद हमें एक कॉलोनी दिखाई पड़ी। कॉलोनी में लोग अपने घर की छतों पर खड़े बातें कर रहे थे। कुछ बच्चे अपने आँगन में खेल रहे थे। हमें ये देख अच्छा लगा तभी विकास ने कोरोना के खौफ की वजह से मुझे मास्क पहने को कहा। मैंने अपने पर्स से अपना मास्क निकाला और चुपचाप अपना मुँह ढक लिया। कॉलोनी से नीचे उतरते उतरते हम लोग आखिर सड़क पर पहुँच ही गए।

सड़क पर पहुँचने के बाद विकास ने बताया कि इसको डेविड धार कहते हैं। डेविड धार से ही नीचे की ओर एक रास्ता जाता है जिसके विषय में विकास ने बताया कि वहाँ कभी उनकी ताईजी रहा करती थी। उन्होंने ये भी बताया कि सड़क से उनके घर की दूरी उतनी ही थी जितना कि हनुमान मंदिर से इस सड़क तक की थी। यह एकदम खड़ी चढ़ाई है जिस कारण घर से ऊपर सड़क तक आने में उन्हें बहुत परेशानी हुआ करती थी। इसी सड़क से जुड़ी कुछ और यादें उन्होंने मुझसे साझा की जो हँसी मज़ाक से ताल्लुक रखती थी।

बातों के सफ़र ने आखिर बाज़ार तक की दूरी तय कर ली थी। बाज़ार पहुँचने पर हमने कुछ सामान लिया और फिर चाय कॉफी पीने का मन बनाया पर कहीं दुकानें बंद थी तो कहीं कॉफी बनती ही नहीं थी। हमने सोचा कॉफी का पैकेट खरीद कर घर में ही बना लेंगे पर गप्पों में कॉफी खरीदने की भी याद ना रही। काफी नीचे आने के बाद अचानक मुझे याद आई तो मैंने विकास को कहा की कॉफी लेना भूल गए। विकास ने कहा मैं लेकर आता हूँ । मैंने मना भी किया पर वो कॉफी लेने चले ही गए। थोड़ी देर बाद वापस आए तो वो भी खाली हाथ। कहीं कॉफी का पैकेट नहीं मिला और कहीं कॉफी पर लिखी तारीख (एक्सपायरी डेट) को देखकर विकास का लेने का मन नहीं हुआ। अंधेरा भी होने को आया था इसलिए दोनों घर की तरफ बढ़ने लगे और आखिरकार हम नागदेव मंदिर की इस छोटी सी यात्रा को पूरी करके अंधेरा होने से पहले अपने घर की दहलीज पर पहुँच ही गए थे।

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