ज़िंदगी के नए सफ़र की पहली घुमक्कड़ी (क्यूँकालेशवर मंदिर)
एक लड़की की ज़िंदगी एक ऐसा घर है जो कभी स्थिर नहीं रहती है। उसकी ज़िंदगी में बदलाव तो आते ही रहते है। वह जन्म किसी और घर में लेती है और वहाँ एक लंबा समय व्यतीत करने के पश्चात उसे अपनी बाकी की ज़िंदगी किसी और घर में गुजारनी पड़ती है। ये दस्तूर ईश्वर ने बड़ा ही अजीब बनाया है, अजीब से मेरा मतलब अच्छा और बुरा दोनों है। एक तरफ जहाँ वो दुल्हन बनकर किसी एक घर को जोड़ती है वहीं दूसरी तरफ इसके लिए उसे अपने माता पिता का घर हमेशा के लिए छोड़कर जाना पड़ता है ।
ये सब कहने का मकसद बस इतना था कि ये बदलाव लड़की की ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा है । मेरी ज़िंदगी में भी यह बदलाव आ गया है। जी हाँ, मैं भी अपने माता पिता का घर छोड़ किसी और घर की सदस्य बन गई हूँ । अब एक बेटी से बहु का किरदार निभाने की कोशिश कर रही हूँ। हमारे पहाड़ में जब शादी होती है तो बहुत सी रस्में होती है। रस्मों का ये सिलसिला हर जगह अपने अपने तरीके से निभाया जाता है। उन्हीं रस्मों में से एक रस्म ये होती है कि शादी के बाद हर जोड़े को मंदिर में भगवान के दर्शन करने होते हैं। ससुराल पक्ष का जो भी मुख्य मंदिर होता है वहाँ एक बार जाना आवश्यक होता है। मेरी शादी चमोली गढ़वाल से पौड़ी गढ़वाल में हुई है। हमारे चमोली में शादी के बाद शादी शुदा जोड़ा माँ बधाणगढ़ी के दर्शन करने जरूर जाता है और पौड़ी जो मेरा ससुराल है वहाँ कंडोलिया देवता के दर्शन की मान्यता है। कंडोलिया जाना तो अभी संभव नहीं हो पाया है लेकिन शादी के एक महीने बाद यहाँ पौड़ी में क्यूँकालेश्वर मंदिर, जो कि महादेव का मंदिर है, जाने का मौका हमे मिल गया। हम तीन जने साथ थे, मैं, विकास जो मेरे पति हैं, और रुचि मेरी ननद। जब हम किसी नई जगह जाते हैं तो वहाँ के तौर तरीके, वहाँ के रहन सहन,और वहाँ के रास्तों से अनभिज्ञ होते हैं। मेरे साथ भी यही था। फिर भी क्यूँकालेश्वर के इस छोटे से सफ़र की कुछ तस्वीरें मैं आपसे साझा करना चाहती हूँ। इन तस्वीरों को साझा करने से पहले मैं आपको बात दूँ कि क्यूँकालेश्वर जाने का मार्ग कुछ ऐसा है जिसे देखकर लगता है कि जैसे प्रकृति ने अपनी नैसर्गिक सुंदरता दिल खोल कर इस पर लुटाई हो।
घूमने का शौक मुझे हमेशा से रहा है और जब भी कभी घूमने जाती हूँ तो मार्ग में कुछ अनोखी चीज दिख जाने पर उसकी तस्वीर लेना मुझे बेहद पसंद है।चलिए अब बात करते हैं इस सफ़र की, लेकिन उससे पहले मैं आपको बता दूँ कि ये कोई यात्रा वृतांत नहीं है। ये नए सफर की शुरुवात के बाद की मेरी पहली याद है, जिसे मैंने अपने हमसफ़र के साथ बाँटा है। आज तक जब भी, जहाँ भी, जिस भी सफ़र पर गई हूँ दोस्तों के साथ ही गई हूँ, पर ये छोटा सा सफ़र मैंने अपने जीवन साथी और ननद रुचि के साथ तय किया।
क्यूँकालेश्वर मंदिर के लिए हम लोग घर से लगभग 4 बजे निकले होंगे। घर से बाज़ार तक का रास्ता तो चढ़ाई वाला है पर बातों बातों में वो भी कट गया। फिर बाज़ार से ऊपर पूरी चढ़ाई चढ़ने के बाद जाकर लगा कि अब सड़क ने अपने पैर सीधे कर दिए और मैंने एक सुकून भरी साँस ली। क्यूँकालेश्वर मंदिर की हमारे घर से दूरी लगभग तीन साढ़े तीन(3.5) किलोमीटर है। यह बात दूसरी है कि चढ़ाई के दौरान यह दूरी अपनी वास्तविक दूरी से काफी ज्यादा प्रतीत होती है। सड़क मार्ग बाज़ार से गुजरते हुए एक जंगल के बीचों बीच होकर जाता है। जो कि अत्यधिक रमणीय है। जब हम यात्रा कर रहे थे तो मार्ग में कई लोग घूमने के लिए आए हुए थे। काफी ऊपर जाने के बाद प्रकृति का नज़ारा देखने लायक था। हिमालय की वो अद्भुद छवि मन को सुकून दे गई।
रास्ते में बातों की मस्ती भी अपने पूरे शबाब पर थी। विकास को भी फोटो खींचने का बहुत शौक है लेकिन अपनी फोटो नहीं आसपास के नज़ारों की। मैं और विकास दोनों फोटो खींचने में मग्न थे। रुचि हम दोनों को देख कर हँसती जा रही थी। उसे लग रहा होगा कि ये दोनों तो अपनी अपनी फोटोग्राफी में व्यस्त हैं पर उसने कुछ कहा नहीं। रुचि को भी फोटोग्राफी का बहुत शौक है पर आज उसने कोई फोटो नहीं खींची। रुचि और विकास में काफी घनिष्टता है और दोनों एक दूसरे को चिढ़ाने का भी कोई मौका नहीं जाने देते इसलिए रास्ते में यही मस्ती चल रही थी। रुचि को कहकर मैंने भी अपनी और विकास की कुछ फ़ोटोज़ खिंचवा ही ली थी। ऐसे ही हम लोग आगे बढ़ते रहे और आखिरकार क्यूँकालेश्वर मंदिर पहुँच ही गए।
सड़क से मंदिर की तरफ सीढियाँ जाती हैं। इन्हीं सीढ़ियों पर एक द्वार भी बना है जो कि दर्शाता है कि मंदिर जाने वाला मार्ग यही है। हम सड़क से मंदिर की ओर बढ़ने लगे। वैसे तो हमे घर से ही मालूम था कि मंदिर बन्द रहेगा पर फिर भी हम मंदिर की तरफ बढ़ चले। क्या पता किसी कारणवश मंदिर खुला हो और दर्शन का मौका मिल जाये। पर मंदिर पहुँचकर पता चला कि मंदिर बंद है। कोरोना के चलते मंदिरों में पूजा अर्चना पर फिलहाल रोक लगाई गई है केवल तीज त्योहारों पर ही मंदिर खुलने के आदेश थे। इस कोरोना ने भी परेशान करके रखा है। हर चीज हर काम ठप्प हो गए हैं। सभी तरह कई यात्राओं पर पाबंदी लगी हुई है। पूरा साल खत्म होने को है लेकिन ये कोरोना खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। हम लोग मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुँचे और रुचि ने फिर हम दोनों की फोटो खींची। “भाभी को व्हाट्सएप पर स्टेटस लगाना होगा”, ये कहकर हँसते हुए फोटो खींचकर हम लोग आगे बढ़े। सामने मंदिर के पंडित जी खड़े थे। वो हमको देख रहे थे। हमने भी पंडित जी को प्रणाम किया। प्रणाम का उत्तर पंडित जी ने गर्दन हिलाकर दिया और वो टहलने लगे। हमने प्रांगण में लगी शिव की एक बड़ी सी मूर्ती पर भेंट चढ़ाकर थोड़ा देर आसपास देखने के बाद वापस घर के लिए आ गए।
रास्ते में बातों की वही मस्ती चालू थी। मैंने उस दिन, दिन का खाना नहीं खाया था तो मुझे हल्की सी भूख लगने लगी थी। शाम का वक़्त था तो अंधेरा होने को था। हमने बाज़ार में कुछ खाने का फैसला किया लेकिन कोरोना के चलते सारे ढाबे और रेस्तरां बंद थे। हम लोग आगे बढ़े और आगे चलकर होटल मधुबन पर हमारी नजर पड़ी। होटल खुला देखकर विकास पूछने गए। हम लोग अंदर गए और वहाँ बैठकर कॉफी और बर्गर मंगाया। खाने के बाद थकान भी कम हो गई थी फिर विकास ने खाने का बिल चुकाया और हम लोग वापस घर के लिए आ गए।
तो ये थी एक छोटी सी यात्रा जिसमें ज्यादा कुछ नहीं था पर मेरे लिए ये भी एक सुखमय पल था। बहुत समय से कहीं आना जाना हो नहीं पाया था। बोरियत भी मन में जगह करने लगी थी तो ऐसे में घर से कुछ दूर चलकर प्रकृति की गोद में कुछ पल बिताना अपने आप में एक सुखद एहसास था। जिसे दो तीन घंटों में मैंने खूब अच्छे से जिया।
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