नई अयोध्या का श्री गणेश

राम मंदिर
चित्र स्रोत: साभार गूगल

हे! राम लला तेरे दर पर, कई दीप जले हैं आज।
हे! नाथ तेरी सूरत पर, कई नैन टिके हैं आज।।

तेरी भक्ति, तेरी शक्ति का, फिर शंखनाद है हुआ।
तेरी नगरी में फिर से, कई फूल खिले हैं आज। ।

हे! राम लला तेरे दर पर, कई दीप जले हैं आज।

भोले शंकर मेरे दिन रात करे, प्रभु राम तेरा ही ध्यान।
कण -कण में वास तेरा हो, हर मुख करे तेरा गुणगान। ।

हे! राम लला तेरे दर पर, कई दीप जले हैं आज।

हे! कृपालु भजुमन! दास को, किस रूप में दर्शन दोगे ।
तू श्याम नारायण राजा, कहो कौन रूप धर लोगे।
इक छण को चरण पखारो, देखो कैसा सजा दरबार
हर बारप्रभु तू ही जन्मे , ये आस लगी है आज।

हे! राम लला तेरे दर पर, कई दीप जले हैं आज।
हे! नाथ तेरी सूरत पर, कई नैन टिके हैं आज।

हे! रघुनन्दन, जानकी वंदन, सुन लो मेरी पुकार।
रख सर पर हाथ सभी के, कष्ट निवारो पालनहार।

हे! राम लला तेरे दर पर, कई दीप जले हैं आज।
हे! नाथ तेरी सूरत पर, कई नैन टिके हैं आज।

राम का नाम सत्य है,अटूट है, अविनाशी है, अजेय है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्री राम की जो छवि हम मानव जाति के मन में विकसित हुई है, उस प्रभु राम के प्रति भक्ति अनमोल है अतुलनीय है। उदार दयालु करुणा निधान एक मानव पुरुष अपने उत्तरदायित्वों के प्रति किस तरह निष्ठावान होता है। ये सीख हमें प्रभु श्री राम से मिलती है। राम का सुमिरन हर कण-कण को पवित्र कर देता है। हर कलुषित मन को प्रेम रस में घोल देता है। उसके नाम का दीप जब भी आपके घर आँगन और मन मंदिर में जले तो समझ लेना आपकी भक्ति ने एक नया रूप धारण किया हैं।

आप लोग ये मत सोचिए कि मैं यहाँ कोई भक्ति का राग लिखने वाली हूँ। भक्ति ना सिखाई जाती है और ना पढ़ाई जाती है। वो एक ऐसा भाव है जो आपके मन में स्वतः ही उत्पन्न होता है। आज मेरी चर्चा का विषय अयोध्या और राम जरूर है लेकिन मैं यहाँ अयोध्या का भूमि पूजन वर्णन नहीं करूँगी। अयोध्या क्या है? इसका इतिहास क्या है ? इसके विषय में मेरी जो भी जानकारी है वो मैं आपसे साझा करना चाहती हूँ।

नई अयोध्या नगरी के श्री गणेश का सबको बड़ी बेसब्री से इंतज़ार रहा है। आज यानि, 5 अगस्त 2020, को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कर कमलों के द्वारा नई अयोध्या का शिलान्यास होने जा रहा है। कई वर्षों से अयोध्या में मंदिर बनाने का जो स्वप्न हर एक भारतीय ने देखा था वो जाकर आज सारी अड़चनों को पीछे छोड़ पूरा होने जा रहा है। तमाम समाचार चैनलों में पिछले एक महीने से यही खबर प्रसारित होती रही है। सभी न्यूज पोर्टलों में भी अयोध्या के शिलान्यास की ही चर्चा जोरों पर है। ये एक तरह की खुशी ही है जिसे सब लोग अपने अपने तरीके से जाहिर करने का प्रयत्न कर रहे हैं।

आज अयोध्या नगरी माँ जानकी की तरह दुल्हन सी सजी है। चारों तरफ दीप जले हैं, दीपावली का नया दिन तय हुआ है। कहते हैं जिस दिन घर में या कहीं राम के नाम का दीप जले समझ लेना उसी दिन दीवाली है। आज उसकी नगरी में भूमि पूजन का शिलान्यास हुआ है तो पूरी अयोध्या का राम दरबार की तरह सजना स्वाभाविक है। तमाम सुरक्षा के इंतज़ामों के तहत आज इस दिन को एतिहासिक बनाने का संकल्प पूरा हुआ है।

जिसके मन में राम बसे
उसके हर दुख दर्द टरे ।

राम लला के इंतजार मे सजी अयोध्या नगरी
राम लला के इंतजार मे सजी अयोध्या नगरी चित्र स्रोत: इंडिया टीवी

अयोध्या, भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले का एक नगर और जिले का मुख्यालय है। सरयू नदी के तट पर बसा अयोध्या एक अति प्राचीन धार्मिक नगर है। मान्यता है कि इस नगर को मनु ने बसाया था और इसे ‘अयोध्या’ का नाम दिया जिसका अर्थ होता है अ-युध्य अथार्थ ‘जहां कभी युद्ध नहीं होता। ‘ इसे ‘कौशल देश’ भी कहा जाता था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अयोध्या मे सूर्यवंशी/रघुवंशी राजाओं का राज हुआ करता था, जिसमें भगवान श्री राजा राम ने अवतार लिया था। नारायण का यह मनुष्य राम रूप एक राजा के चरित्र पर आधारित है। किवदंतियों के अनुसार यहाँ पर सातवीं शाताब्दी में एक चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे। यह सप्त पुरियों में से एक है-

अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका ।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका:॥

(अर्थात- अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, काञ्चीपुरम, उज्जैन, और द्वारिका – ये सात पुरियाँ नगर मोक्षदायी हैं।)

वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, “अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या” और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है- अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या। तस्यां हिरण्मयः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः॥ (अथर्ववेद — 10.2.31). रामायण के अनुसार भी अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। यह पुरी सरयू के तट पर बारह योजन (लगभग १४४ कि.मी) लम्बाई और तीन योजन (लगभग ३६ कि.मी.) चौड़ाई में बसी थी। कई शताब्दी तक यह नगर सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रहा। अयोध्या मूल रूप से हिंदू मंदिरों का शहर है। यहां आज भी हिंदू धर्म से जुड़े कई अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहां चौबीस तीर्थंकरों में से पांच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। क्रम से पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ जी, दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी, चौथे तीर्थंकर अभिनंदननाथ जी, पांचवे तीर्थंकर सुमतिनाथ जी और चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ जी। इसके अलावा जैन और वैदिक दोनों मतो के अनुसार भगवान रामचन्द्र जी का जन्म भी इसी भूमि पर हुआ। उक्त सभी तीर्थंकर और भगवान रामचंद्र जी सभी इक्ष्वाकु वंश से थे। इसका महत्व इसके प्राचीन इतिहास में निहित है क्योंकि भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतापी क्षत्रियों (सूर्यवंशी) की राजधानी यही नगर रहा है।
अयोध्या नगरी में दर्शनीय कई और स्थल है जिनका उल्लेख इस प्रकार है.

रामकोट
शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थित रामकोट अयोध्या में पूजा का प्रमुख स्थान है। यहाँ भारत और विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं का साल भर आना जाना लगा रहता है। मार्च-अप्रैल में मनाया जाने वाला रामनवमी पर्व यहाँ बड़े जोश और धूमधाम से मनाया जाता है।

हनुमान गढ़ी
अयोध्या को भगवान राम की नगरी कहा जाता है और जहाँ राम का वास हो वहाँ हनुमान का नाम कैसे भूला जा सकता है। यहाँ हनुमान जी सदैव वास करते हैं। इसलिए अयोध्या आकर भगवान राम के दर्शन से पहले भक्त हनुमान जी के दर्शन करते हैं। यहाँ का सबसे प्रमुख हनुमान मंदिर “हनुमानगढ़ी” के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर राजद्वार के सामने ऊंचे टीले पर स्थित है। कहा जाता है कि हनुमान जी यहाँ एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। हनुमान जी को रहने के लिए यही स्थान दिया गया था।

प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी को ये अधिकार दिया था कि जो भी भक्त मेरे दर्शनों के लिए अयोध्या आएगा उसे पहले तुम्हारा दर्शन पूजन करना होगा। यहाँ आज भी छोटी दीपावली के दिन आधी रात को संकटमोचन का जन्म दिवस मनाया जाता है। पवित्र नगरी अयोध्या में सरयू नदी में पाप धोने से पहले लोगों को भगवान हनुमान से आज्ञा लेनी होती है। यह मंदिर अयोध्या में एक टीले पर स्थित होने के कारण मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 76 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। इसके बाद पवनपुत्र हनुमान की 6 इंच की प्रतिमा के दर्शन होते हैं,जो हमेशा फूल-मालाओं से सुशोभित रहती है। मुख्य मंदिर में बाल हनुमान के साथ अंजनी माता की प्रतिमा है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में आने से उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

इस मन्दिर के निर्माण के पीछे की एक कथा प्रचलित है। सुल्तान मंसूर अली अवध का नवाब था। एक बार उसका एकमात्र पुत्र गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। प्राण बचने के आसार नहीं रहे, रात्रि की कालिमा गहराने के साथ ही उसकी नाड़ी उखड़ने लगी तो सुल्तान ने थक हार कर संकटमोचक हनुमान जी के चरणों में माथा रख दिया। हनुमान ने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम का ध्यान किया और सुल्तान के पुत्र की धड़कनें पुनः प्रारम्भ हो गई। अपने इकलौते पुत्र के प्राणों की रक्षा होने पर अवध के नवाब मंसूर अली ने बजरंगबली के चरणों में माथा टेक दिया। जिसके बाद नवाब ने न केवल हनुमान गढ़ी मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया बल्कि ताम्रपत्र पर लिखकर ये घोषणा की कि कभी भी इस मंदिर पर किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और न ही यहाँ के चढ़ावे से कोई कर वसूल किया जाएगा। उसने 52 बीघा भूमि हनुमान गढ़ी व इमली वन के लिए उपलब्ध करवाई थी ।

राघवजी का मन्दिर
ये मन्दिर अयोध्या में स्थित बहुत ही प्राचीन भगवान श्री रामजी का स्थान है जिसको हम (राघवजी का मंदिर) नाम से भी जानते है मन्दिर में स्थित भगवान राघवजी अकेले ही विराजमान है ये मात्र एक ऐसा मंदिर है जिसमे भगवन जी के साथ माता सीताजी की मूर्ति बिराजमान नहीं है। सरयू जी में स्नान करने के बाद राघव जी के दर्शन किये जाते है।

नागेश्वर नाथ मंदिर
अयोध्या में नागेश्वर नाथ मंदिर को भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने बनवाया था। माना जाता है जब कुश सरयू नदी में नहा रहे थे तो उनका बाजूबंद खो गया था। बाजूबंद एक नाग कन्या को मिला जिसे कुश से प्रेम हो गया। वह शिवभक्त थी। कुश ने उसके लिए यह मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि यही एकमात्र मंदिर है जो विक्रमादित्य के काल के पहले से है।

कनक भवन
1891 में निर्मित इस मंदिर को अयोध्या में एक महत्वपूर्ण मंदिर माना जाता है। हनुमान गढ़ी के निकट स्थित इस मंदिर में राम और सीता माता के सोने के मुकुट काफी लोकप्रिय हैं।

माना जाता है की अयोध्या बहुत बार उजड़ी और बसाई गई है। सब लोगों ने अपनी भक्ति के अनुसार यहाँ की व्याख्या की है। कई राजाओं ने यहाँ आकार अपना राज बसाने की कोशिश भी की, लेकिन राम जन्मभूमि तो राम की थी, और हमेशा रहेगी। भक्ति का कोई मोल ना कोई तोल होता है। भावना हर व्यक्ति के मन में स्वयं जागृत होती है। तो अपनी भक्ति की ज्योत हमेशा अपने मन में जलायें रखें। स्वार्थ पूर्ति का भाव त्यागकर संतोष पूर्ति का भाव उत्पन्न करो।

जय श्री राम

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