एक बातचीत- एंकर,एक्ट्रेस तान्या पुरोहित के साथ

तानिया पुरोहित
तानिया पुरोहित

“मंजिल की मखमली दहलीज पर वही शख्स पहुँचता है,
जिसने मेहनत के रास्तों पे, अपने पैरों के तलवे तपाए हों।”

जी हाँ, दोस्तों जब कोई शख्स अपने मुकाम पर पहुँच जाता है तो दुनिया को लगता है बड़ी आसानी से पहुँच गया लेकिन उसके पीछे की गई मेहनत का अंदाज सिर्फ वही जनता है, जिसने अपने दिन रात उस मंजिल तक पहुँचने में लगा दिए।

एक आवाज़ जिसने अपना जादू हर तरफ बिखेरा है। जिसने अपनी काबिलियत से, अपनी एंकरिंग से और अपने अंदाज से सबको दीवाना बनाया है। उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश का नाम रौशन किया है। एक टीवी एक्ट्रेस से लेकर बॉलीवुड तक का सफर उसने बाखूबी निभाया है। हर बार खुद को नए किरदार में ढालना भी उसकी की खासियत रही है। जी हाँ, वो शख्सियत है तान्या पुरोहित जो आज कल आईपीएल में अपनी एंकरिंग को लेकर काफी चर्चाओं में है।

मेहनत की इसी दास्ताँ को बयाँ करने हमारे साथ साक्षात्कार की इस शृंखला में आज जुड़ी हैं बॉलीवुड अभिनेत्री, टीवी एक्ट्रेस और एक उम्दा एंकर तान्या पुरोहित। तान्या से होंगे कुछ सवाल जवाब, कुछ खट्टी मीठी बातें, कुछ ज़िंदगी के उतार चढ़ाव और जानेंगे उनकी कुछ नई पुरानी यादें। चलिए बिना समय बर्बाद किये शुरू करते हैं बातों-मुलाकातों का आज का ये सिलसिला।

प्रश्न: तान्या आपका गुठलियाँ साक्षात्कार श्रृंखला में स्वागत है। एक एंकर के तौर पर हमेशा आप लोगों को सच और हकीकत की ज़िंदगी से रूबरू करवाती हो, सबसे सवाल जवाब करती हो। आज आप खुद किसी साक्षात्कार का हिस्सा बनी हैं तो कैसा महसूस हो रहा है?

उत्तर: मुझे अच्छा लग रहा है सुजाता आपसे बात करके। वैसे इंटेरव्यूस काफी लिए हैं और ये एक अच्छा एक्सपीरियंस है कि मेरा इंटरव्यू हो रहा है। मुझे लगता है कि सवालों के जवाब देना थोड़ा मुश्किल होता है। वैसे तो मैं एक्सपर्ट से सवाल पूछती हूँ और बॉलीवुड सेलेब्रिटी के भी मैंने इंटरव्यू लिए हैं लेकिन आप मेरा इंटरव्यू ले रहे तो मेरे लिए टफ (मुश्किल) हो जाता है जवाब देना।

प्रश्न: तान्या सबसे पहले तो आप अपने विषय में कुछ बताइए। आप कहाँ से हैं? कहाँ रहती हैं? आपकी शिक्षा दीक्षा कहाँ सम्पन्न हुई?

उत्तर: मैं उत्तराखंड से हूँ। मेरी पढ़ाई, मेरा कॉलेज, मेरा पोस्ट ग्रेजुएशन सब श्रीनगर गढ़वाल से हुआ है। वहीं मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी बिताई, पूरी पढ़ाई वहीं से खत्म करी। उसके बाद मेरी शादी हुई तो मैं दिल्ली शिफ्ट हुई। दिल्ली में चार साल काम करने के बाद मैंने डिसाइड किया कि मुझे मुंबई जाना है क्योंकि मैं हमेशा से मुंबई आना चाहती थी। ऐक्टिंग के भी प्रोजेक्ट्स के लिए मुझे लगा कि वो ज्यादा अच्छी जगह है, वहाँ पर ज्यादा opportunities (मौके) हैं और फिर मैं मुंबई शिफ्ट हो गई। अब मैं मुंबई में ही रहती हूँ।

प्रश्न: तान्या आपको एंकरिंग का शौक़ बचपन से था या आपने अपने करियर के लिए इसे बाद में चुना? क्या कोई ऐसी बात थी जिसने आपका रुख एंकरिंग की तरफ मोड़ा हो।


उत्तर: एंकरिंग का शौक मुझे बचपन से था क्योंकि मैं थियेटर करती थी तो मुझे लगता था कि मैं बोल लूँगी। हिन्दी पढ़ने में और डायलॉग्स में मेरी पकड़ अच्छी थी। मुझे लगता था हाँ माईक पकड़कर बोलना ही तो है, बातें ही तो करनी है तो मुझे काफी interesting (रोचक) लगता था। लेकिन i think जब मैंने थियेटर 8th के बाद दोबारा regularly करना शुरू किया तो मुझे छोटे छोटे एंकरिंग के chances मिल जाते थे वहाँ पर मुझे लगा कि यार इस चीज में तो मुझे मज़ा आ रहा है तो i can do it और profession के तौर पर अगर ये मिल जाए तो बहुत अच्छा होगा। जब मैं दिल्ली पहुँची तो उससे पहले मैंने थोड़ा बहुत एंकरिंग के projects किये थे। एक दिन एक चैनल से कॉल आया था। मेरे हसबैन्ड ने मुझे बताया कि एक ऑडिशन है क्या तुम जाकर देना चाहती हो? मैंने कहा ठीक है दे देती हूँ नहीं भी होता है तो उसमें कोई प्रॉब्लम नहीं । जब मैं ऑडिशन देने गई और मैंने ऑडिशन दिया तो जो कैमरा पर्सन वहाँ पर खड़े थे he said very good तब मैंने कहा “अरे! मैंने अच्छा किया”। वहाँ से अगले ही सुबह कॉल आ गया और फिर मैंने उनके साथ काम करना शुरू किया। एंकरिंग मेरी पसंद पहले से थी। हाँ, जब दिल्ली आई तो दिशा मिल गई मुझे। शुरुवात अच्छी हुई तो उसकी वजह से चीज़े अच्छी बनती चली गई।

प्रश्न: आप इन दिनों आईपीएल को लेकर काफी सुर्खियों में हैं। आईपीएल में आपका सलेक्शन वाकई में आपके परिवार के लिए ही नहीं पूरे उत्तराखंड के लिए बहुत गौरव की बात है। एक एंकर के तौर पर आईपीएल में आपके सलेक्शन की क्या प्रक्रिया रही है? क्या इसके लिए कोई विशेष तरह की तैयारी करनी पड़ती है? इसका चयन किस प्रकार होता है? कृपया अपने फेन्स को इस विषय में बताइए।

उत्तर: मुझे क्रिकेट हमेशा से बहुत पसंद था। और उसका कारण मेरी मम्मी, मेरे नाना और मेरी नानी जी हैं। ये तीनों मिलकर हमेशा क्रिकेट देखते थे तो मैं भी देखती थी ये सोचकर कि ऐसा क्या है जो इनको इतना इन्टरेस्ट आ रहा है। जब मैंने देखना शुरू किया, इनकी बातें सुनना शुरू किया तो मुझे भी इन्टरेस्ट आने लगा और मैं मम्मी के साथ बहुत ज्यादा देखने लगी। मेरे पापा बिल्कुल क्रिकेट नहीं देखते हैं तो उनको कभी कभी लगता था कि क्यूँ ये इतना क्रिकेट देखते हैं। डाँट भी पड़ी है कई बार। i think थोड़ा नंबर कम आए थे 9th में तो क्रिकेट बंद करवा दिया था क्योंकि क्रिकेट देखने का बहुत ज्यादा शौक़ था तो गेम की समझ भी थी। फिर तीन साल पहले यूट्यूब का एक चैनल था जो स्पोर्स कवर करता था। वहाँ से मुझे एक दिन ऑडिशन के लिए कॉल आया मैंने जब ऑडिशन दिया तो मैं सलेक्ट हो गई। वहाँ पर मैं एक बबल में आ गई जहाँ पर स्पोर्स की बातें होती थी। मुझे स्पोर्स की पर्सनेलिटी से मिलने का चांस मिलता था जो मेरा प्यार था खेल के प्रति वो और ज्यादा बढ़ गया। फिर मुझे लगा कि अब मैं क्रिकेट कर सकती हूँ, स्पोर्ट्स कर सकती हूँ। एक दिन जब मुझे पता चला कि आईपीएल के लिए ऑडिशन हो रहे हैं not exactly आईपीएल क्योंकि उन्होंने कहा था कि स्पोर्ट्स चैनल को एक एंकर चाहिए तो घर से एक ऑडिशन बनाकर भेजना होगा। मैंने ऑडिशन बनाकर भेजा तो मुझे काफी दिनों तक कोई जवाब नहीं आया। मैं भूल गई। मुंबई में बड़ा चलता है कि आप ऑडिशन दो और भूल जाओ don’t think about it। मैं काम भी कर ही रही थी ऐसा भी नहीं था कि मेरे पास काम नहीं था। ऑडिशन देने के एक महीने बाद मुझे दोबारा कॉल आया कि हम specifically क्रिकेट के बारे में आपका ऑडिशन चाहते हैं। मैंने फिर एक ऑडिशन बनाकर भेजा। उसके बाद भी मुझे लगभग दो ढाई महीने तक कोई कॉल और मैसेज नहीं आया। ढाई महीने बाद मैं एक सीरियल का शूट कर रही थी। लगातार मेरे शूटस चलते थे तो ये सब मैं भूल गई थी।

अचानक मुझे एक दिन मुझे कॉल आया कि हमें जल्दी से आपका ऑडिशन लेना है क्या आप कल आ सकती हैं? ऑडिशन का स्टूडियो राउन्ड होगा। यह ऑडिशन स्टार स्पोर्ट्स के लिए होना था जहाँ काम करना मेरा सपना था। मैं इस नेटवर्क को हमेशा से देखती थी और सोचती थी कि i wish मैं कभी इसमें काम करूँ और इस टीम का हिस्सा बन पाऊँ। जब मैंने वहाँ ऑडिशन दिया तो मेरे लिए सिर्फ एक ऑडिशन देना, वहाँ पर सारे क्रिकेटर्स को देखना ही बहुत बड़ी बात थी। मैं तो बहुत खुश थी क्योंकि मुझे क्रिकेट से बहुत ज्यादा प्यार रहा है।

यह ऑडिशन दो स्टूडियो में होना था और मैंने ऑडिशन दिया और वो ठीक हुआ। फिर मैं वापस आई and i told myself ok you don’t have to think about it because it’s a big deal. Even if it doesn’t happen it doesn’t matter. लेकिन उसके बाद मुझे फिर कॉल आया कि हम आपका एक इंटरव्यू फिर करना चाहते हैं। आपको हमारे हेड के साथ एक फाइनल एक मीटिंग करनी होगी। जब मैं दोबारा पहुँची तो उन्होंने मुझसे क्रिकेट को लेकर काफी सारे सवाल किये। तो बेसिकली all in all it was a very long process . काफी सारी एक्सपेक्टेशन आपसे भी रखी जाती है क्योंकि स्टार्स स्पोर्ट्स इंडिया का सबसे बड़ा स्पोर्ट्स नेटवर्क है और आईपीएल दुनिया का बहुत बड़ा टूर्नामेंट है। गलती से भी यहाँ पर गलतियाँ माफ नहीं होती है। काफी मेहनत लगी लेकिन हाँ सबका साथ भी था। इस पूरी प्रॉसेस से मुझे काफी कुछ सीखने को मिला।

आपको खेल की जानकारी होनी चाहिए खेल के प्रति आपका प्यार होना चाहिए। यह भी है कि अगर आपको कोई चीज पसंद होती है तो आप उससे सीखने की चाह में मेहनत भी ज्यादा करने लगते हैं। काफी मेहनत लगी पर एंड रिजल्ट ये था कि मुझे आईपीएल मिल ही गया।

प्रश्न: जहाँ तक मुझे याद है जब मैंने आपसे पहली बार फोन पर बात की थी तो आपने मुझे बताया था कि आपने आईपीएल तक पहुँचने में बहुत मेहनत की है। इसी आईपीएल की चयन प्रक्रिया काफी समय से चली आ रही थी तो जब आपको पता चला कि आपका सलेक्शन हो चुका है तो आपका पहला रिएक्शन क्या था? खुशी के इस एहसास को आपने सबसे पहले किसके साथ शेयर किया?

उत्तर: जब मुझे पहली बार पता चला कि मेरा आईपीएल में सेलेक्शन हो गया तो actually प्रॉब्लम ये हुई कि मुझे ऐसा फोन नहीं आया कि तान्या आपका सेलेक्शन हो गया। उन्होंने मुझे बोला कि तान्या हम एक और राउन्ड के लिए आपसे मिलना चाहते हैं तो जो वो खुशी होती है ना पहला सेलीब्रेशन तो वो हो ही नहीं पाया। मुझे थोड़ा कन्फ्यूजन था कि ठीक है, हो सकता है फाइनल राउन्ड के लिए बुला रहे हैं या हो सकता है कि मुझे किसी से मिला रहे होंगे। मेरे हसबैन्ड दीपक उस वक्त बॉम्बे में नहीं थे। वो गोवा में थे। अपने फ्रेंड्स के साथ गोवा में छुट्टी मना रहे थे और मैं बॉम्बे में अकेली थी। मैं ऑफिस पहुँची तो मेरा फाइनल इंटरव्यू हुआ। तब भी उन्होंने कुछ इस तरह से नहीं बोला कि हाँ ठीक है फाइनली आपका सेलेक्शन हो गया। ऐसी कोई बात नहीं हुई। उन्होंने कहा कि ओके तान्या एक मैच चल रहा है लाइव तो आप उसको देखो और सीखिए कि किस तरह से होता है। फिर मैंने पूछा मतलतब मतलब हो गया ना ? i am doing IPL? और जो मेरे producer हैं वो हँसने लगे और उन्होंने कहा” हाँ हाँ कर रही हो”। वहाँ पर इतने सारे लोग बैठे थे तो मैं वैसा रिएक्ट कर नहीं पाई जैसे मुझे करना था। वहाँ से निकलने के बाद सबसे पहले मैंने अपनी मम्मी को कॉल किया क्योंकि मैं अपनी मम्मी को बताकर आई थी कि आज मैं कहाँ जा रही हूँ। फिर पापा को कॉल किया, फिर नानी सबको कॉल किया। अपने हसबैन्ड दीपक को बीच में कॉल किया तो उनका नंबर लगा नहीं। बाद में सबको बताया और सब बहुत खुश थे। जहाँ तक मेरी बात है मुझे थोड़ा समय लगा उस खुशी को महसूस होने में कि हाँ हो गया। घर आकर जब मैं अकेली थी तो ज्यादा फ़ील हुआ कि ओके हो गया। And it was very special.

प्रश्न: तान्या आप इससे पहले भी सीपीएल यानी कैरेबियन प्रीमियर लीग को होस्ट कर चुकी हैं और अब आईपीएल। जिन खिलाड़ियों को हम टीवी पर खेलते देखते हैं उन्हें सामने से देखना, उनसे बात करना, उनके काम के बारे में दर्शकों को बताना इस एक्सपीरियंस को आप किस तरह बयाँ करेंगी।

उत्तर: कैरेबियन प्रीमियर लीग ऐसी लीग है जो आईपीएल के बाद होती है लेकिन इस बार कोविड के चलते आईपीएल से पहले हुई। काफी नए खिलाड़ी इसका हिस्सा होते हैं। यह एक अलग तरह की लीग है। आईपीएल के मैं पहले सीजन फॉलो करती आई हूँ तो मुझे आईपीएल के बारे में आईडिया था। सीपीएल के मैंने सीजन बहुत ज्यादा फॉलो नहीं किये थे बस कुछ- कुछ किये थे। मुझे जब पता चला कि मुझे ही होस्ट करना है तो मैंने इसके लिए काफी पढ़ाई करी, बहुत मेहनत की। रही बात खिलाड़ियों को सामने से देखने की तो वो वर्क फ्रॉम होम था। हम लोग कहीं ऑफिस से सामने से शूट नहीं कर रहे थे। घर से लेपटॉप पर एक दूसरे के साथ कनेक्ट थे। हाँ, आईपीएल में जैसे ही पहली बार मुझे सामने से इरफान दिखे, आशीष नेहरा दिखे तो एक अलग तरह की खुशी हुई थी। सब बहुत स्वीट हैं, हेल्पफुल हैं। मेरा पहला टूर्नामेंट था उन्होंने मेरी बहुत मदद भी की। मेरे लिए बहुत अच्छा एक्सपीरियंस था क्योंकि i met my heroes and I got a chance to work with them. And it was a great experience.

प्रश्न: एक तरफ आपकी एंकरिंग और दूसरी तरफ आपकी एक्टिंग। दोनों बिल्कुल अलग हैं लेकिन आपकी ज़िंदगी से ऐसे जुड़े हैं मानो एक ही हिस्सा हो। ये जुड़ाव आपकी ज़िंदगी में कब और कैसे शुरू हुए? इसके पीछे की क्या कहानी हैं?


उत्तर: एक्टिंग से जुड़ाव तो देखिए मेरे पापा की वजह से है क्योंकि पापा का अपना थियेटर ग्रुप और पापा खुद थियेटर में इतने साल ऐक्टिव थे। उनके साथ मैं भी 3rd क्लास से बाहर जाकर थियेटर करती थी। मैं कहती थी कि मुझे भी थोड़ा बहुत रोल दो। कुछ नहीं तो कभी डाँस भी कर लेती थी। अंधायुग में तो मैंने उल्लू का किरदार निभाया था तो सब लोगों ने मेरा काफी मज़ाक बनाया था लेकिन I was really happy to be on the stage। मेरी शक्ल नहीं दिख रही थी। मेरे चेहरे पर मास्क लगा हुआ था लेकिन उसके बाद भी मेरे लिए खुशी थी कि मैं स्टेज पर आई और लोगों ने मेरे लिए तालियाँ बजाई। थियेटर से तो वहाँ से लगाव हुआ और वो चलता ही चला गया। ऐक्टिंग से ही मुझे एंकरिंग का कॉन्फिडेंस आया। आप अगर स्टेज पर खड़े होकर पूरा प्ले कर सकते हो तो आप बात भी कर सकते हो । हिन्दी पर मेरी पकड़ बहुत अच्छी हुई क्योंकि प्ले के टाइम हम हिन्दी में ही बात करते हैं। डायइलॉग्स पढ़ते हैं, कहानियाँ पढ़ते हैं तो वो भाषा पर जो पकड़ हुई उसकी वजह से एंकरिंग की तरफ भी झुकाव हुआ। दोनों को actually मैं बिल्कुल अलग नहीं मानती क्योंकि मुझे लगता है कि वो एक ही सिक्के के दो पहलू है। मतलब जुड़े हुए हैं एक तरफ से। ऐक्टिंग में आपको कैमरे को इग्नोर करना है। आपको दूसरों को ये नहीं दिखाना है की सामने कैमरा है और एंकरिंग में आपको कैमरा ही फेस करना है। बस ये एक छोटा सा फर्क है। बाकी आपका कॉन्फिडेंस, आपका वॉयस मॉड्यूलेशन, आपके एक्सप्रेशंस सब कुछ जुड़ा हुआ है। सब कुछ सेम है। जितना आप एंकरिंग में नेचुरल रहते हो ना जैसे आप हो, आपकी पर्सनलिटी एंकरिंग में वैसे ही दिखती है। वही आपके काम को सबसे खूबसूरत दिखाती है। मुझे तो बहुत मज़ा आता है इन दोनों को साथ में लेकर, कभी एक्टिंग, कभी एंकरिंग।

प्रश्न: एक छोटी सी लड़की जिसके लिए एक्टिंग का मतलब आईने के सामने सिर्फ रोने से था और बड़ी होने पर उस अभिनय को अदायगी में बदलकर खुद को एक अभिनेत्री के रूप में प्रस्तुत करने का सफर कैसा रहा? इस दौरान आपने खुद में क्या बदलाव देखे?

उत्तर: हाँ, मैं पहले यही सोचती थी कि बड़े बड़े इयरिंगस पहनकर मेकअप करके खड़े हो जाओ और रोने की ऐक्टिंग करो। मुझे लगता था यही ऐक्टिंग है। ऐसा भी मैंने महसूस किया है कि जैसे जैसे उम्र बढ़ती है ना तो एक्सपीरियंस आपकी ज़िंदगी के बढ़ते हैं, समझ आपकी चीजों को लेकर बढ़ती है, इमोशन्स बढ़ते हैं, सेंसटिविटी बढ़ती है, सेन्सिबिलिटी बढ़ती है और फिर वही आपकी एक्टिंग में नजर आता है। पंकज त्रिपाठी जी जिन्हें मैं बहुत पसंद करती हूँ वो कहते हैं कि” थियेटर आपको कुछ और बनाए ना बनाए एक अच्छा इंसान जरूर बना देता है”। actors बहुत इमोशनल होते हैं। आप अपने इमोशन्स को जितनी खूबसूरती से पर्दे पर दिखा पाए आप उतने अच्छे एक्टर होते हैं। मुझे लगता है एक उम्र के साथ एक्सपीरियंस के साथ मेरे अंदर भी चीज़ें बेहतर हुई हैं हालांकि अभी मैं काम कर रही हूँ और अभी मुझे बहुत कुछ काम अपनी एक्टिंग पर करना है। मैं जब किसी को देखती हूँ तो मुझे लगता है यार ये कितना बेहतरीन काम कर रहा है। इन्फैक्ट जब मैं एक्टिंग में किसी को बहुत अच्छा काम करते हुए देखती हूँ तो थोड़ी सी अंदर की बात है पर मैं आपको ऑनेस्टली बता रही हूँ बहुत इमोशनल हो जाती हूँ। इमोशनल परफ़ॉर्मेंस देखकर मैं इमोशनल हो जाती हूँ। जैसे जब मैंने कंगना रनौत को क्वीन में देखा था तो मैं बहुत इमोशनल हो गई थी क्योंकि मेरे लिए था यार she’s so good। इन्फैक्ट अभी भी मैं जब पिक्चर हॉल जाती हूँ तो prefer करती हूँ मैं फिल्म देखने अकेले जाऊँ। ये जो मेरे अंदर बदलाव आए हैं इमोशन्स को लेकर वो ऐक्टिंग में भी मेरी बहुत मदद करती हैं। बहुत चेंज होता है, उम्र के साथ, एक्सपीरियंस के साथ, जब आप दुनिया घूमते हो, देखते हो, नए नए लोगों से मिलते हो। बॉम्बे में मुझे बहुत मौका मिलता है लोगों की परफ़ोर्मेंस देखने का ग्रुप्स के साथ काम करने का। इन सबने मुझे एक एक्टर के तौर पर बहुत बदला है।

प्रश्न: तान्या आप ये भी बहुत अच्छे से जानती हैं कि, कोई भी मकाम आसानी से हासिल नहीं होता है। आपकी ज़िंदगी में भी बहुत से पड़ाव ऐसे आए होंगे जहाँ आपको भी ऐसे हालातों का सामना करना पड़ा होगा, जो शायद काफी मुश्किल रहे होंगे। इन उतार चढ़ावों के बारे में आप क्या कहना चाहती हैं?


उत्तर: जब आप बॉम्बे जैसे बड़े शहर में फ्रीलैन्सर होते हैं तो बहुत मुश्किल ज़िंदगी होती है। मैं यह सबसे कहती हूँ जो भी मुझसे पूछते हैं। मुझे तरह तरह के messages आते हैं कि हम भी ऐक्टर बनना चाहते हैं, एंकर बनना चाहते हैं क्या हम अपनी जॉब छोड़ दें? कभी कभी बहुत यंग यंग बच्चे मुझे मैसेज करते हैं लेकिन मैं सबसे यही कहती हूँ कि सबसे पहले आप पैशेनेट रहिए उसके प्रति जो काम आप करना चाहते हो। सबसे पहले जरूरी है आप अपनी पढ़ाई पूरी करें। हमेशा आपकी पढ़ाई आपके साथ होनी चाहिए। मैंने भी पहले पोस्ट ग्रेजुएशन किया। मैं ये नहीं कह रही कि आपका जो पैशन है आप उसे फॉलो मत करें। आप बिल्कुल थियेटर करते रहें लेकिन पहले आप अपनी पढ़ाई को जारी रखें उसे खत्म करें उसके साथ साथ काम मिलता है बहुत अच्छी बात है लेकिन पढ़ाई बहुत जरूरी है।
मेरे लिए thankfully अगर ऐक्टिंग के projects मिलने में थोड़ा सा टाइम लगता था तो एंकरिंग हमेशा से रही है। ऐसा नहीं है कि मैं एंकरिंग में ज्यादा या ऐक्टिंग में कम टाइम देती हूँ। मेरे लिए दोनों बराबर हैं। मुझे दोनों प्रोफेशन से बहुत प्यार है। ज़िंदगी में मुश्किल पड़ाव जरूर आते हैं लेकिन अगर आप मेहनत करते रहते हैं, आप हिम्मत नहीं हारते, आप पॉजिटिव रहते हैं, जो कि सबसे ज्यादा जरूरी इस फील्ड में, तो कामयाबी जरूर मिलती है। आपके अंदर धैर्य होना बहुत जरूरी है। अगर आपका काम नहीं भी बन रहा है तो आपको हिम्मत बिल्कुल भी नहीं हारनी है। मेरे साथ भी ऐसा हुआ। हाँ, बहुत लंबे ब्रेक्स नहीं आए लेकिन कभी कभी आप निराश हो जाते हो कि वो चीज़ें क्यों नहीं हो रही हैं जो आप चाहते हो। ऐसी सिचवेशन में हमेशा मेरे पास मेरी फैमिली का सपोर्ट रहा है तो आसानी से चीज़ें निकल जाती है।

प्रश्न: आपके पिताजी डॉ. डी आर पुरोहित गढ़वाल विश्व विद्यालय के रिटायर्ड अंग्रेजी प्रोफेसर हैं और उत्तराखंड गढ़वाल संस्कृति विशेषज्ञ भी हैं तो जाहिर सी बात है आपके अंदर कला के कुछ गुण उन्हीं के सानिध्य में रहकर आए होंगे।

उत्तर: बिल्कुल मेरे अंदर कला का ये गुण मेरे पापा की वजह से ही है।

मैं छोटी सी थी तो मुझे नहीं पता था कि थियेटर क्या होता है जब मैं पापा को रिहर्सल में जाते देखती थी तो मुझे बड़ी इच्छा होती थी कि मैं पापा के साथ जाऊँ। वहाँ दीदी भैया लोग रिहर्सल में होते थे। मुझे उनसे मिलना, उनके साथ बाते करना बड़ा अच्छा लगता था। फिर जब मैं पहली बार स्टेज पर गई और मैंने छोटा सा कोई रोल किया था। उस किरदार में मुझे तालियाँ मिली तो मुझे लगा, यार ये तो बेस्ट चीज है यही तो मुझे करना है। आप कुछ करें और लोग आपकी तारीफ कर रहे हैं तो आपको अच्छा लगता ही है। वो इसलिए पोसिबल हो पाया क्योंकि पापा ही थियेटर करते हैं। पापा के साथ ही जाना था तो किसी बात की कोई चिंता ही नहीं होती थी। उन्ही कि वजह से मैंने थियेटर में प्रवेश लिया और नाटक करना शुरू किया। हालाँकि जितना उनको संस्कृति के बारे में पता है जितना कुछ वो जानते हैं मैं तो उनके सामने बिल्कुल ही शून्य हूँ। हाँ लेकिन उनकी वजह से ये सब चीज़ें मेरे अंदर आई और यही सब चीज़ें मुंबई में मेरी मदद करती है। यहाँ आकार मुझे यह भी एहसास हुआ है कि मेरे पास कई ऐसी चीजें हैं जो मेरे अंदर तब नहीं होती, अगर मेरे पापा संस्कृति और कला से इस तरह जुड़े नहीं होते। तो यह कहना गलत नहीं होगा कि यह सब कुछ मेरे पापा की वाह से ही है ।

प्रश्न: दिल्ली में एक्ट-वन एक जाना माना थियेटर ग्रुप है जिसके फाउंडर पियूष मिश्रा,मनोज बाजपेयी और एन.के शर्मा जी हैं। जब आपने एक्ट वन ज्वाइन किया तो आपके लिए ये कैसा एक्सपीरियंस रहा?

उत्तर: एक्ट वन में बहुत अच्छा एक्सपीरियंस था। दिल्ली में एक्ट वन से जुड़ना मेरा पहला एक्सपीरियंस था जहाँ मैं बॉलीवुड के लोगों से मिली। यहाँ मैंने देखा कि ये दुनिया कितनी अलग है। यहाँ मेरे टीचर थे एन के शर्मा जी जो कभी कभी बहुत रूड हो जाते थे, डाँट भी लगा देते थे। वो मुझे कहते थे मैं तुम्हें तैयार कर रहा हूँ क्योंकि बाहर जो दुनिया है वो बहुत मुश्किल है। वहाँ पर कई बार मैं मनोज वाजपेयी से मिली। वो हमसे स्पेशियल बातचीत करने आते रहते थे। वो हमें बताते थे इंडस्ट्री के बारे में कि उधर कैसी ज़िंदगी है, और बॉम्बे में कैसे काम चलता है।

आपको बहुत कुछ सीखने को मिलता है जब आप दो घंटा बैठकर किसी की बातें सुनते हैं। बाहर जो दुनिया है वो असल में कैसी है इस बारे में हजार नई बातें पता चलती हैं। यहाँ आपको सब सिखा सकते हैं लेकिन बाहर जाकर परफ़ॉर्म आपको करना है। जब आप एक फिल्म के सेट पर जाते हैं तो वहाँ पर सामने कैमरा होता है, आपका डायरेक्टर होता है बाकी पेरफ़ॉर्मेंस आपकी होती है। एक्ट वन में मुझे इसी चीज को लेकर समझ बढ़ी।

प्रश्न: तान्या आप उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लॉक क्वीली गांव की मूल निवासी हैं। एक छोटे से गाँव से लेकर बॉलीवुड तक का सफर आपने तय किया है और बतौर अभिनेत्री खुद को स्थापित किया है। इस सफर से जुड़ी कोई बात या किसी शख्स से जुड़ी मुलाकात आपको याद है जिसने कभी आपकी मदद की हो?

उत्तर: मेरी बहुत लोगों ने मदद करी है। मेरे पापा एक लाईन बोलते हैं कि ज़िंदगी में पैसा कमाओ ना कमाओ लेकिन लोगों की मदद करो। अगर किसी की मदद कर सको तो कैसी भी सिचवेशन हो मदद करो। मैं कभी ये सोचकर मदद नहीं करती की मुझे मदद वापस मिलेगी। आप भी कभी ये सोचकर किसी की मदद मत करना। इसलिए करना क्योंकि करनी चाहिए। आपके बस में है तो करो नहीं तो मत करो। कभी कभी मैं भगवान को थैंक्स बोलती हूँ मुझे इतने लोग मदद करते हैं। इस इंडस्ट्री में आप अकेले आगे नहीं बढ़ सकते। खासकर दिल्ली जैसा शहर बॉम्बे जैसा शहर यहाँ सारे काम आपको कैसे मिलते हैं या तो आपके टैलेंट कि वजह से और दूसरा you have to be at the right place at the right time. और वो आप कैसे पहुँचते हो जब आपके लिए कोई आपका रेफरेंस देते हैं। कहीं अगर opportunity है तो आपके दोस्त बोलते हैं कि यार इसको ऐड कर लो। she can do-it, he can do-it. मैंने ये लोगों के लिए किया है लोग मेरे लिए करते हैं इसी चीज ने मेरी बहुत मदद की है। आगे बढ़ने के लिए आप अगर लोगों से मदद नहीं लेते, लोगों की मदद नहीं करते, तो आप आगे नहीं बढ़ सकते। टेलेंट जरूरी है वो बिल्कुल अलग बात है लेकिन उसके आलवा जरूरी है लोगों से अच्छे रिश्ते रखना। इस पूरे सफर में मेरी बहुत लोगों ने मदद करी है। मैं किसी का नाम ही नहीं ले सकती क्योंकि सबने साथ दिया। आधे लोग ऐसे हैं जिनसे मैं मिली भी नहीं कभी। फेसबुक से एक दूसरे को जानते होंगे सोशल मीडिया से जानते होंगे। मुंबई में ऐसे ही काम चलता है कि आप किसी की मदद करें और कोई आपकी मदद कर देता है।

प्रश्न: अनुष्का शर्मा की फिल्म एनएच 10 में आप सपोर्टिंग रोल में काम कर चुकी हैं और टेररिस्ट अटैक-ब्योंड बाउंड्री व कमांडो में आप मुख्य अभिनेत्री के रूप में निखरकर सामने आई हैं। इन दोनों फिल्मों में आपके किरदार के बारे में कुछ बताइए।

उत्तर: एनएच 10 में मेरा रोल सपोर्टिंग था पर वह बहुत जरूरी किरदार था। उसमें बहुत कम कलाकार हैं बहुत कम कास्ट है। उसमें जो मुख्य विलेन था मैं उसकी वाइफ बनी हुई थी। बहुत फनी स्टोरी है। मैं एक बहुत छोटे से रोल के लिए ऑडिशन देने गई थी। पार्टी में मुझे बस एक एक्टर बनकर बैठना था पार्टी का बस एक सीन था। हमारे जो कास्टिंग डायरेक्टर हैं उन्होंने कहा कि तुम कल एक काम करना पुराने कपड़े और चिपके से बाल बनाकर एकदम गाँव की जैसी बनकर आना। कल हमें तुम्हारा ऑडिशन लेना है। अगले दिन जब मैं वापस गई और उन्होंने जिस किरदार के लिए मेरा ऑडिशन लिया वह ऑडिशन सही हुआ और रोल मुझे मिल गया।

बियोंड बाउंड्री में जो मुख्य किरदार है मैं उनकी बेटी का रोल कर रही हूँ। ये एक पिता और बेटी की कहानी है। पिता जो हैं वो आर्मी में होते हैं और बेटी जब बड़ी होती है पिता गुजर चुके हैं। उसको अपने पापा की एक डायरी मिलती है। जब वो डायरी पढ़ती है तो कहानी एकदम फ़्लैशबैक में चली जाती है।

दोनों रोल करना मेरे लिए बहुत स्पेशियल था। अच्छा एक्सपीरियंस था। जब आप एक बड़े सेट पर जाते हैं और आप इंपोर्टेनट किरदार निभा रहे होते हैं तो आपको मौका भी मिलता है। जितने ज्यादा सीन्स होते हैं उतना मौका आपको परफ़ॉर्म करने का मिलता है। देखिए इस इंडस्ट्री में जितना ज्यादा आप काम करोगे उतनी ज्यादा लर्निंग होती है। यहाँ हर दिन आप कुछ नया सीखते हैं और आपको हर चीज से कुछ नया सीखने को मिलता है।

प्रश्न: तान्या आप आईपीएल से पहले एक टीवी शो ‘कहत हनुमान जय सिया राम’ में मुख्य भूमिका निभा रही थी। सिलेक्शन के बाद आपको ये शो बीच में ही छोड़ना पड़ा है । तो क्या आईपीएल खत्म होने बाद आप फिर इस शो को दोबारा जॉइन करोगी ?

उत्तर: नहीं नहीं ये जो शो है ‘कहत हनुमान’ इसमें मैं सुग्रीव की वाइफ का किरदार प्ले कर रही थी। ये शो मैंने छोड़ दिया था। आईपीएल खत्म होने के बाद मैं ये शो दोबारा जॉइन नहीं कर रही हूँ। उसे मैंने उसी वक़्त छोड़ दिया था।

प्रश्न: एक्टिंग और एंकरिंग के आलवा भी आपके कोई और शौक़ हैं?

उत्तर: एक्टिंग और एंकरिंग के आलवा! बाप रे अगर कोई मुझसे पूछे तो मैं बिल्कुल भी कुछ सोच नहीं पाती। ना मुझे कुछ शौक है। हमारी जो जॉब है इतनी स्ट्रेसफुल जॉब है जितनी बार आप कैमरे के सामने जाते हो उतनी बार आप नर्वस होते हो क्योंकि आपको परफ़ॉर्म करना है। ये ऐसी जॉब तो नहीं है कि आप जाकर कुछ भी कर लो आपको परफ़ॉर्म करना है और आप खराब परफ़ॉर्म करना अफोर्ड नहीं कर सकते। बड़ा प्रेशर वाला होता है तो मुझे कभी लगता है कि यार जब भी मुझे ब्रेक मिले मैं ट्रैवल करूँ। ट्रैवल का मतलब ये नहीं कि मुझे ट्रेवलिंग का शौक है। नहीं ! मुझे बस नई नई जगह जाकर वहाँ ज्यादा दिन रुकूँ ये मन करता है। वैसे मुझे प्लेन, ट्रेन, बस किसी भी तरह का ट्रैवल करना बड़ा मुश्किल लगता है। हाँ, जब ट्रेवलिंग के बाद आप डेस्टिनेशन पर पहुँचते हो तो बड़ा सुकून मिलता है। नए लोग नया ट्रडिशंस वो सब देखने का मन होता है। अभी भी मेरा प्लान है कि जब आईपीएल खत्म होगा तो मैं ट्रैवल करूँ। शौक यही है कि पूरी दुनिया ट्रैवल करूँ।

प्रश्न: तान्या क्या आपने कभी बचपन में या बड़े होकर किसी के साथ कुछ अजीब से कारनामे किये हैं? जिसको लेकर बाद में बहुत हँसी आई हो, बहुत डर लगा हो या घर से बहुत डाँट पड़ी हो? प्लीज बताइए।


उत्तर: अरे बाप रे! मम्मी की तो बहुत ही डाँट पड़ती थी। मैं बचपन में खाने की बहुत ही शौकीन थी और मेरी मम्मी के लिए मुझे घर बुलाने का एक ही तरीका होता था कि यह बोले कि खाने के लिए कुछ लेकर आए है। रसगुल्ले, गुलाब जामुन कुछ भी। मैं पूरे मोहल्ले में कहीं भी खेलने चली जाती थी। मेरी शैतानी के चक्कर में कई शिकायतें भी आती थी। एक दिन मैं मोहल्ले में घूम रही थी तो मेरी दोस्तें आकर कहती हैं की आंटी बुला रही हैं। वह कह रही हैं गुलाब जामुन लेकर आए हैं रसगुल्ले लेकर आए हैं। मैं भी अपना खेल वेल छोड़कर घर की तरफ खाने के लिए भागी। जैसे ही घर पहुँची तो मैंने कहा ” मम्मी कहाँ है गुलाब जामुन”? मुझे उस दिन बहुत मार पड़ी। मम्मी ने कहा कब से बुला रही हूँ सात बज गया तू अभी तक घर नहीं आई। रात रात भर खेलती रहती है। उस दिन तो मैं बहुत पिटी। अभी कुछ ही दिन पहले मैं अपनी मम्मी से कह रही थी कि मम्मी आपने मुझे रसगुल्ले और गुलाबजामुन के चक्कर में बहुत पीटा था। मम्मी बोली नहीं मैं कहाँ तुझे पीटती थी लेकिन सच्चाई ये है की मम्मी हमारी बहुत पिटाई किया करती थी।

प्रश्न: तान्या आखिरी सवाल ये है कि आपकी ज़िंदगी का, आपके करियर का वो सबसे खूबसूरत और यादगार लम्हा कौन सा है जिसे आप कभी नहीं भूल सकती हो?

उत्तर: हम लोग दिल्ली हाट में घूम रहे थे और मुझे अचानक से फोन आया कि तान्या तुम्हारा एन एच 10 के लिए सेलेक्शन हो गया है। तुम्हारे सीन्स अनुष्का शर्मा के साथ हैं। उस समय मेरी मम्मी, मेरी मौसी, दीपक मेरे हसबैन्ड मेरे साथ थे । बहुत स्पेशल मोमेंट था। मैं पलटी और उन्होंने कहा क्या हुआ, क्या हुआ ? और उस वक़्त मैं खुशी से पागल हो रही थी । मैंने उन्हें अपने सलेक्शन की बात बताई। तो वो भी बहुत खुश हुए। फिर हम घूमे बहुत सारी शॉपिंग की । वो दिन मेरे लिए सबसे स्पेशल था। अगर आप ऐसी बातें अपनी फैमिली के साथ शेयर कर पाओ तो सबसे अच्छा लगता है। उसके बाद बहुत सारे स्पेशल मोमेंट आए हैं। अभी भी आ रहे हैं, उम्मीद है आगे भी आते रहेंगे। वो पहला था तो वो हमेशा मेरे दिल के बहुत करीब रहेगा। इसके आलवा एक और मोमेंट मुझे याद आ रहा है जो तब हुआ था जब हम एन एच का एक सीन शूट कर रहे थे। नवदीप सिंह जो इस फिल्म में मेरे डायरेक्टर हैं. वह बहुत ही प्यारे और अच्छे इंसान है। उन्हें मालूम था कि मैं बिल्कुल नई हूँ और कैमरा पहली बार फेस कर रही हूँ। एक सीन था जिसमें अनुष्का शर्मा को, जो विलेन था वो थप्पड़ मार रहा होता है। मेरा केवल रिएक्शन टेक था यानि कि उसमें मेरा को डायलॉग्स नहीं था। उन्होंने मेरा टेक लिया और जब उन्होंने उसको शूट किया और मॉनिटर पर प्ले किया। उन्होंने मेरी तरीफ़ करते हुए कहा! what an artist one take very good. वो मुझे मेरा मॉरल हाई करने के लिए ऐसा कह रहे थे, मुझे मोटिवेट करने के लिए कह रहे थे।

वो एक ओके टेक था लेकिन वो बहुत ज्यादा सपोटिव थे। उन्होंने सबसे कहा अरे ताली बजाओ इस लड़की के लिए क्या काम किया है। वो मोमेंट भी बहुत स्पेशल था क्योंकि अनुष्का शर्मा, दीप्ति नवल सब वहाँ पर बैठे हुए थे। तो ये भी मोमेंट ऐसा था जो मैं कभी नहीं भूल सकती।

तान्या बहुत बहुत धन्यवाद! जो आप हमारे साक्षात्कार का हिस्सा बनी और आपने अपने इतने व्यस्त समय से हमारे लिए समय निकाला। आपसे बात करके वाकई बहुत अच्छा लगा। बातें तो बहुत हैं मगर घड़ी की सुइयाँ इजाजत देने से रोक कर कह रही है कि हमें बातों के इस सिलसिले को यहीं विराम देना होगा। आप इसी तरह आगे बढ़ते रहो, कामयाबी आपके कदम चूमती रहे ईश्वर से यही कामना है।
जाते जाते आप अपने फैंस के लिए क्या कहना चाहती हैं? कोई खास संदेश अगर देना हो तो प्लीज दीजिए।

मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि मुझे उत्तराखंड से बहुत सारे अच्छे अच्छे मैसेजेस आ रहे हैं। लोग बहुत अच्छी बातें लिखते हैं, बहुत सपोर्ट करते हैं, इतना प्यार देते हैं यह मेरे लिए वो बहुत महत्व रखता है। मैं अभी शुरुआत कर रही हूँ। मेरा अभी सपना है कि मैं बहुत अच्छा काम करूँ जितना आप लोग प्यार दे रहे हैं उस पर खरी उतरूँ। मेरे लिए overwhelming हो जाता है जब आप लोग इतना प्यार देते हो। अगर मुझे देखकर उत्तराखंड के एक पर्सेंट भी लड़के लड़कियों को यह लगता है कि वह इस दिशा में काम कर सकते हैं तो बेशक उनको आगे आना चाहिए। इससे मुझे खुशी ही होगी। मुझे लगता है कि उत्तराखंड में बहुत टेलेंट हैं। मैं वहाँ के वीडियोज़ देखती हूँ और सोचती हूँ की वह इतनी सी उम्र में क्या क्या कर रहे हैं। मैं जब उस ऐज की थी तब मुझे आईडिया भी नहीं था मुझे क्या करना है। इसलिए मैं कहूँगी कि कभी भी उम्मीद मत छोड़िए और सपने देखते रहिए। जितना बड़ा सोचना है सोचिए, अगर कोई हँसता है हँसने दीजिए लेकिन आप अपने सपनों पर विश्वास कायम रखिए। आप उसे हासिल करने के लिए मेहनत करते रहिए क्योंकि मेहनत बहुत जरूरी है। अगर आप उस चीज को लेकर डिसिप्लिंड हैं तो आप उसे पा ही लेंगे। जब मैं स्टार्स स्पोर्ट्स देखती थी तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे मुश्किल टी 20 लीग की एंकरिंग करूँगी लेकिन मैं अभी यहाँ पर हूँ। ऐसा कोई भी कर सकता है। बस जरूरत है कि आप ईमानदारी से मेहनत करें अपने गोल की तरफ फोकस्ड रहें और उम्मीद का दामन कभी न छोड़ें।

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