शिक्षा का हर रूप सुंदर है
शिक्षा हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। शिक्षा का हमारे जीवन में होना हमें सम्पूर्ण करने जैसा है। इसके बिना हर व्यक्ति अधूरा है। शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो हमको हमसे परिचित कराता है, हमें समाज से परिचित कराता है, हमें आगे बढ़ने की समझ प्रदान करता है और हमें एक सभ्य संस्कारी होने के साथ साथ व्यावहारिक व्यक्ति बनाता है। शिक्षा एक ऐसी मंजिल है जहाँ पहुँचने के लिए कोई समय निर्धारित नहीं होता है। इस मंजिल पर हर उम्र, हर धर्म, हर जाती सम्प्रदाय का व्यक्ति चल सकता है। शिक्षा हमारी ज़िंदगी में वो जड़ी-बूटी है जिसे आप दो साल के बच्चे से लेकर सौ साल के बुजुर्ग तक को पिला सकते हो। ये शरीर की आत्मा की तरह है जो कभी नहीं मरती और ताउम्र निरंतर गंगा की भाँति बहती रहती है। हाँ, फर्क बस इतना है कि उम्र दराज लोग इसे अपनाने में इसके महसूस करते हैं। लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो उम्र की सारी सीमाओं से परे शिक्षा की गंगा में निरंतर बहते रहते हैं।
कहते हैं परिवर्तन प्रकृति का नियम है और ये परिवर्तन हर जगह अपने अपने हिसाब से सही होते हैं। समय की माँग के साथ किसी की भलाई के लिए हुए परिवर्तन को हमेशा स्वीकार करना चाहिए। उसी तरह शिक्षा भी है । ये हर साल अपनी पद्दति बदलती रहती है ताकि समय के साथ ये भी अपने रूप को सँवारे, उसे निखारे और उसे इस लायक बनाए कि, हर कोई उसे अपना सके, अपने जीवन में इसे उतार सके और अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास कर सके। पहले के दौर में और अब के दौर में जमीन आसमान का फर्क है। पहले की शिक्षा पद्दती और पाठ्यक्रम दोनों बदल चुके हैं। आज संगीत हो या खेलकूद, कार्टून्स हो या मनोरंजन, डाँस हो या कोई ओर चीज हर तरीके से बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास किया जाता है। अब तकनीकि शिक्षा ने भी जीवन में दस्तक दे दी है। आज तकनीक बच्चों की पढ़ाई से लेकर बड़ों के कामकाज का एक सशक्त माध्यम बन चुका है। बैंक से लेकर शेयर मार्केट तक हर चीज तकनीक से जुड़ चुकी है। आज समय ने जिस हिसाब से करवट बदला है, उसको ध्यान में रखकर तकनीक का यह रूप अच्छा लगने लगा है। सुरक्षित होने के साथ साथ यह आसान भी लगने लगा है। हाँ शुरुआती दौर में सबको परेशानी हुई है लेकिन धीरे धीरे सब ठीक होने लगा है।
अब अगर मैं बात करूँ बच्चों की ऑनलाईन पढ़ाई की तो ऐसा नहीं था कि तकनीकि शिक्षा अपने अस्तित्व में नहीं थी लेकिन तब उसकी उतनी आवशयकता महसूस नहीं हुई थी। आज एक महामारी ने लोगों की सोच, जीने का तरीका, खाने पीने का तरीका यानी लगभग हर चीज बदल दी है। बच्चों को अब भारी बैग लादकर दिन भर स्कूल में नहीं रहना पड़ता है। फोन पर दिन भर कार्टूनस देखने वाले बच्चे अब फोन पर अपना होमवर्क करते हैं। एक माँ की चिंता बच्चे को स्कूल और घर लाने की अब वो भी नहीं रही। अक्सर सुबह से शाम तक कामकाजी लोग अपने घर से दूर होते थे लेकिन अब ऑफिसियल काम भी घर बैठे संभव हो चुका है। अब ऑफिस जाने में मिलों का सफ़र तय नहीं होता है। घर पर अब बच्चे और बड़े सब एक साथ रहते हैं आपस में एक दूसरे को समय देते हैं।
कहने का तात्पर्य बस इतना सा है कि कोई भी चीज बुरी नहीं होती है बस उसको अपनाने का तरीका सही होना चाहिए है। अगर मंशा सही हो तो हर चीज सही है। अच्छे और बुरे प्रभाव हर किसी के होते हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम उस चीज को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा ही नहीं बनायें। वैसे ही तकनीकि शिक्षा भी है जिसके अच्छे और बुरे प्रभाव दोनों है। कई लोग इसका फायदा उठा लेते हैं तो कई लोग इसमें अपना समय और वक़्त दोनों बर्बाद कर देते हैं। एक तरफ आपको घर बैठे शिक्षा के रूप में देश दुनियाँ की तमाम जानकारी मिल जाती है। तो दूसरी तरफ सोशल मीडिया में कई लोग खुद के दिन रात बर्बाद कर देते हैं। तो इस तकनीक का इस्तेमाल कैसे करना है यह आपको सोचना होगा। इसे अपनी ज़िंदगी में केवल उतनी ही हिस्सेदारी दें जितना आपको जरूरत है। जो चीज आपको ज्ञान दे, रास्ता दे, सद्बुद्धि दे, उसे अपनाने में कोई परेशानी नहीं है।
यहाँ मेरा मकसद तकनीकि शिक्षा पर चर्चा करना नहीं है। मैं बस इतना कहना चाहती हूँ की शिक्षा चाहे जो भी हो उसे आगे बढ़ाइए। वो आपको जिस जगह जिस हालत में भी मिले उसे झट से अपनी ज़िंदगी में जोड़ दें और आपको भी जहाँ आपको मौका लगे लोगों को शिक्षित करें। बड़े बुजुर्गों को समय देकर उनकी सोच के साथ मिलकर कुछ ऐसा रास्ता निकालिए, जिससे वो भी समझ जायें और आपका मन्तव्य भी पूरा हो जाए। बच्चों को उनकी तरह समझाइए। कहीं अगर आपके पास समय है तो सड़क में कोई बच्चा अगर दिखे तो उसे पैसे देने के बजाय प्यार से दो मिनट अपने पास बैठाकर समझाइए। क्या पता आपकी चंद बातें उसे कुछ अच्छा सीखने के लिए प्रेरित कर जाए।
“इंसान का व्यवहार उसका आने वाला कल निर्धारित करता है” ये भी एक तरह की शिक्षा ही है। आपकी उपस्थिति कहाँ कब और कितनी होनी चाहिए ये भी आपकी मानसिक शिक्षा का ही रूप है। हम सबके अंदर एक आंतरिक शिक्षा होती है जिसे निखारने के लिए जिसकी शाखाएं बढ़ाने के लिए हमें बाहरी शिक्षाओं का सहारा लेना पड़ता है। ताकि मंजिल तक पहुँचाने में ये सब हमारी मदद करें। परिस्थियों के हिसाब से आपके पास जो साधन उपलब्ध हैं उनसे खुद को शिक्षित कर खुद का भविष्य उज्ज्वल करें। खुद को हर परीक्षा के लिए तैयार करें। खुद को अपनों के पास रखें, सुरक्षित रखें यकीनन मंजिल आपकी होगी।