एक अलग अनुभव की खुशी
कभी कभी कुछ चीज़ें आपके साथ अचानक घटित हो जाती है। आपको उनके होने का ना तो अंदाज़ा रहता है ना पता। बस वो हवा के झरोखे की तरह आपके सम्मुख आ जाती हैं। जब आपको पता चलता है कि आपको उसी दिन वो काम करना है तो आप अकबका जाते हो कि यह कार्य कैसे होगा क्योंकि उसकी कोई तैयारी नहीं होती है। अब भई काम है तो करना तो पड़ेगा ही क्योंकि इज्जत का सवाल हो जाता है। कुछ काम ऐसे होते हैं जिनसे मिलती जुलते चीजों में आपकी पकड़ अच्छी होती है मगर जो काम आया होता है उसमें आप पारंगत नहीं होते हो तब आप असमंजस में पड़ जाते हो कि क्या करें। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ ।
मेरे एक मित्र हैं सुरेन्द्र राणा जी जो कि जौनसर के लोकगायक हैं। उन्होंने अभी एक हारुल बनाया है। जिसमें मुझे भी गाने का अवसर मिला है। मुझे ये अवसर कैसे प्राप्त हुआ इसके पीछे एक छोटी सी मगर रोचक कहानी है। पहले तो हारुल क्या होती है मुझे इसके विषय में कोई अंदाजा नहीं था और चूँकि मैं गढ़वाल क्षेत्र से हूँ तो जौनसारी भाषा से भी मैं पूरी तरह से अनभिज्ञ थी।
कहते हैं कुछ चीज़ें वक़्त तय करता है और उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ। मैं भी गाने की बहुत शौकीन हूँ तो उसके चलते कई गायक कलाकारों से परिचित हूँ। कुछ कलाकार मित्रों को मैं पहले से जानती हूँ तो कुछ के साथ मेरी मित्रता फेसबुक के संपर्क माध्यम से हुई। उन्हीं में से एक मित्र कलाकार जो कि जौनसार के ही रहने वाले हैं उनका नाम लाच्छी है। वो मुझसे एक जौनसारी गीत गवाना चाहते थे मगर उन्होंने मुझे अपने गीत की तैयारी करने का समय दिया था तो मैंने थोड़ा बहुत धुन और शब्दों को पकड़ लिया था। फोन के माध्यम से ही उन्होंने मुझसे तैयारी कारवाई और नवंबर 1 तारीख को उन्होंने रिकॉर्डिंग का समय तय कर लिया।
1 तारीख को हमने विकासनगर रिकॉर्डिंग के लिए जाना था तो उनका मुझे कॉल आया कि एक बार आमने सामने बैठकर हम लोग कुछ देर तैयारी कर लें। इसी के चलते उन्होंने मुझे नेहरू कॉलोनी देहरादून स्थित हंगामा स्टूडियो में बुलाया। हम दोनों पहली बार एक दूसरे से मिले। इत्तेफाकन वहाँ जौनसार के ही लोकगायक सुरेन्द्र राणा जी अपनी हारुल की रिकॉर्डिंग कर रहे थे। अब स्टूडियो में जब कोई और भी कलाकार मोजूद होते हैं तो परिचय होना लाजमी है। हमारा भी आपस में परिचय हुआ।
बातों बातों में सुरेन्द्र जी ने मुझसे पूछा- “आप गाते हो?”
मैंने उन्हें अपने विषय में बता दिया। मैंने उनको ये भी बात दिया था कि बिना तैयारी के मेरे लिए जौनसारी गीत गाना थोड़ा मुश्किल है। उन्होंने मुझसे कहा- “आप सिंगर हो और सिंगरों के लिए कुछ मुश्किल नहीं होता है। कर लोगे आप, एक बार सुना दो आपका गला कैसा है?” मैंने थोड़ा कुछ गा कर सुनाया तो उनको मेरी आवाज़ पसंद आई । फिर उन्होंने कहा कि उनके साथ ये हारुल मैं ही रिकार्ड करूँ। जब उन्होंने मुझे पहले रिकार्ड करने को कहा था तो मेरे मन में एक पल के लिए यह संशय हुआ था कि बिना तैयारी के मैं इस गीत को निभा पाऊँगी या नहीं, मगर उनके इन शब्दों ने मुझे प्रोत्साहन दिया। मुझे बहुत खुशी हुई और मैं उत्साहित हो गई कि मैं ही ये हारुल रिकार्ड करने वाली हूँ। एक दो बार बाहर बैठकर हमने उनके गीत का प्रयास किया और थोड़ी देर बाद मैंने फाइनल रिकॉर्डिंग कर दी।
हालाँकि सुरेन्द्र जी के अनुसार हारुल कोरस और अकेले दोनों रूपों में गाई जाती है। कोरस वो होता है जिसमें एक से अधिक व्यक्ति एक साथ गाते हैं। तो मैंने भी इस गीत में अपनी आवाज़ कोरस पार्ट में दी है। यानि की जब मैं अपनी पंक्तियाँ गा रही हूँ तो मेरे साथ सुरेन्द्र राणा जी भी साथ में गा रहे हैं।
गाने के बाद मुझे खुद बहुत प्रसन्नता हुई और अच्छा भी महसूस हुआ कि मैंने एक नई भाषा में गाया और बिना तैयारी के गाया। खुद को बहुत अच्छा लगता है जब आप अपनी भाषा से हटकर किसी और भाषा को गाने की कोशिश करते हो और उस भाषा का उच्चारण सही से कर पाने में सक्षम हो जाते हो। स्टूडियो में किसी और गीत के लिए गई थी और गा कर कुछ और गीत आ गई। मेरे लिए ये एक बहुत अच्छा अनुभव था। एक नए शब्द से मुलाकात हुई, एक नए कलाकार के साथ गाने का अवसर प्राप्त हुआ। कुछ दिन बाद मैंने स्टूडियो जाकर इस गाने की लिपसिंक विडिओ शूट की।
गीत का लिंक यहाँ साझा कर रही हूँ एक बार सुनकर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।
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