कैसे तैयार होता है एक गीत?

गीत संगीत का हमारी ज़िंदगी से जुड़ाव और लगाव एक अलग क़िस्म का होता है जिसे एक शब्द में बयाँ कर पाना मुश्किल है। वहीं इसी गीत संगीत की पसंद ना पसंद भी सबकी अपनी अलग- अलग होती है। जो शब्द गीत बनकर हमारे कानों में मधुर स्वरों में गूँजते हैं उन्हें तैयार कैसे किया जाता है? कैसे उनका चयन किया जाता है? ये शायद हम लोग कभी नहीं सोचते। एक गीत ठीक उस प्रकार होता है जैसे रसोड़े में माँ के हाथ का खाना! जो खाने में स्वादिष्ट तो लगता है लेकिन उस स्वाद को लाने में कितनी मेहनत लगी है हम कभी जान नहीं पाते हैं और ना कभी जानने की कोशिश करते हैं। ऐसे ही एक गीत के पीछे कितनी मेहनत लगती है यह ज्यादातर लोगों के सामने नहीं आ पाती है।

एक गीत को कैसे बनाया जाता है? इसके पीछे किसकी कितनी मेहनत होती है? आज मैं इस बात पर प्रकाश डालने की कोशिश करूँगी।

गीत का विषय या थीम

सबसे पहले गीत का विषय या थीम निर्धारित किया जाता है। जो आप लिखना चाहते हो उसका विषय क्या है ? उसे किस तरह के खाँचे में ढालना है इस पर सोच विचार किया जाता है। बिना विषय के गीत लेखन मुश्किल है और अगर लिखा भी जाता है तो उस गीत के शब्द आखिर में अपना विषय खुद निर्धारित कर ही लेते हैं। क्योंकि बेवजह तो कुछ भी नहीं होता है। अगर कमर्शियल गीत लिखने की बात आती है तो आपको जरूरत के अनुसार गीत लिखना होता है। मान लीजिये आपको फिल्म के लिए गीत लिखना है तो फिल्म का डायरेक्टर आपको उस फिल्म की थीम और विषय बताते हैं। फिर उन्हें उस थीम पर किस प्रकार का गीत चाहिए होता है यह वो समझाते हैं। उनकी इस जरूरत के अनुसार आपको गीत लिखना होता है। फिल्म में किरदारों के बीच क्या सिचुएशन है इसे ध्यान में रखकर गीत लिखना होता है। मान लीजिये अगर दो प्रेमियों पर गीत फिल्माया जाना है तो यह गीत रोमांटिक हो सकता है जिसमें प्रेमी अपने प्रेम का इजहार कर रहे हैं, या यह गीत विरह की भावना लिए हो सकता है जिसमें दो प्रेमी एक दूसरे से अलग हो रहे हैं या ऐसा भी हो सकता है कि गीत में प्रेमियों के बीच कुछ हल्की फुलकी नोक झोंक को दर्शाया जाए। इन सभी परिस्थितयों को ध्यान में रख कर शब्दों का चुनाव किया जाता है और फिर उन्हें गीत के रूप में ढाला जाता है।

गीत के बोल

जो गीत सुनने में सबसे ज्यादा कर्णप्रिय लगता है उसके पीछे बहुत बड़ा हाथ उसमें इस्तेमाल किये गये शब्दों का होता है। अगर शब्द अच्छे ना हो तो अच्छा संगीत भी उसे उठा नहीं सकता है। उसे यादगार बना नहीं सकता है। फिल्म के किरदार किस तरह की भाषा बोलते हैं और थीम क्या है उसे देखकर गीत के शब्दों का निर्धारण किया जाता है। कभी कभी एक गाना लिखे जाने में पूरा साल खींच लेता है और कभी कभी कभी एक हफ्ते में आपको आपके ऐसे शब्द मिल जाते हैं जो कि निर्देशक की विज़न पर फिट बैठते हैं। कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि आपको शब्द तो मिल जाते हैं मगर वो शब्द आपकी रिदम पर फिट नहीं बैठ पाते हैं और फिर आपको उस पूरी लाइन को दोबारा लिखना पड़ता है।

मैं अपने द्वारा लिखे गये एक गीत ‘तुम बेपनाह’, जो कि फिल्म ’72 आवर्स’ के लिए लिखा गया था, का उदारहण दूँ तो इसके लिए मुझे पहले पूरे 2 दिन थीम सुनाई गई थी। फिर मुझे शूट्स के कुछ सीन दिखाए गए थे। सब देख सुनकर जब मैंने गीत लिखा तो गाने का मुखड़ा तो पहली ही दफा में कर दिया गया मगर गाने के अंतरे में बहुत दिन लगे। काफी मेहनत के बाद गाना बनकर तैयार हुआ और फाइनल किया गया । रेफरेंस के तौर पर गाने को मैं यहाँ एड कर रही हूँ।

गीत की धुन

गाने की थीम और गीत के बोल के बाद बारी आती है गीत की धुन की। जब गीतों का चलन भारत में शुरू हुआ था तब पहले धुन तैयार की जाती थी फिर उस धुन पर गाने के बोल तैयार कराए जाते थे। भारतीय सिनेमा जगत में कई दिग्गज संगीतकारों ने यही चलन काफी समय तक अपनाए रखा लेकिन धीरे धीरे चीज़ें बदलने लगी और शब्दों पर नई धुन बनाई जाने लगी।

अब तो ये भी होता है कि अगर कोई एल्बम का गीत है तो उसके लिरिक्स पहले से लेखक के पास तैयार होते हैं और वो संगीतकार को पहले वो गीत सैम्पल के तौर पर सुनाता है। अगर बोल उनको पसंद आ जाता है तो उस पर बाकी संगीत तैयार कर उसे सम्पूर्ण किया जाता है। एक गीत लेखिका होने के नाते ये बात मैं कह सकती हूँ क्योंकि मैं भी कई गीतों को कुछ अच्छी थीम दिमाग में आने पर लिख देती हूँ।

एक गीत है “ये दिल तुम बिन” जो कि मेरे ही द्वारा लिखा और गाया गया है। इसके पीछे काफी दिलचस्प किस्सा रहा है। कहानी काफी लंबी है फिर किसी और पोस्ट में जिक्र करूँगी मगर इस गीत के लीरिक्स भी पहले तैयार किये थे। अचानक से एक धुन मेरे दिमाग में दस्तक दे गई और मैं काफी समय तक उस धुन को बिना शब्दों के गुनगुनाने लगी। जब धुन दिमाग में बैठ गई तो मैंने झट से वो धुन अपने फोन के रीकॉर्डर में रिकार्ड कर ली। अपना रोज मर्रा का काम खत्म करने के बाद फिर मैं आराम से बैठी और उस धुन पर शब्दों को अपने दिमाग जोड़ने लगी तो थोड़ी मुश्किल के बाद आखिर दूसरे दिन मुझे उस धुन पर शब्द मिल ही गए। इन शब्दों में थोड़ा बहुत बदलाव हुआ और आखिर में यह गीत बनकर तैयार हो गया।
“ये दिल तुम बिन” इस गीत को आप यहाँ सकते हैं।

रिकॉर्डिंग

ऊपर के सभी पड़ाव पार करने के बाद अब रिकॉर्डिंग की बारी आती है। गीत के बोल और धुन तैयार होने के बाद गीत को रिकार्ड किया जाता है। रिकॉर्डिंग से पहले सिंगर्स के स्केल चेक किये जाते हैं। स्केल से मेरा मतलब रेंज से है कि आपके गले का रेंज क्या है गाने को आप कितने ऊँचे और कितने नीचे स्वर तक गा सकते हैं। स्केल चेक करने बाद कभी कभी वहीं पर धुन और शब्दों में भी बदलाव किये जाते हैं। जब सब प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो गीत को सिंगर्स के पास रिकॉर्डिंग के लिए भेज दिया जाता है। हाँ, यहाँ मैं एक और चीज जोड़ना चाहूँगी कि जब रिकॉर्डिंग शुरू होती तो उसे क्लिक के साथ भी रिकार्ड किया जाता है ताकि शब्दों का मीटर अपने निर्धारित समय पर भी बैठ जाए। क्लिक के साथ एक बेस म्यूजिक भी रिकॉर्डिंग के लिए जरूरी होता है।

संगीत

रिकॉर्डिंग की प्रक्रिया जब समाप्त हो जाती है तो फाइनल संगीत तैयार किया जाता है। गीत के बोल और धुन के आधार पर संगीत के जितने भी साज बाज (इंस्ट्रूमेंट) की जरूरत होती है वो सब बजाए जाते हैं। हाँ कभी ये भी होता है कि एक गीत का संगीत केवल गिटार की धुन पर ही पूरा हो जाता है। वो इसलिए भी की गीत की भी अपनी अपनी जरूरत होती है कि कौन स गीत क्या माँग रहा है। इसलिए संगीत हमेशा गाने के अनुसार उसकी फील को ध्यान में रखकर दिया जाता है।

यहाँ मैं एक और चीज जोड़ना चाहूँगी कि संगीत के जितने भी इंस्ट्रूमेंट होते हैं वे सभी हिन्दी इंग्लिश या केवल दो तीन भाषाओं के नहीं होते हैं बल्कि भाषा और देश के हिसाब से उनका गायन वादन होता है। उनके भी अपने परिवेश और दायरे होते है। उदाहरण के तौर पर जैसे उत्तराखंडी संगीत के इंस्ट्रूमेंट केवल उत्तराखंड के संगीत में ही इस्तेमाल किये जाते हैं। हर राज्य के संगीत की अपनी एक अलग पहचान होती है जो उसे लोकल टच देने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। अब हर इंस्ट्रूमेंट हर गीत में बजे ये भी जरूरी नहीं है। शब्दों के बोल और विषय के आधार पर कौन स इंस्ट्रूमेंट बजाना है ये तय करना संगीतकार का काम होता है। संगीत एक खेल की तरह है जिसे जितना खेलेंगे उतना निखर कर सामने आता है। सब चीज़ें जब तैयार हो जाती है तो फाइनल म्यूजिक तैयार होता है और फाइनल संगीत म्यूजिक के बाद एक बार फिर फाइनल रिकॉर्डिंग की जाती है।

मिकसिंग और मासटरिंग

सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद पूरे गीत को एक फाइनल टच देने के लिए सब तरह के इंस्ट्रूमेंट जो गाने के दौरान बजाने गए थे उनको बैलेंस करने के लिए मिकसिंग और मासटरिंग की जाती है। इसके बाद बहुत सारे टेक्निकल प्लगिन को इस्तेमाल कर गाने में डाल दिए जाते हैं। आवाज़ को इक्यू किया जाता है, बेस और ऑटो टून करके अच्छे से रिफाइन किया जाता है। यहाँ मैं एक चीज और क्लियर कर दूँ जिस ऑटो टून की बात मैं कर रही हूँ वो भी आवाज़ के हिसाब से कम ज्यादा लगाया जाता है। क्योंकि उसकी नंबरिंग होती है।

आवाज़ को बाकी ट्रैक के साथ बेलेंस किया जाता है, एडिट किया जाता है। वोकल के आलवा जो भी बाकी संगीत के ट्रैक होते हैं उनका वॉल्यूम लेबल किया जाता है ताकि कोई भी चीज एक दूसरे के ऊपर हावी ना होने पाए। अगर शब्दों का करेक्शन होता है तो वो भी इस दौरान रिकॉर्ड करके उसको फाइनल ट्रैक में शामिल किया जाता है। ये सब होने के बाद एक बार फुल वॉल्यूम में गीत को सुना जाता है और गाने का बेस देखा जाता है कि पूरे ट्रैक में सब बराबर है कि नहीं। सब अगर ओके होता है तो एक बार फिर कम वॉल्यूम में गाने को सुना जाता है ताकि छोटी-छोटी कमियाँ आसानी से सुनाई दी जाए। जब सब ओके होता है तो गाने को एक्सपोर्ट कर दिया जाता है जिसे रेंडर मारना भी कहते हैं।

गीत रेंडर होने पर यह इस्तेमाल के लिए तैयार हो जाता है।

तो यह थी एक गीत बनने की प्रक्रिया !जो इतने पड़ाव को पूरा करने के बाद पूरी होती है । बहुत सारी मेहनत बहुत लोगों का साथ, बहुत इंस्ट्रूमेंट की जरूरत इन सब के बिना एक गीत पूरा नहीं होता है।

4 Responses

  1. अनमोल है आपका यह लेख सुजाता जी । और आपकी इस प्रतिभा का तो पता ही नहीं था । मैं आपके दिए हुए लिंक फ़ॉलो करके आपके ये गीत अवश्य सुनूंगा । मेरा सौभाग्य है जो यूं आपसे संपर्क हुआ ।

  2. दोनों गीत सुने सुजाता जी । आपने जितने अच्छे गीत लिखे हैं, उतनी ही सुरीली आपकी आवाज़ है । मैं यही आशा करता हूँ कि आपको अपनी इस दोहरी प्रतिभा के उपयोग के और अवसर मिलेंगे । और इस लेख में जो आपने गीत के निर्माण की संपूर्ण प्रक्रिया को जिस सूक्ष्मता से स्पष्ट किया है, वह इस क्षेत्र में पदार्पण कर रहे अथवा करने की सोच रहे किसी भी व्यक्ति के लिए उज्ज्वल पथ-प्रदर्शन है ।

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