ललकार- एक नए दौर की | हिन्दी कविता
हम खड़े हैं आपके साथ चलने के लिए,
हम लड़े थे आपके साथ मिलने के लिए।
हम डटे हैं ताकि बेहतर हो उत्तराखंड हमारा
हम मिटे भी थे, आपको हक दिलाने के लिए।
आज नई सोच है आज नया आगाज़ है
आओ हाथ बढ़ाओ, आओ साथ निभाओ
हम चले हैं नई राह पर, आपके सपनों के लिए
हम खड़े हैं आपके साथ चलने के लिए,
हम लड़े थे आपके साथ मिलने के लिए।
राज्य बनाने के लिए, जिन महानुभावों ने त्याग किया।
सब छोड़ा, और जग छोड़ा, हर हाल में प्रण पूरा किया।
आज उन्हीं को भूल गए, सब अपने में ही खो गए।
न फिक्र किसी को रह गई, सब सत्ता में ही खो गए।
चलो वक्त बदलना है हमें, चलो नीति बदलनी है हमें
अपने जैसे किसी खास को, मौका देना है अब हमें।
जो रखता हो दम सच कहने का, जो संग तुम्हारे भी बैठे।
जो वादों पे अटल अडिग रहे, जो हाथ तुम्हारा पकड़ सके।
आओ निर्माण करें, सबके उज्ज्वल भविष्य के लिए।
दो पग संग चलो, अपने सुनहरे सपनों के लिए।
हम खड़े हैं आपके साथ चलने के लिए,
हम लड़े थे आपके साथ मिलने के लिए।
ऐसा युवा मिले हमको, जो सर न किसी का झुकने दे।
ऐसा कुशल वो नेता हो, जो न संस्कृति को मिटने दे।
वो भाषा हमारी बोल सके, वो संग हमारे हँस सके।
दर्द में आँखें नम भी हो, वो दोस्त हमारा बन सके।
उक्रांद ने नई पहल की है, एक युवा को जिम्मेदारी दी है।
उसकी सोच में शक्ति झलकती है, आँखों में दृढ़ता दिखती है।
वो मातृ शक्ति का रक्षक भी, वो भष्टाचार का भक्षक है।
बच्चे-बूढ़ों का प्रेमी वो, उसकी बातों में नम्रता दिखती है।
जो अब तक हुआ न राज्य में, वो कार्य ये कर दिखाएँगे
नाम है अनिरुद्ध काला, जो नए निर्माण की रणनीति बनायेंगे।
आप केवल उम्मीद करो, हम खरा उतर के दिखाएँगे।
आप केवल विश्वास करो,वादा हम पूरा कर दिखाएँगे
बढ़ो आगे हमारे साथ, एक नया इतिहास रचने के लिए।
हम खड़े हैं आपके साथ चलने के लिए,
हम लड़े थे आपके साथ मिलने के लिए।
© सुजाता देवराड़ी
बहुत ही प्रेरक एवं सुन्दर कविता…।
जी आभार मैम…