छोटी सी जान पहचान
पहाड़ों में खाने को उसके स्वाद से जाना जाता है लेकिन शहरों में खाने को उसके नाम से जाना जाता है। इन नामों में कभी कभी कुछ खाने के नाम ऐसे होते हैं जिन्हें ना तो कभी सुना होता है ना कभी देखा होता है। दोस्तों के बीच कुछ लोग ऐसे होते हैं जो विदेशों में रहकर आए होते हैं और जब उनके साथ बाहर जाओ तो वो खाने में ऐसी चीज़ें ऑर्डर करते हैं जिन्हें देखकर भी अजीब लगता है अजीब का मतलब उसकी टेढ़ी मेढ़ी बनावट और नासमझने वाली सजावट से है। एक तरह से अच्छा भी है जो ऐसे विभिन्न तरह के व्यंजनों के विषय में पता चलता है पर दूसरी तरफ हैरानी भी होती है कि इन चीजों का इजात करने में कितना समय लगता होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि इनके नाम रखता कौन होगा। हा हा हा हा ।
ये बात कुछ यूँ शुरू हुई कि आज मेरी किसी फेसबुक मित्र से बात हो रही थी। जहाँ तक मुझे याद है शायद पहली दफा बात हो रही थी। बात हाय हैलो से एक दूसरे को जानने तक बढ़ी। मित्र ने बात को आगे बढ़ाते हुए अपने विषय में बताया और फिर मेरे काम के विषय में जानने की इच्छा जाहिर की। जब मैंने अपने बारे में बताया तो बात मेरी शादी तक पहुँची। शायद मित्र को मेरे फेसबुक पर मेरे शादीशुदा होने का प्रमाण मिल चुका था और उन्होंने मुझे शुभकामनाएं देकर कहा।
क्या करते हैं आपके हसबैंड ?
जवाब में मैंने कहा- इंजीनियर हैं आई टी सॉफ्टवेयर
“ओह अच्छा” मित्र ने अपनी प्रतिक्रिया देकर कहा।
फिर उन्होंने कहा “क्या आपके पति वेबसाईट डिजाईन करते हैं?”
मैंने “हाँ” में उत्तर दिया।
मित्र का अपना होटल है और कुछ रेस्टोरेंट भी हैं शायद तो उनको इस काम से मिलती जुलती कोई वेबसाईट बनानी थी। ताकि अपने बिजनेस को और आगे बढ़ा सकें। बातों का सिलसिला जारी रहा और उन्होंने मुझसे पूछा-
“क्या कोई वेबसाईट डिजाईन की है आपके हसबैंड ने?”
मैंने हाँ में उत्तर देकर वेबसाईट का नाम उनको बताया और कहा-
“मैं आपको उनकी बनाई वेबसाईट के लिंक भेज दूँगी।”
मित्र को मेरे जवाब की संतुष्टि हो चुकी थी। तभी अचनाक उन्होंने मुझसे पूछा –
“अच्छा सुनो ! तुमने गुच्ची जो पहाड़ों में लगती है खाई है? 10,000 रुपये किलो मिलती है।”
मैं ये नाम और दाम दोनों पढ़कर एक पल के लिए हैरान हो गई थी और चौंक इसलिए गई थी कि महाशय ने कितनी आसानी से विषय में बदलाव किया। ये भी एक हुनर था। मुझे जवाब तो देना था। मैंने भी साफ साफ “नहीं खाई” लिखकर भेज दिया क्योंकि मैंने मशरूम सुना था पर गुच्ची पहली बार सुना था। मुझे ये भी मालूम नहीं था कि गुच्ची मशरूम की ही तरह की एक प्रजाति होती है। चैट करते करते मैंने गूगल किया तो पता चला कि गुच्ची आखिर क्या है। मेरी एक आदत है जब भी मुझे कोई नई चीज पता चलती है चाहे सुनने में हो या देखने में। मैं उसके बारे में जाने बगैर शांत नहीं रहती हूँ। खैर, अब महाशय को रिप्लाय तो करना था।
फिर मैंने उनको लिखा-
“इतने महँगे खाने से तो अच्छा है माँ के हाथ की मंडवे की रोटी और साग खाना बेहतर होगा। स्वाद के साथ प्यार भी मिलता है।”
जवाब में जनाब लिखते हैं कि-
“ये बात मैं समझ सकता हूँ क्योंकि मैंने बहुत खाना बनाया है। “
मैंने भी लिख दिया-
“मेरी नजर में खाना बनाने वाला दुनिया का सबसे खूबसूरत और किस्मत वाला इंसान होता है। क्योंकि उसकी मेहनत किसी की भूख शांत करती है। उसकी बदौलत कोई अपने काम के लिए भी मेहनत करने की शक्ति जुटाता है। तो आप भी उन किस्मतवालों में से एक हो जो आप खाना बनाकर लोगों को परोसते हो। क्योंकि खाने महत्व उसके पैसों से नहीं उसके स्वाद से होता है।”
जवाब में मित्र ने “शुक्रिया” कहा और मैंने भी स्वागत लिखकर बात को समाप्त किया।
इस बात से मैंने दो चीज़ें समझी। पहली कि जरूरी नहीं हम हमेशा जानने वाले से ही बात करके उसे दोस्तों की श्रेणी में रखें। कभी कभी कुछ अंजान लोगों से भी बात करनी चाहिए उससे नई सोच का विस्तार होता अछाई बुराई की परिभाषा बदलती है। बातों बातों में आपको कुछ नया जानने का मौका मिलता है और आपको कुछ सिखा जाते हैं। दूसरी ये कि पैसों से इंसान भले ही बड़े बड़े बड़े खाने के होटेल्स क्यों ना खोल दे लेकिन अगर उस खाने में स्वाद नहीं है, श्रद्धा नहीं है, दुलार नहीं है तो बेकार है सब। जैसे एक माँ अपने बच्चे को अच्छा बनाने में अपना प्यार, दुलार से लेकर अपनी जी जान तक लगा देती है। ताकि उसे कोई खराब ना कहे। वैसे ही एक खाना बनाने वाला व्यक्ति उस खाने को अपने बच्चे की तरह बनाकर सजाता सँवारता है ताकि कोई उस खाने को खराब ना कहे। एक बात और कटु सत्य है जब खाना स्वादिष्ट हो तो इंसान अपनी भूख देखता है पैसा नहीं।
आप भी खाओ पियो मस्त रहो और अगर सक्षम हो तो कभी किसी गरीब की भी भूख शांत कर देना।
रही बात गुच्ची की तो उसके विषय में विस्तार से अगली पोस्ट पर चर्चा करूँगी।
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