वनाग्नि | साँसे तो साँसे होती है, चाहे इंसान की हो या फिर मासूम जानवरों की
उत्तराखंड में वनाग्नि चीरते हुए अंधकार को जब एक दिए की लौ रौशन करती है तो बेहद ख़ूबसूरत लगती है। हवन की चिंगारी जब हवा में उड़ती हैं तो भी संतोषजनक लगती है। और...
उत्तराखंड में वनाग्नि चीरते हुए अंधकार को जब एक दिए की लौ रौशन करती है तो बेहद ख़ूबसूरत लगती है। हवन की चिंगारी जब हवा में उड़ती हैं तो भी संतोषजनक लगती है। और...
“ये तय है कि वजह दोष का, ज़रिया न था वो। पर गले ग़लतफ़हमियों ने, सवालों की ताबीज पहना दी।” कभी कभी दिल बड़ा शायराना हो जाता है. वही आज मेरा दिल भी हुआ...
आदिकाल से ही इनसान घुमक्क्ड प्रवृति का रहा है। घुमक्क्ड़ी हमे विरासत में मिली है। आज भी शायद ही कोई हो जिसे घूमना पसंद ना हो। आज के दौर में तो घुमक्क्ड़ी और ज्यादा...
शोध क्यों जरुरी है? Image by Free-Photos from Pixabay आजकल हर कोई किसी न किसी विषय पर शोध करता ही रहता है। लेकिन कभी-कभी बिना सोचे समझे, बिना जाने पहचाने शोध करना खुद पर...
ये दिल तुम बिन ये दिल तुम बिन कुछ कहता नहीं, कुछ सुनता नहीं कहीं रुकता नहीं। ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं, कुछ सुनता नहीं कहीं रुकता नहीं।। साँसे चलती हर रोज...
मुखड़ा 1 तुम बेपनाह बरसी हो बूँद बनकर, फिसलती हुई जिस्म की रूह मैं | आलम है अब ये सोचा कुछ भी ना जाए, तेरी आँखों मैं डूबता जा रहा मैं | क्या ये सच है, ख्वाब है या कोई, बोल दो ना बोल दो ना | 2 तुम बेपनाह बरसी हो बूँद बनकर…… बोल- सुजाता देवराड़ी अंतरा1 ओढ़ लूँ तुमको में, बनाके गर्म चादर। इस कदर टूट जाऊँ, बाहों में आकर। सर्द है ये हवायें, ख़ामोश है ये जहाँ। मेरी ख़्वाहिश है अब ये, ना रहे कोई दरमियाँ। एहसास...
गाँव की यादें गाँव की यादें बुलाये मुझे, घर आजा, घर आजा पुकारे मुझे | वो बचपन का खेला, वो मिटटी का ठेला | खेतों मैं जाकर, वो छुपना छिपाना || वो तितली पकड़कर,...