Author: सुजाता देवराड़ी

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वनाग्नि | साँसे तो साँसे होती है, चाहे इंसान की हो या फिर मासूम जानवरों की

उत्तराखंड में वनाग्नि चीरते हुए अंधकार को जब एक दिए की लौ रौशन करती है तो बेहद ख़ूबसूरत लगती है। हवन की  चिंगारी जब हवा में उड़ती हैं तो भी संतोषजनक लगती है। और...

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खलंगा मेला – 24 नवम्बर 2019

आदिकाल से ही इनसान घुमक्क्ड प्रवृति का रहा है। घुमक्क्ड़ी हमे विरासत में मिली है। आज भी शायद ही कोई हो जिसे घूमना पसंद ना हो। आज के दौर में तो घुमक्क्ड़ी और ज्यादा...

शोध(Research) 0

शोध(Research)

शोध क्यों जरुरी है? Image by Free-Photos from Pixabay आजकल हर कोई किसी न किसी विषय पर शोध करता ही रहता है। लेकिन कभी-कभी बिना सोचे समझे, बिना जाने पहचाने शोध करना खुद पर...

ये दिल तुम बिन 1

ये दिल तुम बिन

  ये दिल तुम बिन ये दिल तुम बिन कुछ कहता नहीं, कुछ सुनता नहीं कहीं रुकता नहीं। ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं, कुछ सुनता नहीं कहीं रुकता नहीं।। साँसे चलती हर रोज...

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तुम बेपनाह

मुखड़ा 1  तुम बेपनाह बरसी हो बूँद बनकर, फिसलती हुई जिस्म की रूह मैं | आलम है अब ये सोचा कुछ भी ना जाए, तेरी आँखों मैं डूबता जा रहा मैं | क्या ये सच है, ख्वाब है या कोई, बोल दो ना बोल दो ना | 2 तुम बेपनाह बरसी हो बूँद बनकर…… बोल- सुजाता देवराड़ी अंतरा1 ओढ़ लूँ  तुमको में, बनाके गर्म चादर। इस कदर टूट जाऊँ,  बाहों में आकर। सर्द  है ये हवायें, ख़ामोश है ये जहाँ। मेरी ख़्वाहिश है अब ये, ना रहे कोई दरमियाँ। एहसास...

सरहद पर 1

सरहद पर

||सरहद पर||    इस देश के हर नागरिक का सीना, तब चौड़ा हो जाता है। जब शरहद पर हर सैनिक, एक- एक करके जान गवांता है।। आतंक ने दहशत फैलाई, तुम चुप्पी साधे बैठे...

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गाँव की यादें

गाँव की यादें गाँव की यादें बुलाये मुझे, घर आजा, घर आजा पुकारे मुझे | वो बचपन का खेला, वो मिटटी का ठेला | खेतों मैं जाकर, वो छुपना छिपाना || वो तितली पकड़कर,...